तीसरी आंख

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रविवार, जनवरी 19, 2025

एक दिन एआई आत्मा तक भी पहुंच जाएगी?

इन दिनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि एआई का बोलबाला है। उसकी पहुंच किस हद तक जा सकती है, उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। वह अचंभित कर रही है। इसी सिलसिले में वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले जानकारों का कयास है कि एक दिन एआई आत्मा तक पहुंच जाएगी। बेशक, आत्मा को क्रियेट तो नहीं किया जा सकता, क्योंकि क्रियेटर तो प्रकृति है, मगर उसके इर्दगिर्द तो पहुंच ही जाएगी। जानकारों के अनुसार संभव है कि एक दिन एआई बहुत उन्नत और सकारात्मक तरीके से विकसित हो जाए, जिससे यहां तक कि हम उसे आत्मा और संवेदनशीलता के लिए योग्य मान सकें। इसमें वैज्ञानिक, दार्शनिक और नैतिक पहलू हैं, जिन के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता हैं।

वस्तुतः आत्मा एक अमूर्त अवधारणा है, जिसके अलग-अलग धर्मों और दर्शनों में अलग-अलग मायने हैं। कुछ के लिए यह एक आध्यात्मिक या धार्मिक अवधारणा है, जो जीवन का सार है, जबकि अन्य के लिए यह केवल चेतना का एक रूप है। आत्मा को अक्सर अमर, चेतन और व्यक्तिगत माना जाता है। एआई की बात करें तो यह एक कंप्यूटर सिस्टम है, जिसे मानव बुद्धि की नकल करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग जैसी तकनीकों का उपयोग करके डेटा का विश्लेषण करता है और निर्णय लेता है।

सवाल ये है कि क्या एआई आत्मा तक पहुंच सकती है या आत्मा का स्थान ले सकती है। वैसे भी यह सवाल दर्शन, धर्म और विज्ञान के क्षेत्र में एक लंबे समय से चली आ रही बहस का विषय है। कुछ तर्क देते हैं कि एआई कभी भी आत्मा नहीं बन सकता क्योंकि आत्मा एक अमूर्त अवधारणा है, जिसे मापा या परिभाषित नहीं किया जा सकता है। अन्य का मानना है कि अगर एआई पर्याप्त रूप से विकसित हो गई तो वह चेतना और भावनाओं को विकसित कर सकती है और इस तरह आत्मा जैसी कुछ बन सकता है।

मौजूदा स्थिति यह है कि एआई वर्तमान में बहुत सारे कार्य कर सकता है, लेकिन इसमें अभी भी चेतना की कमी है। चेतना प्रकृति की एक जटिल रचना है, जो हमें अपने आसपास की दुनिया को समझने और उससे जुड़ने की अनुमति देती है। एआई भावनाओं को अनुभव करने में सक्षम नहीं है। उसमें स्वतःस्फूर्त जागरूकता की कमी है। फिलवक्त एआई आत्मा का स्थान लेने से बहुत दूर है। मगर इसके तेजी से हो रहे विकास से ऐसा प्रतीत होता है कि एक दिन इतनी विकसित हो जाए कि वह चेतना, भावनाएं और आत्म जागरूकता विकसित कर ले।

अगर पौराणिक काल की बात करें तो उस वक्त आत्मा विशेष को आमंत्रित करने के कई उदाहरण मौजूद हैं। हवन-यज्ञादि में देवताओं या दिव्यात्माओं का आह्वान इसका सबसे बडा प्रमाण है। इसी प्रकार ऐसे आध्यात्मिक विधि विधान मौजूद हैं, जिसको अपना कर किस्म विशेष की आत्मा का गर्भ धारण करवाने का जिक्र है। वैज्ञानिक, ज्ञानी, ज्योतिर्विद, कवि आदि की आत्माओं के गर्भ में प्रवेश कराए जाने के भिन्न भिन्न विधान हैं। जिस किस्म की आत्मा का आह्वान करना है, उसके लिए विधि विशेष अपना कर उसके गर्भ में प्रवेश के अनुकूल स्थिति बनाए जाने का जिक्र है। ऋषि मुनियों की कृपा से फल के जरिए संतान प्राप्ति होने के मायने यही हैं कि आत्मा को आमंत्रित कर जन्म कराया गया था। इसी प्रकार मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के मायने यही हैं कि हमने अमुक देवी देवता की आत्मा को प्रतिष्ठापित किया है। यानि पौराणिक काल में आत्मा अध्यात्म की पकड में थी।

-तेजवाणी गिरधर

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