राजस्थान सरकार के पर्यटन दस्तावेज में उल्लेख है कि बांसवाड़ा के निकट स्थित बेणेश्वर धाम (जिसे वागड़ प्रयाग के नाम से भी जाना जाता है), त्रिवेणी संगम यानी सोम, माही और जाखम नदियों के मिलन स्थल पर मावजी महाराज की तपोस्थली स्थित है, जहां ब्रह्मा जी का भी मंदिर मौजूद है। आदिवासी यहां बड़ी संख्या में आते हैं, खासकर माघ पूर्णिमा को।
हरियाणा के फरीदबाद गांव असोटी में भी ब्रह्मा जी मंदिर है।
इसी प्रकार तमिलनाडू के तिरूपत्तूर में भी ब्रह्मा जी का मंदिर है, जहां लोग भाग्य सुधारने के लिए पूजा करते हैं। मान्यता है कि यहां ब्रह्मा ने पुनः सृजन कार्य किया था।
इसी प्रकार तमिलनाडू के थंजावुर जिले में कंबहम में ब्रह्माजी का मंदिर है। बांसवाडा जिले के त्रिवेणी संगम पर भी मावजी महाराज की तपोस्थली पर एक ब्रह्मा मंदिर स्थित है। यह क्षेत्र आदिवासी संस्कृति और संत परंपरा से जुड़ा है।
पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने झूठ बोलकर यज्ञ में स्थान पाने की कोशिश की थी और भगवान शिव ने उन्हें शाप दिया कि उनकी पूजा धरती पर नहीं होगी। इसी कारण उनके मंदिर दुर्लभ हैं।
नसीराबाद के वरिश्ठ पत्रकार श्री सुधीर मित्तल ने बताया कि लोहरवाडा स्थित रामपुरा तेजाजी धाम पर भी ब्रह्माजी का मंदिर है। धाम के उपासक श्री रतन जी प्रजापति का कहना है कि ऐसी धारणा है कि जो भी ब्रह्माजी का मंदिर बनवाता है, वह मर जाता है। लेकिन बारह साल से भी अधिक हो चुके हैं, उन्हें बुखार तक नहीं आया।