तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

बुधवार, अगस्त 24, 2016

राम्या देशद्रोही कैसे हो गई?

कन्नड़ अभिनेत्री और कांग्रेस की पूर्व विधायक राम्या के मात्र इतना कहने पर कि पाकिस्तान जहन्नुम नहीं है, उसे देशद्रोही करार देना हद्द दर्जे की गंदी राजनीति व असहिष्णुता की इंतहा है। इस मामले में होना जाना कुछ नहीं है, ये महज शब्द जुगाली है। कुछ लोगों को अपनी देश भक्ति स्थापित करने का मौका मिल जाएगा तो किसी को देशद्रोही करार दिया जाएगा, मगर हम राजनीति की कैसी नौटंकी के दौर में जी रहे हैं, उसे देख-सुन कर आत्म ग्लानि होती है। राजनीति तो राजनीति, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया व सोशल मीडिया पर भी सोम्या के बयान को पाकिस्तान प्रेम की संज्ञा दी जाती है तो साफ नजर आता है कि वह भी प्रयोजन विशेष के लिए काम कर रहे हैं। एक जगह तो यह तक लिखा गया कि राम्या ने कन्नड़ फिल्मों में जिस तरह से अपने शरीर का प्रदर्शन किया है, क्या वैसा प्रदर्शन पाकिस्तान की फिल्मों में कर सकती हैं? अफसोस, अगर किसी की आप से मतभिन्नता है तो आप उसके कपड़े तक उतारने को उतारू हो जाएंगे। लानत है ऐसी सोच पर।
इस मसले की बारीक बात ये है कि राम्या ने ऐसे वक्त में यह बयान दिया, जबकि देश के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर कह चुके थे कि पाकिस्तान तो नरक है। बस यहीं से विवाद शुरू होता है। बेशक पाकिस्तान हमारा दुश्मन पड़ौसी है, इस कारण उसे गाली देना सुखद लगता है, देशप्रेम नजर आता है, ऐसे में अगर आप ये कहेंगे कि वह जहन्नुम नहीं तो वह देशद्रोहिता की श्रेणी में गिना जाता है। मगर इस किस्म की देशद्रोहिता तब कहां चली जाती है, जबकि हमारे ही प्रधानमंत्री व पर्रिकर की पार्टी के नेता नरेन्द्र मोदी अफगानिस्तान से लौटते समय बिना निर्धारित कार्यक्रम के लाहौर जाकर वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की माता के पैर छू आते हैं। अगर पाकिस्तान नरक है तो मोदी को वहां नहीं जाना चाहिए था। साम्या ने तो केवल इतना भर कहा है कि पाकिस्तान नरक नहीं है, उसमें वह देशद्रोही कैसे हो गईï? अगर आप पाकिस्तान से संबंध सुधारने की खातिर बिना किसी सरकारी कार्यक्रम के शिष्टाचार के नाते नवाज शरीफ से प्यार की पीगें बढ़ाते हैं तो वह स्वीकार्य ही नहीं स्वागत योग्य है, क्योंकि वे आपकी पार्टी के नेता हैं और अगर आपकी विरोधी पार्टी की नेता ये कहे कि पाकिस्तान नरक नहीं है तो वह देशद्रोही हो गई?
मुद्दा ये है कि अगर आप वाकई अपने राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हुए पाकिस्तान को नरक बता रहे हैं तो उससे सारे संबंध विच्छेद क्यों नहीं कर लेते? क्यों द्विपक्षीय वार्ताओं के दौर चलाते हैं? और अगर आपका बयान एक निजी राय है तथा कोई अगर उससे अपनी असहमति जताता है तो वह उसका अभिव्यक्ति का वैयक्तिक अधिकार है। आप उसे छीन नहीं सकते हैं, बेशक चूंकि आप सत्ता में हैं तो उसे दंडित करवा सकते हैं, जलील कर सकते हैं।
वस्तुत: यह वक्त वक्त का फेर है। पाकिस्तान से हमारे रिश्ते बदलते रहे हैं। कभी बनते दिखाई देते हैं तो कभी पटरी से पूरी तरह से उतरते नजर आते हैं। कभी दोस्ती की प्रक्रिया शुरू होती है तो कभी एक दूसरे के देश को गाली देकर दोनों देशों के नेता अपनी अपनी जनता के सामने अपनी देशभक्ति स्थापित करना चाहते हैं। इसमें स्थायी कुछ भी नहीं है। इसका ज्वलंत उदाहरण ये है कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान के करार के तहत कभी पाकिस्तान के जायरीन अजमेर दरगाह शरीफ की जियारत करने आते हैं तो आपकी विचारधारा के नेता सरकारी जलसा करके उनका इस्तकबाल करते हैं और कभी घटना विशेष के कारण संबंधों में तनिक खटास होती है तो आप उनके अजमेर आने का विरोध करने लगते हैं।
कुल जमा बात ये है कि ताजा मसला न तो देश प्रेम का है और न ही देशद्रोह का, यह केवल और केवल राजनीतिक स्टंट है।
-तेजवानी गिरधर
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मंगलवार, अगस्त 23, 2016

