तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, जुलाई 29, 2012

टीम अन्ना : मीठा मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू


मीडिया हकीकत दिखाए तो टीम अन्ना को बर्दाश्त नहीं
अब तक तो माना जाता था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा की घोर प्रतिक्रियावादी संगठन हैं और उन्हें अपने प्रतिकूल कोई प्रतिक्रिया बर्दाश्त नहीं होती, मगर टीम अन्ना उनसे एक कदम आगे निकल गई प्रतीत होती है। मीडिया और खासकर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर उसकी तारीफ की जाए अथवा उसकी गतिविधियों को पूरा कवरेज दिया जाए तो वह खुश रहती है और जैसे ही कवरेज में संयोगवश अथवा घटना के अनुरूप कवरेज में कमी हो अथवा कवरेज में उनके प्रतिकूल दृश्य उभर कर आए तो उसे कत्तई बर्दाश्त नहीं होता।
विभिन्न विवादों की वजह से दिन-ब-दिन घट रही लोकप्रियता के चलते जब इन दिनों दिल्ली में चल रहे टीम अन्ना के धरने व अनशन में भीड़ कम आई और उसे इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने दिखाया तो अन्ना समर्थक बौखला गए। उन्हें तब मिर्ची और ज्यादा लगी, जब यह दिखाया गया कि बाबा रामदेव के आने पर भीड़ जुटी और उनके जाते ही भीड़ भी गायब हो गई। शनिवार को हालात ये थी कि जब खुद अन्ना संबोधित कर रहे थे तो मात्र तीस सौ लोग ही मौजूद थे। इतनी कम भीड़ को जब टीवी पर दिखाए जाने लगा तो अन्ना समर्थकों ने मीडिया वालों को कवरेज करने से रोकने की कोशिश तक की।
टीम अन्ना की सदस्य किरण बेदी तो इतनी बौखलाई कि उन्होंने यह आरोप लगाने में जरा भी देरी नहीं की कि यूपीए सरकार ने मीडिया को आंदोलन को अंडरप्ले करने को कहा है। उन्होंने कहा कि इसके लिए केंद्र सरकार ने बाकायदा चि_ी लिखी है। उसे आंदोलन से खतरा महसूस हो रहा है।  ऐसा कह कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि टीम अन्ना आंदोलन धरातल पर कम, जबकि टीवी और सोशल मीडिया पर ही ज्यादा चल रहा है। यह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि टीवी और सोशल मीडिया के सहारे ही आंदोलन को बड़ा करके दिखाया जा रहा है। इससे भी गंभीर बात ये कि जैसे ही खुद के विवादों व कमजोरियों के चलते आंदोलन का बुखार कम होने लगा तो उसके लिए आत्मविश्लेषण करने की बजाया पूरा दोष ही मीडिया पर जड़ दिया। ऐसा कह कर उन्होंने सरकार को घेरा या नहीं, पर मीडिया को गाली जरूर दे दी। उसी मीडिया को, जिसकी बदौलत आंदोलन शिखर पर पहुंचा। यह दीगर बात है कि खुद अपनी घटिया हरकतों के चलते आंदोलन की हवा निकलती जा रही है। ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि क्या वाकई मीडिया सरकार के कहने पर चलता है? यदि यह सही है तो क्या वजह थी कि अन्ना आंदोलन के पहले चरण में तमाम मीडिया अन्ना हजारे को दूसरा गांधी बताने को तुला था और सरकार की जम की बखिया उधेड़ रहा था? हकीकत तो ये है कि मीडिया पर तब ये आरोप तक लगने लगा था कि वह सुनियोजित तरीके से अन्ना आंदोलन को सौ गुणा बढ़ा-चढ़ा कर दिखा रहा है।
मीडिया ने जब अन्ना समर्थकों को उनका आइना दिखाया तो सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बौखलाते हुए मीडिया को जम कर गालियां दी गईं। एक कार्टून में कुत्तों की शक्ल में तमाम न्यूज चैनलों के लोगो लगा कर दर्शाया गया कि उनको कटोरों में सोनिया गांधी टुकड़े डाल रही है। मीडिया को इससे बड़ी कोई गाली नहीं हो सकती।
एक बानगी और देखिए। एक अन्ना समर्थक ने एक न्यूज पोर्टल पर इस तरह की प्रतिक्रिया दी है:-
क्या इसलिए हो प्रेस की आजादी? अरे ऐसी आजादी से तो प्रेस की आजादी पर प्रतिबन्ध ही सही होगा । ऐसी मीडिया से सडऩे की बू आने लगी है। सड़ चुकी है ये मीडिया। ये वही मीडिया थी, जब पिछली बार अन्ना के आन्दोलन को दिन-रात एक कर कवर किया था। आज ये वही मीडिया जिसे सांप सूंघ गया है। ये इस देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा की कुछ लोग इस देश की भलाई के लिए अपना सब कुछ छोड़ कर लगे है, वही हमारी मीडिया पता नहीं क्यों सच्चाई को नजरंदाज कर रही है। इससे लोगों का भ्रम विश्वास में बदलने लगा है। कहीं हमारी मीडिया मैनेज तो नहीं हो गई है? अगर मीडिया आम लोगों से जुडी सच्चाई, इस देश की भलाई से जुड़ी खबरों को छापने के बजाय छुपाने लगे तो ऐसी मीडिया का कोई औचित्य नहीं। आज की मीडिया सिर्फ पैसे के ही बारे में ज्यादा सोचने लगी है। देश और देश के लोगों से इनका कोई लेना-देना नहीं। आज की मीडिया प्रायोजित समाचार को ज्यादा प्राथमिकता देने लगी है।
रविवार को जब छुट्टी के कारण भीड़ बढ़ी और उसे भी दिखाया तो एक महिला ने खुशी जाहिर करते हुए तमाम टीवी चैनलों से शिकायत की वह आंदोलन का लगातार लाइट प्रसारण क्यों नहीं करता? गनीमत है कि मीडिया ने संयम बरतते हुए दूसरे दिन भीड़ बढऩे पर उसे भी उल्लेखित किया। यदि वह भी प्रतिक्रिया में कवरेज दिखाना बंद कर देता तो आंदोलन का क्या हश्र होता, इसकी कल्पना की जा सकती है।
कुल मिला कर ऐसा प्रतीत होता है कि टीम अन्ना व उनके समर्थक घोर प्रतिक्रियावादी हैं। उन्हें अपनी बुराई सुनना कत्तई बर्दाश्त नहीं है। यदि यकीन न हो तो सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जरा टीम अन्ना की थोड़ी सी वास्तविक बुराई करके देखिए, पूरे दिन इसी काम के लिए लगे उनके समर्थक आपको फाड़ कर खा जाने तो उतारु हो जाएंगे।
वस्तुत: टीम अन्ना व उनके समर्थक हताश हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि जिस आंदोलन ने पूरे देश को एक साथ खड़ा कर दिया था, आज उसी आंदोलन में लोगों की भागीदारी कम क्यों हो रही है।

-तेजवानी गिरधर