तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

मंगलवार, जून 03, 2025

भगवान दयालु नहीं?

एक कहावत है कि जो होता है, वह अच्छे के लिए होता है अथवा जो होगा, वह अच्छे के लिए होगा। मैं इससे तनिक असहमत हूं। मेरी नजर में हमारे साथ वह होता है, जो उचित होता है। उसकी वजह ये है कि प्रकृति अथवा जगत नियंता को इससे कोई प्रयोजन नहीं कि हमारा अच्छा हो रहा है या बुरा। प्रकृति तो वही करती है, जो हमारे कर्मों व प्रारब्ध के अनुसार उचित होता है। अच्छा या बुरा तो हमारा दृष्टिकोण है। जो हमारे अनुकूल होता है, उसे हम अच्छा मानते हैं और जो प्रतिकूल होता है, उसे बुरा मानते हैं। 

वस्तुतः प्रकृति निरपेक्ष भाव से काम करती है। जैसे सूरज की रोशनी अमीर पर भी उतनी ही गिरती है, जितनी की गरीब पर। सज्जन पर भी उतनी ही, जितनी दुष्ट पर। इसी प्रकार बारिश न तो महल देखती है और झोंपड़ी, वह तो सब पर समान रूप से गिरती है। 

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जिन भी विद्वानों ने उपर्युक्त कहावत कही है, उसके पीछे हमें सकारात्मकता बनाए रखने का प्रयोजन है। अगर बुरा भी हो रहा होता है तो, जो कि उचित होता है, उसमें अच्छाई पर ही नजर रखने की प्रेरणा है। यह सही भी है कि अच्छाई व बुराई का जोड़ा है, जो अच्छा है, उसमें कुछ बुरा भी होता है और जो बुरा होता है, उसमें भी कुछ अच्छा होता है। हम निराश न हों, इसलिए कहा जाता है कि भगवान जो कर रहे हैं, उसमें जरूर हमारी भलाई है। यह सिर्फ मन को समझाने का प्रयास है। आपने यह उक्ति भी सुनी होगी- जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये। अर्थात प्रकृति जो कर रही है, उसमें राजी रहें, वही हमारी नियति है, चूंकि उसके अतिरिक्त हमारे पास कोई चारा भी नहीं है। बेहतर ये है कि हम उसे हमारे लिए उचित मान कर स्वीकार कर लें।

इसी कड़ी में यह बात जोड़ देता हूं। वो यह कि यह बात भी गलत है कि भगवान कृपा के सागर है, दयालु हैं। वे तो कर्म के अनुसार फल देते हैं। यदि बुरे कर्म करेंगे तो बुरा फल देंगे और अगर हम कर्म अच्छे करते हैं तो वह उसके अनुरूप अच्छा फल देने को प्रतिबद्ध हैं। दयालु तो तब मानते, जब कि हम कर्म तो बुरे करें और भगवान की कृपा से फल अच्छा मिले। ऐसे में कर्म का सिद्धांत झूठा हो जाता। पुनः दोहराता हूं कि परम सत्ता निरपेक्ष है। दया व क्रोध को वहां कोई स्थान नहीं। हां, इतना जरूर है कि चूंकि हमें कर्म करने की स्वतंत्रता मिली हुई है, इस कारण हम अच्छे कर्म करके बुरे कर्मों के प्रभाव को कम कर सकते हैं। 

मेरे ख्याल में एक बात और है। सही या गलत, पता नहीं। वो यह कि यदि हम बुरा कर्म कर चुके हैं और उसके बाद भगवान की भक्ति करते हैं, अनुनय-विनय करते हैं, माफी मांगते हैं, तो प्रायश्चित करने के उस भाव की वजह से, सच्चे दिल से गलती मानने से, कदाचित बुरे कर्म का बंधन कुछ कट जाने का भी सिद्धांत हो, जिसकी वजह से बुरे कर्म का उतना बुरा फल न मिलता हो, इस कारण भगवान को दयालु बताया जाता हो।

कुल जमा बात ये है कि यदि हम हमारा भला चाहते हैं तो अच्छे कर्म करें, बुरे कर्म करके ऐसी नौबत ही क्यों लाएं कि माफी की अर्जी लगानी पडें।


https://www.youtube.com/watch?v=MpE2nmTdOeQ

क्या एआई श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद रिकार्ड कर पाएगा?

