तीसरी आंख

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रविवार, जून 21, 2015

क्या सुषमा स्वराज किसी षड्यंत्र की शिकार हुई?

आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी की मदद करने को लेकर विवादों में फंसीं केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने हालांकि अपनी गलती को यह कह कर स्वीकार सा कर लिया है कि उन्होंने जो कुछ किया मानवीय आधार पर किया, मगर विपक्ष के ताबड़तोड़ हमले के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह व संघ ने जिस प्रकार उनका बचाव किया है, उससे प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं दाल में काला है।
विपक्ष के सवाल विपक्षी धर्म के नाते अपनी जगह हैं, मगर कुछ और भी सवाल खड़े होने लगे हैं। वो ये कि क्या सुषमा स्वराज किसी षड्यंत्र का शिकार हुई हैं? क्या सुषमा स्वराज के निर्णय के पीछे सचमुच कोई पारिवारिक कारण हैं या मानवीय आधार पर पार्टी या सरकार में वे इस्तेमाल हुई हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि जिन्होंने उन्हें इस अनाचार के लिए इस्तेमाल किया, उन्हें भय है कि स्वराज को इस मामले में किनारे करने पर उनका भांडा फूट जाएगा? वरना क्या वजह हो सकती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ललित मोदी के नाम पर अपनी सरकार को बदनाम होते देख सुषमा को बचाए हुए हैं?
असल में षड्यंत्र का सवाल इस कारण उठा है कि नरेन्द्र मोदी कभी नहीं चाहेंगे कि उनसे अधिक योग्य कभी सिर न उठा सकें। जिन हालात में मोदी को सुषमा को विदेश मंत्री बनाना पड़ा, वह उनकी मजबूरी थी। देश-विदेश की जानकारी और अनुभव के मामले में सुषमा स्वराज मोदी से कई गुना बेहतर मानी जाती हैं, मगर चूंकि संघ के फैसले से मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट किया गया, उससे सुषमा को तकलीफ हुई ही होगी। वैसे भी वे पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी लॉबी की मानी जाती हैं। पिछले एक साल में जिस प्रकार मोदी ने विदेश मंत्री होते हुए भी सुषमा की उपेक्षा कर स्वयं विदेश दौरे किए, उस पर भी खूब कानाफूसी हो रही थी। बहरहाल, सार यही है कि मोदी तभी कामयाब हो सकते हैं, जबकि पार्टी के भीतर उनके प्रतिद्वंद्वी रहे कभी उभर कर न आएं, इस कारण वे इस मामले में इंदिरा गांधी वाली शैली अपनाना पसंद करेंगे। कुछ राजनीतिक समीक्षक इस ओर इशारा भी कर रहे हैं कि मोदी इंदिरा पैटर्न पर काम कर रहे हैं। हालांकि पक्की तौर पर ये कहना कठिन है कि सुषमा इस मामले में भूल से फंस गई हैं या फंसाई गई हैं, मगर इतना तय है कि सुषमा की ताजा स्थिति का मोदी भरपूर लाभ उठाना चाहेंगे। भले ही वे उन्हें हटा कर नई मुसीबत मोल न लें, मगर इस बहाने सुषमा को दबा कर जरूर रखेंगे। सफल राजनीतिज्ञ तो यही करेगा।
बताया तो यहां तक जा रहा है कि आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी से जुड़ा विवाद उछलने से पहले ही कथित तौर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने नरेन्द्र मोदी के सामने इस्तीफे की पेशकश की थी। मोदी ने बीजेपी और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सीनियर नेताओं की मीटिंग बुलाई थी और यह विचार-विमर्श किया गया था कि इस मसले पर सरकार और पार्टी की रणनीति क्या होगी। बताया जाता है कि सुषमा ने इस मीटिंग में अपना पक्ष रखते हुए साफ तौर पर कहा था कि वह नहीं चाहतीं कि उनकी वजह से सरकार को किसी तरह की शर्मिंदगी का सामना करना पड़े और वह इसके लिए इस्तीफा देने को भी तैयार हैं। मगर मोदी को यही उचित लगा कि इस वक्त उनका इस्तीफा नहीं लिया जाना चाहिए। इस रणनीति के तहत ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार ने सुषमा स्वराज के समर्थन में बयान दिया। अगर मोदी सुषमा के इस्तीफे की पेशकश को स्वीकार कर लेते हैं तो यह सरकार के लिए बेहद शर्मनाक होगा कि उसका विदेश मंत्री इस प्रकार निपट जाए। दूसरा ये कि मुक्त होते ही सुषमा मोदी के खिलाफ तानाबाना बुनने के लिए आजाद हो जाएंगी।
तेजवानी गिरधर
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