वस्तुतः जब दृष्टि नहीं रहती, तो मस्तिष्क अपने उस हिस्से को उपयोग में लाता है जो पहले देखने में लगता था, और उसे सुनने, छूने, दिशा-ज्ञान या स्मृति जैसी गतिविधियों में लगा देता है। इसे न्यूरोप्लास्टिसिटी कहते हैं। उनकी श्रवण शक्ति अधिक प्रशिक्षित हो जाती है और वे सूक्ष्म ध्वनियों, स्वर के उतार-चढ़ाव को बेहतर पकड़ते हैं। स्पर्श व दिशा-ज्ञान (जैसे छड़ी से कंपन समझना, कमरे की ध्वनि-गूंज से दूरी आंकना) अधिक पैना होता है। स्मृति और ध्यान सामान्य लोगों की तुलना में बेहतर विकसित हो सकते हैं। वे किसी भी वस्तु को छू कर बता देते हैं, वह क्या है? यानि उनकी अंगुलियों की त्वचा बहुत संवेदना से भर जाती है। इसी संवेदना का उपयोग पढाई के लिए ब्रेल लिपी में उपयोग किया जाता है। ब्रेल लिपी दृष्टिबाधित (नेत्रहीन) व्यक्तियों के लिए विकसित एक स्पर्श आधारित लेखन प्रणाली है। इसे उंगलियों से छूकर पढ़ा जाता है। इसका आविष्कार लुई ब्रेल (स्वनपे ठतंपससम) ने 1824 में किया था।
मान्यता है कि उनकी छठी इन्द्री भी अधिक सक्रिय होती है। बहुत-से लोग नेत्रहीनों के बारे में यह अनुभव करते हैं कि वे किसी व्यक्ति की उपस्थिति, उसके भाव या कमरे का माहौल बहुत जल्दी भाँप लेते हैं। वास्तव में यह “छठी इन्द्रिय” नहीं, बल्कि सुपर-संवेदी अवलोकन है। यानी वे ध्वनि, चाल, सांसों की लय, हवा के दबाव, हल्के कंपन, गंध जैसे सूक्ष्म संकेतों पर अधिक ध्यान देते हैं, जिन्हें सामान्य व्यक्ति नजर पर निर्भर रहने के कारण अनदेखा कर देता है।