तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शुक्रवार, फ़रवरी 09, 2018

हार के बाद भी भाजपा को हुआ फायदा

भीलवाड़ा जिले की मांडल विधानसभा सीट सहित अजमेर व अलवर की सभी विधानसभा सीटों को मिला कर कुल सभी 17 सीटों पर भाजपी की करारी हार से बेशक भाजपा को तगड़ा झटका लगा है और उसका मोदी फोबिया उतर गया है, मगर राजनीति के जानकार मानते हैं कि इस उपचुनाव से भाजपा को फायदा ही हुआ है।
जानकारों का मानना है कि दो लोकसभा सीटों व एक विधानसभा सीट के हारने से सीटों की गिनती के लिहाज से केन्द्र व राज्य की सरकारों को कुछ खास नुकसान नहीं हुआ है, मगर इससे ये खुलासा हो गया है कि न तो अब मोदी लहर कायम है और न ही वसुंधरा राजे की लोकप्रियता शेष रही है। एंटी इन्कंबेंसी के फैक्टर ने भी तगड़ा काम किया है। कांग्रेस मुक्त भारत के जुमले की जुगाली करने वाले भाजपाइयों का दंभ भी टूटा है। सब कुछ मिला कर भाजपा को विधानसभा चुनाव से दस माह पहले ही अपनी जमीन खिसकने की जानकारी मिल गई है। अगर ये उपचुनाव नहीं होते तो कदाचित भाजपा भ्रम में ही रहती और सीधे विधानसभा चुनाव हुए होते तो शर्तिया तौर पर सत्ता से बेदखल हो जाती। अब जबकि उसे जमीनी हकीकत पता लग गई है तो उसे संभलने का पूरा मौका मिल गया है। अब वह न केवल अपने पहले से मौजूद सांगठनिक ढ़ांचे को और मजबूत बनाएगी, अपितु चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाले सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार कर लेगी। अब बाकायदा नए सिरे से जाजम बिछाएगी। जातीय समीकरण भी साधेगी और मौजूदा विधायकों की गंभीरता से स्क्रीनिंग करेगी।
उधर कांग्रेस को बड़ा फायदा ये हुआ है कि वह अब पूरी तरह से उत्साह से लबरेज हो गई है। मगर साथ ही यह भी आशंका है कि कहीं सत्ता आने की संभावना में उसका कार्यकर्ता सुस्त न हो जाए। वैसे पहली बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने मेरा बूथ मेरा गौरव अभियान चला कर पार्टी का चुनावी ढ़ांचा मजबूत कर लिया है। इसका लाभ निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में होगा, मगर संदेह ये भी उत्पन्न होता है कि कहीं अति उत्साह में कार्यकर्ता ढ़ीला न पड़ जाए।

