तीसरी आंख

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गुरुवार, सितंबर 06, 2012

अपनी टीम के सदस्यों से पिंड छुड़ाना चाहते हैं अन्ना?


क्या अरविंद केजरीवाल व अन्य की अपनी पुरानी टीम से अन्ना हजारे पिंड छुड़ाना चाहते हैं और नई टीम का गठन करने का मानस रखते हैं? यह सवाल अन्ना समर्थकों को किंकर्तव्यविमूढ़ किए हुए है। वे समझ ही नहीं पा रहे कि ऐसे में क्या करें? केवल अन्ना से जुड़े रह कर आंदोलन के साथ जुड़े रहें अथवा अरविंद केजरीवाल की संभावित राजनीतिक पार्टी के साथ जुड़ कर सक्रिय रूप से राजनीति में शामिल हों? वस्तुत: अन्ना समर्थक बाकायदा दो धाराओं में बंट गए हैं। जिनके दिल और दिमाग के किसी भी कोने में राजनीति का जीवाणु नहीं था, वे तो अन्ना हजारे के साथ ही जुड़े रहना चाहते हैं, जबकि आंदोलन से जुड़ कर अपनी जमीन तैयार कर रहे कार्यकर्ता केजरीवाल के साथ जुड़ कर अपना राजनीतिक भविष्य संवारने की फिराक हैं। और यही वजह है कि अनेक ऐसे लोग, जो यदा कदा अन्ना आंदोलन से जुड़े रहे, नई राजनीतिक पार्टी में स्थान बनाने की जुगत बैठा रहे हैं।
जंतर-मंतर के मंच से राजनीतिक विकल्प देने का ऐलान करने वाले अन्ना ने हाल ही साफ कर दिया है कि वे न तो पार्टी बनाएंगे और न ही चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने एक टीवी चैनल से बातचीत में यह भी कहा कि अगर अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी चुनाव लड़ते हैं तो वे उनका प्रचार भी नहीं करेंगे। उनके इस बयान से यह लगभग साफ है कि अन्ना अपनी पुरानी टीम के सदस्यों से पिंंड छुड़ाना चाहते हैं। उन्होंने नए ऐक्शन प्लान का ऐलान कर दिया है। उनका कहना है कि वे आंदोलन के जरिए सिर्फ जनता को जगाने के पक्ष में हैं, जिससे जनता योग्य उम्मीदवारों को चुन कर संसद और विधानसभाओं में भेज सके। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे चुनाव में 90 फीसदी से ज्यादा वोटिंग तय करें। महाराष्ट्र के एंटी-करप्शन ऐक्टिविस्ट्स से खास तौर पर अपील करते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव लडऩे के लिए राजनीतिक पार्टी बनाने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन लोगों को एक विकल्प देना जरूरी है। हमें लोगों को जागरूक करना होगा। अन्ना हजारे ने कहा कि अगर करप्शन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन सीमित तौर पर होता रहा और कुछ ही लोगों को न्याय मिला तो यह मुहिम सिर्फ शिकायत निवारण केंद्र बन कर रह जाएगी। अन्ना ने छह पॉइंट्स पर काम करने का प्रस्ताव दिया। इनमें साफ इमेज वाले कैंडिडेट को वोट, राइट टु रिजेक्ट की सुविधा, ग्राम सभा को ज्यादा अधिकार, सिटीजन चार्टर, सरकारी दफ्तरों में कामकाज में देरी पर रोक और पुलिस को लोकपाल /लोकायुक्त के दायरे में लाना शामिल है।
वस्तुत: अन्ना हजारे अपनी पुरानी टीम के राजनीतिक पार्टी बनाने के फैसले के सख्त खिलाफ थे। अन्ना कतई नहीं चाहते थे कि टीम हाल-फिलहाल राजनीति की तरफ कदम बढ़ाए। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की सूचना को सही मानें तो अन्ना पार्टी बनाने के इस कदर खिलाफ थे कि उन्होंने पार्टी बनाने के विरोध में जंतर-मंतर पर टीम के सदस्यों के बीच महात्मा गांधी के एक भाषण की प्रतियां सर्कुलेट की थीं। गांधी के इस भाषण का शीर्षक था- आप अभी तैयार नहीं हैं। दरअसल अन्ना गांधी के जरिए टीम को यह बताना चाहते थे कि वह गलत दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। पॉलिटिकल पार्टी बनाने पर अन्ना ने टीम से कई तीखे सवाल भी पूछे थे। उनके सवाल थे, फंड कहां से लाओगे? पार्टी के कामकाज के लिए कैसे जुटेगा फंड? साथ ही अन्ना ने यह भी पूछा था कि यह कैसे तय होगा कि कौन चुनाव लड़ेगा? अन्ना चाहते थे कि फिलहाल राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला टाल देना चाहिए। मगर जिस मुकाम पर टीम अन्ना का आखिरी अनशन आ कर खड़ा हो गया था, उसमें टीम को डोमिनेट कर रहे केजरीवाल के पास कोई चारा नहीं रह गया और उन्होंने अन्ना पर दबाव बनाया कि राजनीतिक विकल्प का ऐलान कर आंदोलन समाप्त कर दिया जाए। मौके पर मजबूरी में अन्ना ने ऐसा कर दिया, मगर उसकी जब चहुं ओर छीछालेदर हुई तो अन्ना ने अपनी टीम से अलग होने का निर्णय कर लिया। इतना ही नहीं टीम का काम समाप्त होने का तर्क दे कर टीम भंग भी कर दी। ऐसे में जब केजरीवाल के पास कोई चारा नहीं रहा तो उन्होंने खुद के नेतृत्व में ही कोयला घोटाले के मामले में दिल्ली में कांगेस व भाजपा के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन कर डाला। इसी के साथ टीम की अहम सदस्य किरण बेदी ने मतभेद का खुलासा कर अपने आप को अलग कर लिया। आंदोलन व टीम की यह दुर्गति देख कर अन्ना के समर्थक असमंजस में हैं। अब देखना ये होगा कि आगे चल कर दो धाराएं बाकायदा अलग ही हो जाती हैं अथवा उनमें सुलह का कोई रास्ता निकल पाता है।
-तेजवानी गिरधर