तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शनिवार, मार्च 01, 2014

भाजपा मोदी लहर पर ही सवार हो तोरण मारना चाहती है

विधानसभा चुनाव में प्रचंड और ऐतिहासिक बहुमत से बौराई भाजपा  की सरकार लोकसभा चुनाव के लिए जहां अब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी की लहर के भरोसे है, वहीं कांग्रेस के पास डेमेज कंट्रोल के लिए पर्याप्त वक्त ही नहीं है, सो वह लगभग भगवान भरोसे रहने को मजबूर है।
असल में विपक्ष में रही भाजपा को अपने संगठनात्मक हालात के चलते ये कल्पना भी नहीं थी कि उसे जनता बेशुमार वोटों से नवाज देगी। अलबत्ता उसे यह उम्मीद जरूर थी कि कुछ केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस नीत सरकार के प्रति महंगाई व भ्रष्टाचार के मुद्दे से उपजी नाराजगी और कुछ मोदी लहर के सहारे बहुमत लायक आंकड़ा तो हासिल हो ही जाएगा। ज्ञातव्य है कि पूरे चार साल तक श्रीमती वसुंधरा राजे के राजस्थान में कुछ खास रुचि नहीं लेने के कारण भाजपा की अंदरूनी हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी। पूरी भाजपा वसुंधरा समर्थकों व संघ लॉबी के बीच बंटी हुई थी। चुनाव के मद्देनजर हाईकमान के दबाव में सुलह हुई और वसुंधरा ने सुराज संकल्प यात्रा निकाल कर अपनी चार साल की लापरवाही को धोने का प्रयास किया। भूूलने की बीमारी से ग्रसित जनता ने न केवल उन्हें माफ कर दिया, अपितु जनसभाओं में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेकर यह जता दिया कि वह उनके स्वागत को आतुर है। बावजूद इसके भाजपा को यह कल्पना तक नहीं थी उसे अपार जनसमर्थन हासिल हो जाएगा। इसके अपने कारण भी थे। एक तो अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार का परफोरमेंस बहुत खराब नहीं था। जनता को लुभाने वाली कुछ योजनाएं मध्यकाल में तो कुछ आखिरी दौर में शुरू किए जाने के कारण भाजपा को डर था कि कहीं इनसे प्रभावित हो कर जनता का रुख कांग्रेस की ओर न मुड़ जाए। कदाचित तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी आशा थी कि उनका जादू का पिटारा आखिरी वक्त में काम कर जाएगा। मगर हुआ एकदम उलटा। जनता ने जमानेभर के लाभ हासिल करने के बाद भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। कांग्रेस के लिए यह जबरदस्त झटका था तो भाजपा के लिए आश्चर्यजनक सुखद तोहफा। अच्छे अच्छे राजनीतिविद भी चकित थे कि ये क्या हुआ? कोई भी इसका ठीक से आकलन नहीं कर पा रहा था। कांग्रेस के चौखाने चित्त होने के बाद खुद जनता में भी यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्या गहलोत सरकार इतनी भ्रष्ट, नकारा और बेकार थी कि उसे इतनी बुरी तरह से निपटा दिया। सच तो ये है कि निष्पक्ष राजनीतिज्ञों के लिए भी यह एक गुत्थी हो गया कि आखिर जनता आखिर क्या चाहती है? वह क्या सोच कर वोट करती है? उसे कैसे रिझाया जा सकता है? असल में यह वह गुस्सा था जो केन्द्र सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन की वजह से उपजा था। वह एक बार जम कर फटना चाहता था। हालांकि भाजपा ने मोदी को प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को और मजबूत करने के लिए इसे मोदी लहर के रूप में प्रोजेक्ट किया, मगर वाकई ऐसा था नहीं। मोदी का असर था, मगर उसे लहर कहना अतिशयोक्तिपूर्ण ही होगा। सवाल ये उठता है कि अगर वह लहर थी तो दिल्ली में क्यों नहीं चली, वहां भी मोदी ने सभाएं कर पूरी ताकत झोंकी थी।
खैर, एक बार और भी नजर आई। वो यह कि जनता ने इसे लोकसभा चुनाव समझ कर वोट डाल दिया और गहलोत सरकार बुरी तरह से निपट गई। हालांकि सीधे तौर पर इसके लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराने का साहस किसी में नहीं था, मगर खुसरफुसर यही सुनाई दी कि कांग्रेस की हार की प्रमुख वजह केन्द्र के प्रति नाराजगी ही थी।
अब जब कि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, राजनीतिक पंडित इस बात पर माथापच्ची कर रहे हैं कि इस बार क्या होगा? स्वाभाविक रूप से विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के कुछ माह बाद ही होने जा रहे लोकसभा चुनाव में भाजपा का ग्राफ ऊंचा ही रहने वाला है। हांलाकि भाजपा मोदी के नाम पर राज्य की पूरी पच्चीस सीटें हासिल करने के लिए जोर लगा रही है, मगर अंदाजा उसे भी है कि आंकड़ा बीस तक ही रहेगा। कांग्रेस को भी यही अनुमान है कि वह पांच-सात सीटें हासिल कर ले तो बहुत बड़ी बात होगी। वजह साफ है कि बुरी तरह से निपट चुकी कांग्रेस का हौसला पस्त है। हालांकि फिजां बदलने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने युवा और ऊर्जावान नेता सचिन पायलट को प्रदेश की कमान सौंपी है, मगर वह जानता है कि मात्र दो माह में वे कोई जादू करके नहीं दिखा सकते। हाल ही संसद में प्रस्तुत अंतरिम बजट के जरिए कुछ लोकलुभावन कदम उठाए गए हैं, मगर उससे कोई बहुत बड़ा चमत्कार होने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में सचिन से ज्यादा आशा करना बेमानी ही होगा। चंद दिनों में वे जर्जर हो चुके संगठन न तो पूरी तरह से बदल सकते हैं और न ही जनता पर जादू की छड़ी घुमा सकते हैं। इस कारण वे संगठन के बड़ा फेरबदल करने की बजाय प्रत्याशियों के उचित चयन पर ध्यान दे रहे हैं, ताकि अधिक से अधिक सीटें हासिल कर सकें। बाकी भगवान भरोसे है।
जहां तक भाजपा का सवाल है, प्रचंड बहुमत के दंभ और नमो-नमो  का जाप करते हुए उसने राज्य की सभी 25 सीटें आराम से अपने कब्जे में ले लेने का मिथ पाल रखा है और और इसीलिए मंहगाई व भ्रष्टाचार से त्रस्त आम आदमी को राहत देने के लिए अब तक उसने कोई ठोस व कारगर कदम नहीं उठाया है, केवल बातें ही हो रही हैं। करने को बहुत कुछ है, मगर फिलहाल इसमें उसकी कोई खास रुचि नहीं है। उसे जरूरत ही महसूस नहीं हो रही। वरना बिजली की दरें भी यहां आधी हो सकती हैं, यदि विद्युत निगमों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर पूरी तरह अंकुश लग जाए। केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लालबत्ती हटा देना या आम आदमी पार्टी की तर्ज पर सादगी का दिखावा कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। मगर चूंकि आम आदमी पार्टी का यहां कुछ खास असर नहीं इस कारण केवल मोदी की लहर पर ही सवार हो कर तोरण मारना चाहती है। ऐसे में अगर ये कहा जाए कि भाजपा को मोदी का भरोसा है तो कांग्रेस को भगवान का तो कोई अतिरंजना नहीं होगी।
-तेजवानी गिरधर
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