तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, अप्रैल 18, 2013

मोदी के इस पैंतरे के मायने क्या हैं?


वर्तमान में सर्वाधिक सशक्त व चर्चित हिंदूवादी चेहरे की बदोलत भाजपा में प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी छवि के विपरीत एक ऐसी पहल की है, जिसने राजनीतिक हलके को तो भौंचक्का किया ही है, विश्लेषकों को भी असमंजस में डाल दिया है। अकेले गुजरात दंगों के आरोप की वजह से भाजपा के धर्मनिरपेक्ष सहयोगियों के लिए अछूत बने नरेन्द्र मोदी की सरकार ने तय किया है कि वह नरोड़ा पाटिया में दोषी करार दिये गये उन दोषियों के लिए सजा-ए-मौत मांगेगी, जो अभी विभिन्न विभिन्न सजाओं के तहत जेलों में बंद हैं। ज्ञातव्य है कि नरोडा पाटिया नरसंहार के लिए बाबू बजरंगी को आजीवन कारावास मिला था, जबकि माया कोडनानी को 28 साल के जेल की सजा सुनाई गई थी। गुजरात सरकार ने तय किया है कि वह माया और बजरंगी सहित सभी दसों आरोपियों के लिए फांसी की सजा के लिए हाईकोर्ट जाएगी और अन्य 22 दोषियों के लिए सजा बढ़ाने की मांग करेगी। असल में पहल एसआईटी ने की है, मगर जिस तरह राज्य के कानून विभाग ने इसे मंजूरी दी है, उससे यह समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा उसने मजबूरी में किया है अथवा जानबूझकर सोची-समझी रणनीति के तहत। मोदी सरकार की ओर से गठित तीन सदस्यीय वकीलों का पैनल सारी तैयारी पूरी करने के बाद अगले हफ्ते गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है।
दरअसल सन् 2002 दंगों के बारे में जब तहलका ने स्टिंग ऑपरेशन किया था तो बाबू बजरंगी ने साफ कहा था कि नरेन्द्र मोदी के कहने पर ही ऐसा हुआ हुआ था। बजरंगी ने मोदी को मर्द बताते हुए दावा किया था कि वे उनको बचा लेंगे। वे मोदी के इतने कट्टर व अंध भक्त थे कि यह तक कह दिया कि हिंदू हित के लिए नरेन्द्र भाई कहेंगे तो वे अपने शरीर पर बम बांध कर विस्फोट कर देंगे। बाद में हालात बदले और कोर्ट में यही स्टिंग ऑपरेशन बतौर सबूत पेश किया गया, नतीजतन नरोडा पाटिया नरसंहार में अभियुक्त दोषी साबित किए जा सके। ऐसे में यह सवाल कौंधना स्वाभाविक है कि ऐसे  अनन्य भक्त बजरंगी और उनकी ही सरकार में मंत्री रही माया कोडनानी के लिए फांसी की सजा मांगने के लिए तैयार कैसे हो गई? हालांकि अब तक हिंदूवादी संगठनों की ओर से इस पर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं आई है, मगर मोदी के राजनीतिक गुरु रहे शंकर सिंह वाघेला ने जरूर इसे सियासी स्टंट बताया है। उन्होंने कहा है कि 2002 में मुसलमानों के कत्लेआम के बाद अब मोदी को समझ आ रहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों के बगैर नहीं जीता जा सकता, इसलिए अपनी छवि ठीक करने के लिए मोदी ऐसा करने जा रहे हैं। संभव है वाघेला की बात सही हो। लगातार सांप्रदायिकता का आरोप ढ़ो रहे और अकेले इसी वजह से बहस का मुद्दा बने मोदी को फिलवक्त इसी की जरूरत है कि वे अपने आपको सर्वस्वीकार्य बनाएं। अब देखना ये है कि मोदी के इस कदम को हिंदूवादी किस रूप में लेते हैं। मगर इतना तय है कि यह कदम बिना सोचे-समझे नहीं उठाया जा रहा।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, अप्रैल 14, 2013