दोस्तो, नमस्कार। इन दिनों आर्टिफिषियल इंटेलिजेंस का बोलबाला है। अनेक आयामों में उसकी सफलता देख कर सभी अचंभित हैं। उसके जरिए ब्रह्मांड के ऐसे रहस्यों की खोज हो रही है, जिसक कल्पना तक नहीं की गई थी। ऐसे में एक सवाल उभर कर आया है। कि महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृश्ण ने अर्जुन को गीता का जो उपदेष दिया गया था, उस संवाद को क्या रिकार्ड किया जा सकता है? ज्ञातव्य है कि गीता कोई लिखित ग्रंथ नहीं है, बल्कि श्रीकृश्ण-अर्जुन संवाद है। विज्ञान के अनुसार कोई भी ध्वनि कभी नश्ट नहीं होती। ब्रह्मांड में कहीं न कहीं मौजूद रहती है। इसी को ख्याल में रखते हुए किसी समय में ओषो ने कुछ वैज्ञानिकों के समूह को यह काम सौंपा था। कि उस संवाद को रिकार्ड किया जाए। सैद्धांतिक रूप से यह माना जाता था कि रिकार्डिंग संभव है। ओषो के निधन के बाद बात आई गई हो गई। आज जब एआई ने नई खोजों से चमत्कृत कर रखा है, यह सवाल उठा है कि क्या उसके जरिए श्रीकृश्ण-अर्जुन संवाद को रिकार्ड किया जा सकता है।

इस बारे में एआई के जानकारों का कहना है कि श्रीमद्भगवद् गीता वास्तव में श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद है, जो महाभारत के युद्धभूमि कुरुक्षेत्र में हुआ था। यह संवाद लगभग 5,000 वर्ष पूर्व घटित हुआ माना जाता है और इसे श्रुति अर्थात श्रवण से प्राप्त ज्ञान और शाश्वत सत्य के रूप में देखा जाता है, जो केवल शब्दों से नहीं, बल्कि अनुभव और चेतना की उच्च अवस्था से जुड़ा हुआ है। ताजा स्थिति ये है कि एआई वर्तमान में केवल उन ध्वनियों को रिकॉर्ड या पुनर्निर्मित कर सकता है जो कभी भौतिक रूप से उत्पन्न हुई हों और उनका कोई रिकॉर्ड मौजूद हो। चूंकि श्रीकृष्ण-अर्जुन का वास्तविक संवाद (ध्वनि रूप में) 5,000 वर्ष पहले हुआ और कोई भी यंत्र उस समय मौजूद नहीं था, इसलिए उस मूल ध्वनि को वह रिकॉर्ड नहीं कर सकता। कुछ वैज्ञानिक विचार (जैसे कि अकाश तत्व में ध्वनि का संग्रह क्वांटम रेजोनेंस आदि) यह संकेत करते हैं कि ब्रह्मांड में हर ऊर्जा, हर ध्वनि कहीं न कहीं प्रतिध्वनित होती है। यदि भविष्य में कोई ऐसी तकनीक बनती है जो ब्रह्मांडीय ध्वनि-अवशेष अर्थात कॉस्मिक साउंड इंप्रिंट्स को डिकोड कर सके, तब सैद्धांतिक रूप से शायद उस संवाद का कंपन पकड़ा जा सके। पर यह अभी कल्पना के क्षेत्र में ही है।

भारतीय दर्शन में कहा गया है कि गीता का ज्ञान अपौरुषेय (मनुष्य द्वारा न रचित) है, वह अनादि और शाश्वत है।

योगियों और ऋषियों के अनुसार, उस ध्वनि को केवल ध्यान, आंतरिक चेतना और श्रवण यानि इनर हियरिंग से अनुभव किया जा सकता है, न कि बाहरी यंत्रों से। इसे नाद या ओंकार के रूप में भी जाना जाता है, जिसे सूक्ष्म रूप में केवल अनुभवी साधक ही सुन सकते हैं। निश्कर्श यह कि उस मूल गीता संवाद की ध्वनि को वर्तमान में या निकट भविष्य में रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता।