इसी प्रकार का अनुभव मैने अपनी माताश्री के निधन पर किया। निधन के बाद तीन दिन तक मैने साफ महसूस किया कि जिस कमरे में वे सोती थीं, वहां गुलाब की महक बिखरी हुई थी। मैं चकित था। विष्वास ही नहीं हो रहा था। अच्छी तरह से पता किया कि किसी ने कोई परफ्यूम तो नहीं लगा रखा। या अगरबत्ती तो नहीं जलाई हुई है। पाया कि ऐसा कुछ भी नहीं था। खुषबू स्वतः ही आ रही थी। मैं समझ गया कि वे गंध के जरिए अपनी उपस्थिति दर्षा रही हैं।
ऐसी मान्यता भी है कि सुगंध देवी देवताओं, जिन्न आदि का भोजन है। इसी कारण हम पूजा के दौरान खुषबूदार अगरबत्ती जलाते हैं, ताकि वे प्रसन्न हो।
उल्लेखनीय है कि भूत-प्रेत और लोक कथाओं में मृतात्मा की उपस्थिति को सड़ी-गली चीजों की गंध या अचानक आई किसी अप्राकृतिक सुगंध से जोड़ा जाता है।
जो लोग ध्यान, पूजा या किसी विशेष साधना में लीन होते हैं, वे कभी-कभी कुछ खास गंधों को अनुभव करते हैं, जिसे वे किसी आत्मा या देवता का संकेत मानते हैं। वैसे उनके साथ गंध का जुड़ाव वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है। इस बारे में वैज्ञानिक दृश्टि कोण है कि कुछ मामलों में मनोवैज्ञानिक या भावनात्मक अनुभव के कारण गंध महसूस हो सकती है, जिसे साइकोसेंसरी अनुभव कहा जाता है। इसी प्रकार यादों और भावनाओं के कारण मस्तिष्क कभी-कभी गंधों को महसूस कर सकता है, भले ही वह वास्तव में वहां न हो। ज्ञातव्य है कि गंध, स्वाद, ध्वनि और दृष्य हमारी स्मृति में संग्रहित रहते हैं।
कुल मिला कर मृतात्मा की गंध का अनुभव मुख्यतः विश्वास और भावनाओं पर निर्भर करता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे प्रमाणित करना मुश्किल है। प्रसंगवष बता दें कि हर प्राणी की भिन्न भिन्न गंध होती है, यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है।