दुगुने उत्साह के साथ मैदान में आ डटी है बसपा


पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी मशक्कत के बाद छह विधायकों की जीत के साथ राजस्थान में अच्छी एंट्री करने वाली बसपा इस बार दुगुने उत्साह के साथ चुनाव मैदान में उतरने जा रही है। साथ ही प्रत्याशियों के चयन में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। चयन करने में पूरी सावधानी बरती जा रही है और पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को ही आगे लाने पर ध्यान दिया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि पिछली बार छहों बसपा विधायकों ने पार्टी के साथ दगा कर कांग्रेस की शरण ले ली, जिससे पार्टी को एक बड़ा झटका लग गया। हालांकि संगठन का ढ़ांचा जरूर बच गया, मगर कहने भर तक को उसका एक भी विधायक विधानसभा में नहीं रहा था। इससे सबक लेते हुए इस बार पूरी सावधानी बरती जा रही है। साथ ही पिछले चुनाव के अनुभवी प्रत्याशियों पर अपने भरोसे को कायम रखते हुए उन्हें आगामी चुनाव के लिए फिर से एक मौका दिया जा रहा है।
पार्टी अच्छी तरह से जानती है कि भले ही आज उसका एक भी विधायक नहीं है, मगर उसका जनाधार अब भी कायम है। बसपा का राजस्थान में कितना जनाधार है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनाव में बसपा ने 199 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें से 53 सीटें ऐसी थीं, जिनमें बसपा ने 10 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। छह पर तो बाकायदा जीत दर्ज की और बाकी 47 सीटों पर परिणामों में काफी उलट-फेर कर दिया। अपने वोट बैंक के दम पर बसपा ने फिर से चुनाव मैदान में आने का आगाज कर दिया है और पूर्वी राजस्थान के लिए सबसे पहले 29 प्रत्याशियों की घोषणा करके अपने चुनावी पत्ते खोल दिए हैं। चुनाव से तकरीबन छह माह पहले कुछ प्रत्याशियों की घोषणा इस बात का प्रमाण है कि पार्टी ने पिछले झटके से हताश होने की बजाय अतिरिक्त आत्मविश्वास पैदा किया है। ऐसा करके उसने अन्य पार्टियों व राजस्थान की जनता को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह पिछले झटके से पूरी तरह उबर चुकी है और दुगुने उत्साह के साथ मैदान में आ डटी है। पार्टी का मानना है कि समय से पहले घोषित हुए प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार का भरपूर मौका मिलेगा। बसपा सुप्रीमो मायावती को उम्मीद है कि पदोन्नति में आरक्षण के लिए सतत प्रयत्नशील रहने के कारण बसपा के वोट बैंक में और इजाफा होगा, जिसे वे किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहेंगी। लक्ष्य यही है कि किसी भी प्रकार दस-बीस सीटें हासिल कर ली जाएं, ताकि बाद में सरकार के गठन के वक्त नेगोसिएशन किया जा सके।
बसपा का ध्यान इस दफा युवा और महिला वर्ग पर है। इन वर्गों को अधिकाधिक टिकट देकर सत्ता संतुलन करने का प्रयास है। इसके लिए जिलेवार कार्यकत्र्ताओं के सम्मेलन आयोजित कर अपनी पकड़ को अधिक मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। पूर्वी राजस्थान में 29 टिकटों की घोषणा के बाद प्रदेश की शेष विधानसभा सीटों के लिए मई माह में प्रत्याशियों की घोषणा की जाएगी। बसपा के प्रदेशाध्यक्ष भगवान सिंह बाबा पूरे आत्म विश्वास से भरे हुए हैं और उनका मानस है कि प्रदेश की सभी 200 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा जाए।
ये हैं अब तक घोषित उम्मीदवार
करणपुर से जसविन्दर सिंह, सूरतगढ़ से बसपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डूंगर राम गैदर, अनूपगढ़ से हरीश सांवरिया, भादरा से सुखदेव सिंह शेखावत, सादुलपुर राजगढ़ चुरू से मनोज सिंह न्यांगली, पूर्व विधायक सुरेश मीणा करौली, हनुमानगढ़ से मनीराम, मंडावा से प्यारेलाल ढूकिया, खेतड़ी से पूरण सैनी, तिजारा से फजल हुसैन, किशनगढ़बास से सपात खान, बानसूर से हवा सिंह गुर्जर, अलवर ग्रामीण से अशोक वर्मा, रामगढ़ से फजरू खान, बाड़ी से दौलत सिंह कुशवाह, कठूमर से श्रीमती कमला, बैर से अतर सिंह, बयाना से मुन्नी देवी दुबेश, धौलपुर से बी.एल.कुशवाह, टोडाभीम से हरीओम मीणा, करौली से सुरेश मीणा, बांदीकुई से राजकुमारी गुर्जर, ओसियां से उमराव जोधा, राजाखेड़ा से विजेन्द्र शर्मा, नदबई से घनश्याम कटारा, नगर से सुदेश गुर्जर, भरतपुर से दलबीर सिंह, जालोर से मांगीलाल परिहार, सिवाना से विजयराज देवासी और कुम्भलगढ़ से धीरज गुर्जर चुनाव मैदान में उतरेंगे।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, अप्रैल 09, 2013

