तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

बुधवार, जून 06, 2012

वसुंधरा को डुबाने वाले माथुर अब उनके मुरीद कैसे हो गए?

प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे व संघ लॉबी के बीच चल रहे विवाद पर हालांकि भाजपा हाईकमान ने अंतिम निर्णय नहीं दिया है अथवा निर्णय किया भी है तो उसे घोषित नहीं किया है, या फिर घोषणा करने से होने वाले संभावित नुकसान के कारण फिलहाल चुप है, मगर प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर को कुछ ज्यादा ही जल्दी है। उन्होंने तो घोषित कर ही दिया है कि राजस्थान में आगामी चुनाव भाजपा श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही लड़ेगी। ये स्थिति तब है, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के वसुंधरा को भावी मुख्यमंत्री होने पर गुलाब चंद कटारिया व ललित किशोर चतुर्वेदी ने असहमति जताई थी और उसकी परिणति कटारिया की यात्रा के विवाद के रूप में पार्टी को झेलनी पड़ी।
हालांकि अंदरखाने की खबर यही है और भाजपा के पास मौजूदा हालात में वसुंधरा राजे के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है, मगर चूंकि साफ तौर पर वसुंधरा का नाम घोषित करने से संघ खेमा सक्रिय हो जाएगा और पार्टी में पहले से मौजूद धड़ेबाजी और बढ़ जाएगी, इस कारण हाईकमान ने फिलहाल मौन धारण कर रखा है, मगर माथुर हाल ही अजमेर आए तो पत्रकारों से बात करते हुए घोषणा कर गए, मानों उन्हें ऐसा करने के लिए अधिकृत किया गया हो। माना कि सवाल पत्रकारों ने ही उठाया था, मगर माथुर तो मानों इसी सवाल का इंतजार कर रहे थे, ताकि वसुंधरा के प्रति अपनी वफादारी जता सकें। उनकी इस घोषणा से एक बार फिर पार्टी के भीतर बहस छिड़ गई है। विशेष रूप से यह कि आज अचानक माथुर का वसुंधरा प्रेम कैसे जाग गया?
पार्टी नेताओं को अच्छी तरह से याद है कि पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के लिए जो कारण तलाशे गए थे, उनमें एक यह भी था कि टिकट वितरण में माथुर का अडिय़ल रवैया तकलीफ दे गया। हाईकमान तो समझ रहा था कि अगर दुबारा सत्ता में आना है तो वसुंधरा को फ्री हैंड देना ही होगा, मगर माथुर अड़ गए और अपने कुछ चहेतों को टिकट दिलवाने के चक्कर में कुछ सीटें हरवा दीं। अगर वे उस वक्त जिद नहीं करते तो वसुंधरा के दुबारा मुख्यमंत्री बनने में कोई बाधा नहीं थी। इसका परिणाम ये हुआ कि जब पार्टी की हार की समीक्षा की गई तो इसके लिए माथुर को भी जिम्मेदार माना गया। और यही वजह थी कि उन्हें हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद छोडऩा पड़ा। हालांकि हार जिम्मेदारी वसुंधरा पर भी आयद की गई, इसी कारण उन्हें विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद छोडऩे को कहा गया। ये बात दीगर है कि अधिसंख्य विधायकों के समर्थन की वजह से कई दिन तक तो उन्होंने पद नहीं छोड़ा और छोड़ा भी तो किसी और को उस पद पर काबिज नहीं होने दिया। आखिरकार एक साल बाद फिर उन्हें ही अनुनय विनय करके यह पद संभालने को कहा गया।
खैर बात चल रही थी माथुर की तो जैसे ही उन्होंने वसुंधरा के नेतृत्व में चुनाव लडऩे की बात कही तो सभी चौंके कि इस बार कौन सी गणित ले कर आने वाले हैं। कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि कहीं उन्हें पुन: अध्यक्ष पद सौंप कर वसुंधरा के नेतृत्व में चुनाव लडऩे की रणनीति तो नहीं बनाई जा रही या वे हकीकत से वाकिफ हैं, इस कारण अपने चहेतों की टिकटें पक्की करने के लिए अभी से वसुंधरा जिंदाबाद कह रहे हैं। वे फिर महत्वपूर्ण भूमिका में होंगे, इसके संकेत उन्होंने यह कह कर भी दिये कि अगर वे पिछले दिनों में जयपुर में हुई कोर कमेटी की बैठक में होते तो वरिष्ठ नेता गुलाब चंद कटारिया के यात्रा विवाद को तूल नहीं पकडऩे देते। उनके इस कथन को राजस्थान पत्रिका ने डींग हांकने की संज्ञा तो दी ही, साथ यह भी खुलासा किया कि वे कोर कमेटी की बैठक में मौजूद थे। पत्रकारों से प्रतिप्रश्न किया तो सरासर झूठ ही बोल गए कि वे उस दिन जैसलमेल में थे, मीडिया को गलत जानकारी है कि वे बैठक में मौजूद थे। वे झूठ क्यों बोले, इसका तो पता नहीं, मगर पार्टी नेता उनके इस बयान पर जरूर गौर कर रहे हैं कि वे यह दावा कैसे कर सकते हैं? जिस व्यक्ति की जिद के चक्कर में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा हो वही अगर ये कहे कि वे होते तो विवाद नहीं होता, हास्यास्पद ही लगता है।
खैर, जो भी हो, माथुर की बॉडी लैंग्वेज यही बता रही थी कि वे फिर महत्वपूर्ण भूमिका में आ रहे हैं। उनके अब अहम रोल अदा करने को पार्टी के अन्य नेता व कार्यकर्ता और विशेष रूप से टिकट के दावेदार किस रूप में लेते हैं, इस बात को छोड़ भी दिया जाए तो वसुंधरा को तो कम से सोच समझ कर चलना होगा। कहीं वे फिर वसुंधरा को मिलने वाले फ्री हैंड में फच्चर तो नहीं डालेंगे। 

-तेजवानी गिरधर
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