तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

बुधवार, फ़रवरी 05, 2025

तकिया उठा सकता है आपको नींद से?

एक अरसे से नौवीं व ग्यारहवीं क्लास की परीक्षा की तुलना में दसवीं व बारहवीं क्लास की बोर्ड परीक्षा को कठिन माना जाता है। इस कारण दसवीं व बारहवीं की परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं। विशेष रूप से सुबह जल्दी उठ कर पढ़ते हैं, चूंकि शांत वातावरण में स्मृति में पढ़ा हुआ जल्द संग्रहित होता है। सुबह जल्द उठने के लिए घड़ी में अलार्म सैट करते हैं। मैं जब दसवीं में था तो किसी ने एक प्रयोग बताया था। वो ये कि आप अपने तकिये पर हाथ रख कर उसे संदेश दीजिए कि हे तकिया देवता, मुझे सुबह चार बजे उठा देना। मैंने इस प्रयोग को कर के देखा। आप यकीन करें या न करें, मगर मेरा अनुभव ये है कि वाकई मेरी नींद अपेक्षित समय पर अपने आप खुल जाती थी।

कुछ बड़ा होने पर मैंने इसका राज जानने की कोशिश की। जिज्ञासा थी कि क्या वाकई एक निर्जीव तकिया हमारे आदेश को मानता है? स्वाभाविक सी बात है कि ऐसा हो नहीं सकता। होता भी हो तो पता नहीं, मगर मैं जिस निष्कर्ष पहुंचा, वह आपसे साझा करता हूं। असल में तकिया एक निमित्त मात्र है। जैसे ही हम तकिये को आदेश देते हैं तो वह आदेश हमारे अंतर्मन में चला जाता है। वस्तुतः वही अंतर्मन काम करता है। जैसे एक भौतिक घड़ी है, वैसे ही हमारे भीतर एक बायलॉजिकल घड़ी है। अंतर्मन उस बायलॉजिकल घड़ी का इस्तेमाल करते हुए हमें निर्धारित समय पर जगा देता है। और हमें ये लगता है कि ऐसा तकिये ने किया है। हालांकि हम चाहें तो अपने अंतर्मन को सीधे भी आदेश दे सकते हैं, मगर वह आसान नहीं, इस कारण निमित्त के रूप में तकिये का इस्तेमाल करना पड़ता है। यह ठीक वैसे ही है, जैसे भगवान सर्वत्र है और उसको कहीं भी याद किया जा सकता है, लेकिन हम उसके लिए मंदिर जा कर मूर्ति का इस्तेमाल करते हैं। मूर्ति निमित्त मात्र है, मगर वहां का वातावरण हमें भगवान पर ध्यान केन्द्रित करने में सहायक होता है। बिना मूर्ति के भी ध्यान हो सकता है, मगर वह आसान नहीं। मन बहुत चंचल है, उसे भीतर से स्थिर करना कठिन है। इसीलिए हम बाहर की मूर्ति का इस्तेमाल करते हैं, जिस पर ध्यान केन्द्रित करना अपेक्षाकृत आसान है।

ये तो हुई तकिये की बात। मगर आपको ये तो ख्याल में होगा ही कि बिना तकिये के प्रयोग के भी सुबह एक निश्चित समय के आसपास हमारी नींद अपने आप खुल जाती है। यह काम हमारी बायलॉजिकल घड़ी करती है।

बायलॉजिकल घड़ी की बात चली है तो मेरी यह समझ भी आपसे शेयर कर लेता हूं। बाहरी घड़ी को देख कर तो हम दिन भर के काम करते ही हैं, मगर साथ ही बायलॉजिकल घड़ी भी काम करती रहती है। जैसे कि हमने यदि ये नियम बनाया कि सुबह दस बजे खाना खाना है। बायलॉजिकल घड़ी उसी हिसाब से सैट हो जाती है। कुछ दिनों बाद दस बजते ही हमें भूख लगती है। बायलॉजिकल घड़ी दस बजते ही आमाशय में मौजूद पाचक तत्त्वों को सक्रिय होने का आदेश देती है। इसीलिए कहा जाता है कि निश्चित समय पर खाना खाने पर आसानी से पचता है, क्योंकि उस समय पर भोजन को पचाने वाले रस सक्रिय होते हैं। अर्थात हम जो नियम अपने लिए बनाते हैं, वह हम पर लागू हो जाता है। एक अर्थ में वह हमें गवर्न करता है। बाध्य करता है। इसीलिए नियमितता की महिमा है। कहा जाता है न कि भगवान का ध्यान, आरती आदि निश्चित समय पर ही करनी चाहिए। उसकी वजह ये है कि निश्चित समय पर बायलॉजिकल घड़ी के आदेश से मन तुरंत एकाग्र होने के लिए तैयार हो जाता है। किसी भी वक्त ध्यान, आरती करने की तुलना में निश्चित समय पर करने से चित्त उस पर तुरंत स्थिर हो जाता है। स्वाभाविक रूप से अधिक फलदायक होता है।

नियमितता का जिक्र आया है तो एक दृष्टांत के साथ अपनी बात को पूरा करता हूं। वह कितना सच्चा है, कितना नहीं, मुझे नहीं पता, मगर यह नियमितता का अल्टीमेट उदाहरण है। एक धार्मिक व्यक्ति प्रतिदिन निश्चित समय पर जंगल में स्थित एक मंदिर में मूर्ति के आगे दीया जलाता था। उसका एक पड़ौसी, जो कि घोर नास्तिक था, वह भी नियम से रोज उस दीये को बुझा कर आ जाता था। एक दिन भयानक तूफान आया। धार्मिक व्यक्ति की हिम्मत जवाब दे गई और वह आलस्य करके घर ही बैठा रहा। नास्तिक आदमी तूफान से घबराया नहीं और पहुंच गया दीया बुझाने। मूर्ति में विराजित देवता ने उसे वरदान दिया। धार्मिक आदमी को यह पता लगा कि देवता ने नास्तिक को वरदान दिया है तो वह पहुंच गया मंदिर और मूर्ति से शिकायत की कि मैं तो रोज आपके सामने श्रद्धा से दीया जलाता हूं, जबकि नास्तिक आदमी आपका अनादर करते हुए दीया बुझा देता है, फिर भी आपने उसे वरदान क्यों दिया? इस पर मूर्ति के देवता ने जवाब दिया कि वह नास्तिक आदमी तुमसे ज्यादा नियमित है। अपने नियम की पालना करके लिए उसने तूफान की भी परवाह नहीं की। इसीलिए उससे प्रसन्न हो कर मैने उसे वरदान दिया है। 

है न दिलचस्प किस्सा। यह एक उदाहरण मात्र है, मगर इसका संदेश यही है कि हम जीवन में नियमितता लाएं। जैसे सृष्टि का नियंता सूर्य निश्चित समय पर उदय होता है और निश्चित समय पर अस्त होता है, ठीक उसी प्रकार हमें भी नियमपूर्वक रहना चाहिए।

https://www.youtube.com/watch?v=BXYLR8q7i9o&t=22s