आम आदमी से सीधे जुड़ रही हैं वसुंधरा


राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे अपनी सुराज संकल्प यात्रा के दौरान एक ओर जहां कांग्रेस, राज्य सरकार व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर तीखे प्रहार कर रही हैं, वहीं आम लोगों का दिल जीतने के लिए अपना हाई प्रोफाइल रूप त्याग कर लो प्रोफाइल शख्सियत को भी उभार रही हैं। इस यात्रा के दौरान उन्हें देखने, सुनने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ रहा है, जो कि उनके प्रति लोगों में मौजूद क्रेज को उजागर करता है। कदाचित अपने प्रति आम लोगों की चाहत को वे गहराई से समझ रही हैं, और इसी कारण उनसे नजदीकी का कोई भी मौका नहीं चूकना चाहतीं। इसी सिलसिले में वे सारे सुरक्षा इंतजामों को दरकिनार करते हुए आदिवासी महिलाओं से इस प्रकार घुल मिल गईं, मानों वे उनकी सहेलियां हों। इससे भी एक कदम आगे बढ़ कर उन्होंने एक कार्यकर्ता के इस आग्रह को भी स्वीकार कर लिया कि वे उसकी मोटर साइकिल पर बैठें।
हुआ यूं कि डूंगरपुर जिले के बीजामाता मोड़़ से बीजामाता मंदिर तक रथ से जाने का मार्ग नहीं था। जैसे ही श्रीमती राजे रथ से नीचे उतर कर उनकी कार में बैठने लगी तो एक कार्यकर्ता ने कहा मेरी इच्छा है कि मैं अपनी मोटर साईकिल से आपको बीजामाता मंदिर तक ले जाऊं, फिर क्या था, श्रीमती राजे बैठ गई कार्यकर्ता शंकर मीणा की मोटरसाइकिल पर। और पहुंच गई बीजामाता मंदिर। जहां उन्होंने दर्शन और पूजा-अर्चना की। उनकी इस सहजता को देख कर वहां मौजूद लोग अभिभूत हो गए।
ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार वे सत्ता में लौटने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोडऩा चाहतीं। स्वाभाविक भी है, यदि ये मौका चूकीं तो उनके राजनीतिक कैरियर पर बे्रक लग जाएगा, कम से कम राजस्थान में, क्योंकि उनकी जिद के आगे झुक कर ही हाईकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया है।