भगवान श्रीकृष्ण पर अभद्र टिप्पणियों से आहत व आक्रोषित हैं धर्म प्रेमी

यह एक विंडबना ही कही जाएगी कि जहां एक ओर हिंदू समाज में भगवान श्रीकृष्ण को सर्वगुण संपन्न, चौसठ कला प्रवीण और योगीराज माना जाता है, वहीं दूसरी ओर उनकी जन्माष्ठमी के मौके पर कई छिछोरे उनके बारे में अनर्गल टिप्पणियां और चुटकलेबाजी करते हैं। इसको लेकर धर्मप्रमियों कड़ा को ऐतराज है। एक तरफ मनचले सोशल मीडिया पर उनको लेकर चुटकले शाया कर रहे हैं, तो दूसरी ओर कुछ लोग प्रतिकार में चेतावनी और सुझाव दे रहे हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के बारे में अनर्गल टिप्पणियां न करें।
ये बात समझ से बाहर है कि हिंदू समाज में अपने ही आदर्शों व देवी-देवताओं की खिल्ली कैसे उड़ाई जाती है? एक ओर अपने आपको महान सनातन संस्कृति के वाहक मानते हैं तो दूसरी और संस्कारविहीन होते जा रहे हैं। एक ओर देवी-देवताओं के विशेष दिनों, यथा गणेश चतुर्थी, नवरात्री, महाशिवरात्री, श्रीकृष्ण जन्माष्ठमी इत्यादि पर आयोजनों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों में धार्मिक भावना बढ़ती जा रही है। हर साल गरबों की संख्या बढ़ती जा रही है, नवरात्री पर मूर्ति विसर्जन के आयोजन दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं, गणपति उत्सव के समापन पर गली गली से गणपति विसर्जन की यात्राएं निकलती हैं, शिव रात्री पर शिव मंदिरों पर भीड़ बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर धर्म व नैतिकता का निरंतर हृास होता जा रहा है। साथ ही धार्मिक आयोजनों के नाम पर उद्दंडता का तांडव भी देखा जा सकता है। कानफोड़ डीजे की धुन पर नशे में मचलते युवकों को गुलाल में भूत बना देख कर अफसोस होता है। ये कैसा विरोधाभास है? ये कैसी धार्मिकता है? ये कैसी आस्था है? आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? समझ से परे है। स्वाभाविक रूप से इसकी पीड़ा हर धार्मिक व्यक्ति को है, जिसका इजहार दिन दिनों सोशल मीडिया में खूब हो रहा है।
एक बानगी देखिए:-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आने वाली है...
एक मैसेज अभी सोशल मीडिया में चल रहा है, जिसमें प्रभु श्रीकृष्ण को टपोरी, लफड़ेबाज, मर्डरर, तड़ीपार इत्यादि कहा गया है।
अपने देवताओं को टपोरी बिलकुल भी ना कहें।
कृष्ण जी ने नाग देवता को नहीं बल्कि लोगों के प्राण लेने वाले उस दुष्ट हत्यारे कालिया नाग का मर्दन किया था, जिसके भय से लोगों ने यमुना नदी में जाना बन्द कर दिया था।
कंकड़ मार कर लड़कियां नहीं छेड़ते थे, अपितु दुष्ट कंस के यहां होने वाली मक्खन की जबरन वसूली को अपने तरीके से रोकते थे और स्थानीय निवासियों का पोषण करते थे। और दुष्ट चाहे अपना सगा ही क्यों न हो, पर यदि वो समाज को कष्ट पहुंचाने वाला हो तो उसको भी समाप्त करने में संकोच नहीं करना चाहिए, यह भगवान कृष्ण से सीखा है।
उनके 16000 लफड़े नहीं थे, नरकासुर की कैद से छुड़ाई गई स्त्रियां थीं, जिन्हें सम्भवत: समाज स्वीकार नहीं कर रहा था, उन्हें पत्नी का सम्मानजनक दर्जा दिया। वो भोगी नहीं योगी थे।
इसलिए उन्हें भगवान मानते हैं।
कृपया भविष्य में कभी भी किसी हिन्दू देवी देवता के लिये कोई अपमानजनक बात न तो प्रसारित करें और न ही करने दें। यदि यह संदेश किसी और ने आपको भेजा है तो उसे भी रोकें।
एक और बानगी देखिए, जिसमें एक कविता के माध्यम से श्रीकृष्ण के बारे में भद्दे संदेशों पर अफसोस जताया गया है:-
योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर कुछ बेहद भद्दे सन्देश प्राप्त हुए, कृष्ण भगवान को लेकर, उन संदेशों को जवाब देती ये कविता

द्वारका के राजा सुनो , हम आज बड़े शर्मिंदा हैं,
भेड़चाल की रीत देखो आज तलक भी जिन्दा हैं

व्हाट्स एप के नाम पे देखो मची कैसी नौटंकी है,
मजाक आपका बनता है, ये बात बड़ी कलंकी है

दो कोड़ी के लोग यहां तुम्हें तड़ीपार बतलाते हैं,
अनजाने में ही सही, पर कितना पाप कर जाते हैं

जिनके मन में भरी हवस हो, महारास क्या जानेंगे,
कांटें भरे हो जिनके दिल, नरम घास क्या जानेंगे

जिनको खुद का पता नहीं, वो तेरा कैरेक्टर ढीला बोलेंगे,
जो खुद मन के काले हैं, वो तुझे रंगीला बोलेंगे

कालिया नाग भी ले अवतार तुझसे तरने आते थे,
तेरे जन्म पे स्वत: ही जेल के ताले खुल जाते थे

तूने प्रेम का बीज बोया गोकुल की हर गलियों में,
मुस्कान बिखेरी तूने कान्हा, सृष्टि की हर कलियों में

दुनिया का मालिक है तू, तुझे डॉन ये कहते हैं,
जाने क्यों तेरे भक्त सब सुन कर भी चुप रहते हैं

गोकुल की मुरली को छोड़, द्वारकाधीश का रूप धरो,
हुई शिशुपाल की सौ गाली पूरी, अब उसका संहार करो