यह एक बेहद रोचक मिथ है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी अर्थात गणेश चतुर्थी के दिन चांद देखने पर आप पर झूठा आरोप लग जाता है। अर्थात जो अपराध आपने किया ही नहीं, वह आप पर मढ़ दिया जाता है। पुराणों के अनुसार ऐसा भगवान श्रीकृष्ण के साथ भी हो चुका है। एक प्रसंग में तो उन पर स्यमंतक मणि की चोरी झूठा आरोप लगा था।
सवाल उठता है कि आखिर गणेश चतुर्थी का चांद देखने पर झूठा आरोप लगता क्यों है? इस बारे में कथा है कि एक बार गणेश जी के लंबे पेट और हाथी के मुख को देख कर चंद्रमा को हंसी आ गई। गणेश जी इससे नाराज को गए और चंद्रमा से कहा कि तुम्हें अपने रूप का अहंकार हो गया है, अतरू अब तुम्हारा क्षय हो जाए। जो भी तुम्हें देखेगा, उसे झूठा कलंक लगेगा। गणेश जी के शाप से चन्द्रमा दुरूखी हो गए। उन्हें दुखी देख कर देवताओं ने राय दी कि गणेश जी की विधिवत पूजा करो। उनके प्रसन्न होने से शाप से मुक्ति मिल सकती है। चंद्रमा ने ऐसा ही किया। इस पर गणेश जी प्रसन्न तो हुए, मगर कहा कि शाप पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकता। ताकि अपनी गलती चन्द्रमा को हमेशा याद रहे। तब से गणेश चतुर्थी के दिन जो भी चांद देखता है, उसे भगवान गणेश के प्रकोप का सामना करना पड़ता है। यदि भूल से चंद्र दर्शन हो जाये तो उसके निवारण के लिए श्रीमद्भागवत के 10 वें स्कंध के 56-57 वें अध्याय में उल्लेखित स्यमंतक मणि की चोरी कि कथा का श्रवण करना लाभकारक है। जिससे चंद्रमा के दर्शन से होने वाले मिथ्या कलंक का ज्यादा खतरा नहीं होगा।
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