मंगलवार, अप्रैल 02, 2013

मोदी की टांग खींची तो भाजपा डूब जाएगी?


gujratहालांकि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का अधिकृत दावेदार घोषित किया जाना बाकी है, या यूं कहें कि फिलहाल प्रबल संभावना मात्र है, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी को लेकर अभी से पार्टी में घमासान शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदारों को मोदी का नाम पचाना मुश्किल हो रहा है। इस स्थिति को मोदी के समर्थक भांप रहे हैं। भीलवाड़ा के एक मोदी समर्थक संजीव पाठक ने तो बाकायदा इस आशय की एक पोस्ट फेसबुक पर लगाई भी है, जिसमें आगाह किया गया है कि यदि मोदी की टांग खींची गई तो भाजपा नाम की रह जाएगी।
उनकी इस पोस्ट में एक फोटो भी लगाई गई है, जो यह साबित करती है कि मोदी के समर्थक बाकायदा मोदी को प्रोजेक्ट करने में लगे हुए हैं, जिसका संकेत मैं मोदी विषयक पूर्व आलेख में दे चुका हूं कि मोदी जितने बड़े हैं नहीं, उससे कहीं अधिक मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए प्रोजेक्ट किए जा रहे हैं।
बहरहाल, संजीव पाठक की पोस्ट को यहां हूबहू यहां दिया जा रहा है, जिससे आपको सब कुछ समझ में आ जाएगा:-
संजीव पाठक
संजीव पाठक
अब अन्दर खाते समझ में आने लगा है कि भाजपा के कुछेक वरिष्ठ नेता नरेन्द्र मोदी को पार्टी का नेतृत्व संभलाने से कतरा रहे हैं .पार्टी नेता यह मान बैठे हैं कि देश कांग्रेस की बुराइयों से त्रस्त होकर भाजपा को माला पहना ही देगी ! फिर क्यों न " मैं " ही प्रधानी करूँ ! क्या जरुरत है मोदी की ? 
मेरे भाजपाइयों , कृपया यह कत्तई न भूलें कि देश का मतदाता कांग्रेस से नाखुश है तो खुश आप से भी नहीं है . उत्तराखण्ड और हिमाचल में मिली हार से भी यदि आप अभी भी कुछ नहीं समझे हैं तो फिर तरस आता है आप पर . 
यह तो नरेन्द्र मोदी जैसा निष्ठावान , देशभक्त , खालिस ईमानदार , योग्य प्रशासक , नीतिवान नेता आपकी पार्टी में हैं नहीं तो आप भी कहीं कांग्रेस से कम नहीं है . कर्नाटक , झाड़खंड के उदाहरण आपके लिए नासूर से कम नहीं है . 
यह बात भी भली भांति समझ लें कि जिन राज्यों में आप सत्तासुख भोग रहे हैं वहाँ भी वहीं के नेतृत्व की ही करामात है . आप लोग यदि इतने ही सक्षम हैं तो क्यों उत्तरप्रदेश में हारे ? क्यों नहीं अभी तक पूर्वोत्तर या सुदूर दक्षिण में अपने पैर जमा सके ? यदि ऐसा नहीं तो क्यों नहीं अटलजी की तरह अडवाणीजी भी स्वयं को सन्यासी घोषित करने में देरी कर रहे हैं ? हाँ , इस बात में कोई दो राय नहीं है कि
अटलजी - अडवाणीजी भाजपा के दो कीर्तिस्तंभ हैं किन्तु समयानुसार अपनी भावी पीढी को व्यवस्थापक बना कर स्वयं को संरक्षक बना लेना चाहिए .
एक बार पूर्ण जिम्मेदारी से पुनः ( एक जागरूक मतदाता की हैसियत से ) चेतावनी देना चाहता हूँ कि मोदी जी नीतिज्ञ की राह में कांटे बिछाने का काम न करें वरना भाजपा नाम की ही रह जाएगी....
अब तो आप समझ गए होंगे कि मोदी के समर्थकों अथवा भाजपा के तथाकथित सच्चे हितेषियों के मन में कैसे धुकधुकी है।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, अप्रैल 01, 2013

