तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, जुलाई 26, 2012

गुटके पर पाबंदी : जम कर मची है लूट

एक आधुनिक कहावत है कि दूध के फटने पर वे ही दुखी होते हैं, जिन्हें फटे दूध से पनीर बनाना नहीं आता। अर्थात दुखी वे ही होते हैं, जिन्हें विपरीत परिस्थिति में भी अपने अनुकूल रास्ता निकालना नहीं आता। प्रदेशभर में गुटके पर एक झटके में लगाई गई पाबंदी के संदर्भ यह एकदम फिट बैठती है।
जैसे ही सरकार ने बिना किसी पूर्व सूचना के गुटके पर पाबंदी लगाई थी तो जहां इसका स्वागत हुआ, वहीं कच्चे माल व तैयार माल की खपत करने से पहले रोक एक तानाशाहीपूर्ण कदम प्रतीत हो रहा था। बात थी भी तर्क संगत। यदि सरकार को यह निर्णय करना था तो पहले गुटखा बनाने वाली फैक्ट्रियों को उत्पादन बंद करने का समय देती, स्टाकिस्टों को माल खत्म करने की मोहलत देती तो बात न्यायपूर्ण होती, मगर सरकार ने ऐसा नहीं किया। सवाल ये था कि तम्बाकू मिश्रित गुटका बनाने वाली फैक्ट्रियों में जमा सुपारी, कत्था व तंबाकू का क्या होगा? इन फैक्ट्रियों में काम करने वाल मजदूरों का क्या होगा? स्टाकिस्टों और होल सेलर्स के पास जमा माल का क्या होगा? रिटेलर्स के पास रखे माल को कहां छिपाया जाएगा?
यही वजह रही कि पाबंदी लगने पर जैसे ही छापामारी हुई तो व्यापारी तबका उद्वेलित हो उठा। उसने विरोध प्रदर्शन भी किया और सरकार से अपना माल निकालने की मोहलत भी मांगी। मगर दूसरे ही दिन व्यापारी शांत हो गया। संभावना ये थी कि इस निर्णय को चुनौती देने के लिए व्यापारी तबका कोर्ट में जाएगा, इसी कारण सरकार की ओर से हाईकोर्ट में केवीएट भी लगाई, ताकि स्थगनादेश से पहले उनके पक्ष को भी सुना जाए। मगर हुआ कुछ नहीं। व्यापारी चुप हो गया।
सवाल ये उठता है कि आखिर व्यापारी अचानक शांत क्यों हो गया? जो व्यापारी माल निकालने की मोहलत मांग रहा था, उसने माल का क्या किया? साफ है कि उसने अपने लिए हुए अभिशाप स्वरूप निर्णय को वरदान में तब्दील करने की युक्ति अपना ली। अपना माल निकालने की मोहलत उसने इस कारण मांगी थी कि वह इंस्पैक्टर राज को दिए जाने वाले हिस्से से बचना चाहता था। वह जानता था कि पाबंदी के चलते सरकारी अधिकारी उसे परेशान करेंगे। जहां सख्त अधिकारी माल नष्ट करेंगे, वहीं व्यावहारि अधिकारी माल नष्ट न करने की एवज में हिस्सा मांगेगे। जब उसे लगा कि सरकार मानने वाली नहीं है तो उसने तुरंत पैंतरा बदला। उसे अधिकारियों से समझौता करने में ही भलाई दिखाई दी। आज हालत ये है कि वह बेहद खुश है। खुशी का पैमाना गोदाम में रखे माल के अनुपात से जुड़ा है। जिसके पास जितना ज्यादा माल है, वह उतना ही खुश है। अधिकारियों से सैटिंग करने भर की परेशानी है, बाकी मजे ही मजे हैं। इस वक्त बाजार में गुटका कहीं नजर नहीं आ रहा, मगर वह धड़ल्ले से बिक भी रहा है। डेढ़ या दोगुने भाव से। यानि कि व्यापारी के तो मजे हो गए। जो व्यापारी पाबंदी लगते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मुर्दाबाद के नारे लगा रहा था, वह अब मन ही मन गहलोत को दुआ दे रहा होगा। उस पर कुछ इसी तरह की खुशी चंद माह पहले तब भी बरसी थी, जब पोलीथिन पैक वाला गुटका बंद हुआ था। तब भी जम कर ब्लैक हुई। छोटे से बड़े हर व्यापारी ने अपनी अपनी हैसियत के हिसाब से कमाया। जाहिर सी बात है कि अधिकारियों ने भी जम कर लूटा। ताजा प्रकरण को एक अर्थ में देखा जाए तो खुद सरकार ने ही एक झटके में रोक लगा कर ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा देने का कदम उठाया है। मजे की बात ये है कि व्यापारी के लिए दाम बढ़ाने के पीछे गले उतरने वाला तर्क भी है। उसका कहना है कि जब वह छापे की कार्यवाही के खतरे को मोल ले रहा है तो कमाने का मौका क्यों छोड़ेगा।
ताजा जानकारी ये है कि अब बाजार में सादा पान मसाला और उसके साथ तंबाकू के पाउच का इंतजार किया जा रहा है, चूंकि उस पर कोई रोक नहीं है। हालांकि सादा पान मसाला पर भी रोक की आवाज उठ रही है, जैसे झारखंड सरकार ने हाल ही निर्णय किया है। फैक्ट्री वाले पता लगा रहे हैं कि कहीं सरकार सादा पान मसाले पर भी तो रोक नहीं लगा देगी। जैसे ही उन्हें यकीन हो जाएगा कि सरकार रोक नहीं लगाएगी, वे सादा पान मसाला के साथ तंबाकू का पाउच बाजार में ले आएंगे। फिलहाल तो पुराने माल से ही ज्यादा से ज्यादा चांदी काटने में लगे हुए हैं।
-तेजवानी गिरधर