तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शनिवार, मई 17, 2025

बुजुर्ग भाइयों के चेहरे मिलते जुलते हैं?

दोस्तो, नमस्कार। पुरानी पीढी के लोगों को देखेंगे तो भाई भाई की षक्ल लगभग एक जैसी नजर आएगी। काफी समानता दिखाई देगी। जब कि आज ऐसा नहीं है। भाई भाई की षक्ल कम ही मिलती है। मिलती है तो थोडी बहुत। मेरे मित्र लक्ष्मण सतवानी उर्फ कालू भाई ने मुझे यह जानकारी दी। उनका कहना है कि पुराने समय में गर्भवती महिलाएं अमूमन घर में ही रहती थीं। बाहर कम ही निकलती थीं। सारे दिन उसके सामने घर के ही सदस्य होते थे। बाहर नहीं निकलने के कारण अन्य चेहरे उसके सामने आते ही नहीं थे। इस कारण संतान में बुजुर्गों का अक्स आता था। आजकल गर्भवती महिलाएं बाहर जाती हैं। नौकरी के लिए या किसी काम से। वह अन्य पुरूशों के चेहरे भी देखती है। इसका उसके मन मस्तिश्क पर असर पडता है। और उसका प्रभाव गर्भस्थ षिषु पर भी पडता है। कदाचित यह सही हो, मगर इस धारणा का वैज्ञानिक पहलु यह है कि भाई-भाई के चेहरों में समानता का मुख्य कारण जीन होते हैं। संतान अपने माता-पिता से जीन प्राप्त करती है। जब माता-पिता एक ही जातीय, सामाजिक या क्षेत्रीय पृष्ठभूमि से होते हैं (जैसा कि पहले अधिकतर होता था), तब उनकी संतानों में जीन का मेल अधिक होता है, जिससे भाई-भाई में अधिक समानता नजर आती है।

आजकल, अंतर्जातीय विवाह, अंतर-क्षेत्रीय विवाह अधिक होते जा रहे हैं, जिससे जीन का मिश्रण विविध हो गया है। इसका परिणाम यह है कि बच्चों में विविधता अधिक दिखने लगी है। निश्कर्श यह है कि यह धारणा कि गर्भवती महिला के द्वारा देखे गए चेहरों का प्रभाव भ्रूण के चेहरे पर पड़ता है, वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं है। पुराने समय में भाई-भाई में समानता अधिक इसलिए दिखती थी क्योंकि जीन पूल सीमित था और विवाह की विविधता कम थी।

आज की विविधता, मिश्रित समाज और व्यापक सामाजिक संपर्क ने अनुवांशिक विविधता बढ़ा दी है, जिससे चेहरे अलग-अलग नजर आते हैं। यह तय करने में कि बच्चा किसकी तरह दिखेगा, केवल और केवल जीन ही भूमिका निभाते हैं, न कि गर्भवती महिला ने किसे देखा या किनके साथ समय बिताया।

इस पर सवाल उठता है कि तो अमूमन लोग गर्भवति के कमरे में क्यों खुबसूरत बच्चे की फोटो लगाते हैं, इसलिए न कि गर्भस्थ शिशु भी सुंदर हो। इस बारे में वैज्ञानिक दृश्टिकोण यह है कि गर्भ के दौरान अच्छे पोषण, मानसिक शांति, और तनाव-मुक्त वातावरण से बच्चे के संपूर्ण विकास पर जरूर असर पड़ता है, लेकिन इससे चेहरे की सुंदरता नहीं बदलती। सकारात्मक माहौल से हॉर्मोन बैलेंस बना रहता है, जिससे शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास बेहतर हो सकता है।


https://youtu.be/ShORoNDJLto