मीडिया ने ही पैदा की है मोदी की आंधी

इसमें कोई दोराय नहीं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्तमान में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में सबसे आगे आ चुके हैं, मगर इसमें हकीकत ये है कि यह सब मीडिया का करा धरा है और मोदी के मीडिया मैनेजमेंट का कमाल है। आज भले ही निचले स्तर पर भाजपा के कार्यकर्ता को मोदी में ही पार्टी के तारणहार के दर्शन हो रहे हों, मगर सच ये है कि उन्हें भाजपा नेतृत्व ने जितना प्रोजेक्ट नहीं किया, उससे कहीं गुना अधिक मीडिया ने शोर मचाया है। और जैसा कि हमारे देश में भेड़ चाल चलन है, भाजपा की दूसरी पंक्ति के नेता, छुटभैये और कार्यकर्ता उनके नाम की रट लगाए हुए हैं। उनके विकास का मॉडल भी धरातल पर उतना वास्तविक नहीं है, जितना की मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने खड़ा किया है। इसका बाद में खुलासा भी हुआ। पता लगा कि ट्विटर पर उनकी जितनी फेन्स फॉलोइंग है, उसमें तकरीबन आधे फाल्स हैं। फेसबुक पर ही देख लीजिए। मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताने वाली पोस्ट बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से डाली जाती रही हैं। गौर से देखें तो साफ नजर आता है कि इसके लिए कोई प्रोफेशनल्स बैठाए गए हैं, जिनका कि काम पूरे दिन केवल मोदी को ही प्रोजेक्ट करना है। बाकी कसर भेड़चाल ने पूरी कर दी। हां, इतना जरूर है कि चूंकि भाजपा के पास कोई दमदार चेहरा नहीं है, इस कारण मोदी की थोड़ी सी भी चमक भाजपा कार्यकर्ताओं को कुछ ज्यादा की चमकदार नजर आने लगती है। शाइनिंग इंडिया व लोह पुरुष लाल कृष्ण आडवाणी का बूम फेल हो जाने के बाद यूं भी भाजपाइयों को किसी नए आइकन की जरूरत थी, जिसे कि मोदी के जरिए पूरा करने की कोशिश की जा रही है।
आपको जानकारी होगी कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताने की शुरुआत उनके तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने से पहले की शुरू हो गई थी। मुख्यमंत्री पद पर फिर काबिज होने के लिए मोदी ने मीडिया के जरिए ऐसा मायाजाल फैलाया कि विशेष रूप से गुजरात में उनके पक्ष में एक लहर सी चलने लगी। और जीतने के बाद तो मानो भूचाल ही आ गया। सच तो ये है कि प्रधानमंत्री पद के दावेदारों तक ने कभी अपनी ओर से यह नहीं कहा कि मोदी भी दावेदार हैं। वे कहने भी क्यों लगे। मीडिया ने ही उनके मुंह में जबरन मोदी का नाम ठूंसा। मीडिया ही सवाल खड़े करता था कि क्या मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं तो भाजपा नेताओं को मजबूरी में यह कहना ही पड़ता था कि हां, वे प्रधानमंत्री पद के योग्य हैं। इक्का-दुक्का को छोड़ कर अधिसंख्य भाजपा नेताओं ने कभी ये नहीं कहा कि मोदी ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। वे यही कहते रहे कि भाजपा में मोदी सहित एकाधिक योग्य दावेदार हो सकते हैं। और इसी को मीडिया ने यह कह कर प्रचारित किया कि मोदी प्रबल दावेदार हैं। सीधी सी बात है कि भला कौन यह कहता कि नहीं, वे इस पद के योग्य नहीं हैं अथवा दावेदार नहीं हो सकते। और आज हालत ये है कि चारों ओर मोदी की ही आंधी चल पड़ी है।