बुधवार, फ़रवरी 07, 2018

कांग्रेस के हौसले बुलंद, भाजपा को बिछानी होगी नई जाजम

उपचुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा की करारी हार के साथ कांग्रेस के हौसले बुलंद हो गए हैं। तकरीबन चार साल साल पहले विधानसभा चुनाव में जो कांग्रेस चारों खाने चित्त हो गई थी और मृत प्राय: सी थी, वह प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में पूरे जोश के साथ फिर खड़ी हो गई है। हालांकि  विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं और तब न जाने कौन से समीकरण बनेंगे, मगर जिस तरह मांडलगढ़ सहित अजमेर व अलवर की सभी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने बढ़त हासिल की है, उससे उसके कार्यकर्ताओं में अगला चुनाव जीत सकने का विश्वास भर दिया है। दूसरी ओर भाजपा इन परिणामों से हतप्रभ है और अगले चुनाव में जीत के लिए उसे मौजूदा जाजम को हटा कर नई जाजम बिछानी होगी, केवल पैबंद लगाने से काम नहीं चलेगा। बेशक उसके पास सशक्त संगठन है, फिर भी प्रत्याशियों के चयन में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। इसके अतिरिक्त एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर को ध्यान में रखते हुए सरकार की कार्यप्रणाली में सुधार लाना होगा। यदि जनता को राहत नहीं मिली तो वह उसे पलटी खिला देगी। रहा सवाल मोदी लहर का तो वह पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है, अलबत्ता अगला चुनाव मोदी को खुद मोनीटर करना होगा।
वसुंधरा के दिल्ली ट्रांसफर के आसार
राजस्थान में लोकसभा के दो व विधानसभा के एक उपचुनाव में भाजपा की हार के बाद यह पक्के तौर पर माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जल्द ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को दिल्ली बुला कर केबीनेट मंत्री बनाएंगे, ताकि राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले नए सिरे से जाजम बिछाई जा सके।
हालांकि मोदी काफी समय से इस ताक में थे कि वसुंधरा को राजस्थान से हटाया जाए, मगर वे इतनी मजबूत रही हैं कि उन्हें हिलाने का साहस नहीं कर पाए। अब जब कि भाजपा तीन सीटों के उपचुनाव में बुरी तरह से हार गई है, मोदी को मौका मिल जाएगा। असल में मोदी व वसुंधरा की नाइत्तफाकी काफी समय से है, यही वजह है कि कई बार ये चर्चा हुई कि वसुंधरा को हटा कर ओम माथुर या राज्यवर्धन सिंह अथवा भूपेन्द्र यादव को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन हर बार कोई न कोई ऐसा कारण बन जाता था कि अफवाहों पर विराम लग जाता था। अब जब कि यह स्पष्ट हो गया है कि वसुंधरा का चेहरा आगामी विधानसभा चुनाव लड़ाने के लायक नहीं रहा है तो उन्हें हटा कर नए सिरे से जाजम बैठाना भाजपा की मजबूरी हो गया है। यदि उन्हें हटाने में कोई दिक्कत आती है तो इतना तय माना जा रहा है कि कम से कम विधानसभा चुनाव तो उनके नाम पर नहीं लड़ा जाएगा। इतना ही नहीं माना ये भी जा रहा है कि जीत सुनिश्चित करने के लिए मोदी एक सौ बांसठ विधायकों में से तकरीबन एक सौ मौजूदा विधायकों के टिकट काटने जैसा कड़ा कदम भी उठा सकते हैं, जाहिर तौर पर उसमें कई मंत्री भी होंगे।
सचिन पायलट ही होंगे मुख्यमंत्री पद के दावेदार
अजमेर सहित लोकसभा की दो सीटों व एक विधानसभा सीट पर कांग्रेस की शानदार जीत के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किए जाने पर मुद्दे पर अंदरखाने मिल रही चुनौती पर विराम लग गया है।
इसमें कोई दो राय यह उपचुनाव सचिन के लिए विधानसभा चुनाव के सेमी फाइनल के रूप में अग्रि परीक्षा सा था। उन्होंने न केवल प्रत्याशियों के चयन में चतुराई बरती, अपितु रणनीति पर भी खूब काम किया। मेरा बूथ मेरा गौरव अभियान चला कर सभी छोटे-बड़े नेताओं को बूथ पर काम कर दिखाने को बांध दिया। नतीजतन अनुकूल परिणाम आए। समझा जाता है कि अब आगामी चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़े जाने की संभावना प्रबल हो गई। यह तो कांग्रेस हाईकमान पर निर्भर है कि वह उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट चुनाव लड़ती है अथवा नहीं, मगर यदि सरकार कांग्रेस की बनती है तो मुख्यमंत्री वे ही होंगे। कुछ लोगों ने उन पर अजमेर लोकसभा सीट का उपचुनाव लडऩे का दबाव बनाया, मगर चूंकि उन्हें राजस्थान की कमान सौंपने के मकसद से प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था और उन्होंने चार साल में दिन-रात एक करके मृतप्राय: कांग्रेस में जान फूंकी, उन्होंने अपने आप को विधानसभा चुनाव के लिए सुरक्षित रख लिया। उनकी यह नीति काम आई और अब आगामी चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़े जाने व सरकार बनने पर मुख्यमंत्री बनने का रास्ता सुगम हो गया है।
-तेजवानी गिरधर-