वस्तुतः जिसे हम सत्य मानते हैं या जानते हैं, वह कभी पूर्ण नहीं होता। सदैव अपूर्ण ही होता है। वजह यह कि हमारी बौद्धिक क्षमता पूर्ण सत्य को देखने की है ही नहीं। होता तो उसका विपरीत भी सत्य ही है, मगर हमें दिखाई नहीं देता, इस कारण हमारे हिसाब से वह असत्य होता है। दोनों एक साथ केवल विषेश स्थिति में ही दिखाई दे सकते हैं। कन्फ्यूषिस का कथन संत कबीर इन वक्तव्यों जैसा है- मछली चढ गई रूख और दरिया लागी आग। इनका अर्थ है मछली पेड पर चढ गई और सागर में आग लग गई। ये कथन सरासर झूठे और गप्प लगते हैं। भला मछली पेड पर कैसे चढ सकती है। और सागर में आग कैसे लग सकती है। इन दोनों में विरोधाभास साफ नजर आता है, मगर संत कबीर उस स्थिति का जिक्र कर रहे हैं, जहां दोनों विरोधी तत्व एक साथ नजर आने लग जाते हैं। जैसे जब अंधेरा नजर आता है तो प्रकाष नजर नहीं आता। एक बार में दोनों में से केवल एक ही की उपस्थिति हो सकती है। दोनों एक साथ नजर नहीं आ सकते। मगर एक अवस्था ऐसी भी होती है, जहां अंधेरा व प्रकाष एक साथ नजर आते हैं। वस्तुतः यह जगत द्वैत है। द्वैत से ही बना है। दोनों तत्व विपरीत हैं, मगर दोनों आवष्यक हैं। दोनों से मिल कर ही जगत बना हुआ है। अतः दोनों ही सत्य हैं।
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