मोदी को भाजपा का आइकन बनाने में मीडिया की कितनी बड़ी भूमिका है, इसका अंदाजा आप इसी बात ये लगा सकते हैं कि हाल ही एक टीवी चैनल पर लाइव बहस में एक वरिष्ठ पत्रकार ने मोदी को अपरिहार्य आंधी कह कर इतनी सुंदर और अलंकार युक्त व्याख्या की, जितनी कि पैनल डिस्कशन में मौजूद भाजपा नेता भी नहीं कर पाए। आखिर एंकर को कहना पड़ा कि आपने तो भाजपाइयों को ही पीछ़े छोड़ दिया। इतना शानदार प्रोजेक्शन तो भाजपाई भी नहीं कर पाए।
यह मीडिया की ही देन है कि हाल ही अमरीकी प्रतिनिधिमंडल की मोदी से मुलाकात को इस रूप में स्थापित करने की कोशिश की कि अब अमरीका का रुख मोदी के प्रति सकारात्मक हो गया है। उन्हें अमरीका अपने यहां बुलाने को आतुर है। बाद में पता लगा कि वह प्रतिनिधिमंडल अधिकृत नहीं था और एक टूर प्रोग्राम के तहत उस प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से राशि वसूली गई थी।
खैर, जहां तक उनके लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का सवाल है तो वे पहले व्यक्ति नहीं है। और भी उदाहरण हैं। और लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनना यानि प्रधानमंत्री पद का दावेदार हो जाना भी गले उतरने वाली बात नहीं है। इसी प्रकार इस बार जब मोदी को भाजपा संसदीय दल में शामिल किया गया तो मीडिया ने उसे इतना उछाला है, मानो कोई अजूबा हो गया है। संसदीय बोर्ड में तो वे पहले भी रहे हैं।
भाजपा के थिंक टैंक रहे गोविंदाचार्य ने इसको कुछ इस तरीके से कहा है-मोदी 6 साल पहले भी संसदीय बोर्ड में थे और अगर फिर उनको शामिल कर दिया गया है तो इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई है। गोविंदाचार्य ने आगे कहा कि मोदी को देश के बारे में कोई ठोस समझ नहीं है, मीडिया प्रबंधन की वजह से कई बार व्यक्ति पद तो पा जाता है, लेकिन काम नहीं कर पाता। अभी मोदी को बहुत कुछ सीखने और समझने की जरूरत है। जरूरी नहीं की जो अच्छा पत्रकार हो वो अच्छा सम्पादक ही हो जाए या अच्छा अध्यापक बहुत अच्छा प्रधानाध्यापक बन जाए, उसी तरह जरूरी नहीं की एक अच्छा मुख्यमंत्री, अच्छा प्रधानमंत्री ही बन जाए।
कुल मिला कर आज हालत ये हो गई है कि मोदी भाजपा नेतृत्व और संघ के लिए अपरिहार्य हो गए हैं। व्यक्ति गौण व विचारधारा अहम के सिद्धांत वाली पार्टी तक में एक व्यक्ति इतना हावी हो गया है, उसके अलावा कोई और दावेदार नजर ही नहीं आता। संघ के दबाव में फिर से हार्ड कोर हिंदूवाद की ओर लौटती भाजपा को भी उनमें अपना भविष्य नजर आने लगा है। यह दीगर बात है कि उनके प्रति आम सहमति बन पाती है या नहीं, उसकी घोषणा करना मीडिया की जिम्मेदारी नहीं, फिर भी वह करने से बाज नहीं आ रहा। सहयोगी दलों की स्वीकार्यता तो अभी दूर की कौड़ी है।
-तेजवानी गिरधर