तीसरी आंख

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शनिवार, जनवरी 12, 2013

वसुंधरा-संघ की जंग में किरण का क्या होगा?


राजस्थान की भाजपा में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर संघ व पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के बीच छिड़ी वर्चस्व की जंग में भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव व राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी का क्या होगा, यह सवाल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। माना ये जा रहा है कि अगर समझौता हुआ तो पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की खातिर पूर्व गृह मंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता गुलाब चंद कटारिया की यात्रा के विरोध की आग लगाने वाली किरण माहेश्वरी को खामियाजा उठाना होगा।
वस्तुत: भाजपा में अपूर्व हंगामे के बाद कटारिया ने उस वक्त तो अपनी यात्रा स्थगित कर दी थी, इस कारण यही संदेश गया कि किरण को एक बड़ी जीत हासिल हुई है, मगर थोड़े से अंतराल के बाद ही कटारिया ने सिर पर लदे वसुंधरा के दबाव को उतार फैंका और फिर से यात्रा की शुरुआत कर दी। इस बार न तो वसुंधरा ने कोई खास प्रतिक्रिया की और न ही किरण माहेश्वरी ने। इस चुप्पी को उनके बैक फुट पर आने का स्पष्ट संकेत माना जाता है। वसुंधरा ने पूर्व में जब विधायकों व पार्टी पदाधिकारियों के इस्तीफों से दबाव बनाया, वह उस वक्त तो कारगर हो गया, मगर संघ ने मौका देख कर फिर से सिर उठा लिया। कटारिया की दुबारा हो रही यात्रा उसका जीता-जागता प्रमाण है। किरण की चुप्पी के पीछे एक सोच ये भी बताई जा रही है कि जैसे पिछली बार कटारिया का विरोध करने के कारण वे हीरो बन गए थे, कहीं इस बार फिर करने से उनका कद और न बढ़ जाए, सो उनकी यात्रा को ज्यादा नोटिस नहीं लिया। वसुंधरा लॉबी के बैक फुट पर आने की एक वजह ये भी है कि वसुंधरा के धौलपुर स्थित अपने महल में जो फीड बैक अभियान शुरू किया, उसको लेकर संघ लॉबी ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया। यानि कि एक तो कटारिया की यात्रा के माध्यम से संघ ने वसुंधरा को नापने की कोशिश की, दूसरा फीड बैक का विरोध करके उन्हें पार्टी मंच पर आने को मजबूर कर दिया।
इस बार वसुंधरा को कदाचित ये आभास हो गया है कि ज्यादा खींचतान की तो बात टूटने पर आ जाएगी। इसके अतिरिक्त जिद करके फ्री हैंड हासिल भी कर लिया तो पिछली बार की तरह संघ की नाराजगी के चलते विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ेगा। सो थोड़ा संभल-संभल कर कदम रख रही हैं। हालांकि उन्होंने अपना दबाव कम नहीं किया है, मगर बात को समझौते की ओर बढ़ा रही हैं। स्वाभाविक रूप से समझौता कटारिया सहित संघ लॉबी के अन्य नेताओं के साथ बराबरी के आधार पर होगा। कटारिया को पूरी तवज्जो मिलेगी। ऐसे में किरण का कटारिया को मेवाड़ अंचल में नेस्ताबूद करने का सपना तो धूमिल होगा ही, अपने घर में अपना कद बरकरार रखना भी एक बड़ी चुनौती हो जाएगा। ऐसे में यह सवाल मौजूं है कि कहीं वे समझौते की बली तो नहीं चढ़ जाएंगी?
सच तो ये है कि जिस दिन कटारिया को बैक फुट पर आना पड़ा था, उसी दिन से उन्होंने किरण माहेश्वरी की फिश प्लैटें गायब करने का काम शुरू कर दिया था। समझा जाता है कि उन्हीं के इशारे पर राजसमंद के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने नए सिरे से किरण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। तब जिलाध्यक्ष नन्दलाल सिंघवी, पूर्व जिला प्रमुख हरिओम सिंह राठौड़, नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह, कुम्भलगढ़ के पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह राठौड़, राजसमन्द के पूर्व विधायक बंशीलाल खटीक ने गडकरी को पत्र फैक्स कर किरण को तुरंत प्रभाव से पद से हटा कर अनुशासनात्मक कार्यवाही की मांग तक कर दी थी। माहेश्वरी पर राष्ट्रीय महासचिव होने के बावजूद ऐसी अनुशासनहीनता करना, गुटबाजी पैदा करना, समानांतर संगठन चलाना, अपने आप को पार्टी से ऊपर समझना तथा निष्काषित कार्यकर्ताओं को साथ लेकर पार्टी विरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के आरोप भी लगाए गए। तब भी यही निष्कर्ष निकाला गया था कि वसुंधरा राजे का तो जो होगा, हो जाएगा, मगर किरण ने उनके चक्कर में अपने घर में जरूर आग लगा ली है। तब उन्होंने प्रतिक्रिया में कहा था कि इस बारे में वे किसी को जवाब नहीं देना चाहती। जवाब जनता के बीच दूंगी। वे फिलवक्त तो जवाब दे नहीं पाई हैं लगता भी नहीं है कि उनकी मंशा पूरी हो भी पाएगी।
-तेजवानी गिरधर