तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, मार्च 03, 2025

कौन अधिक खूबसूरत आदमी अथवा औरत?


यही सही है कि आदमी को औरत खूबसूरत दिखती है और औरत को आदमी खूबसूरत नजर आता है, मगर यह आम धारणा है कि निरपेक्ष रूप से देखा जाए तो औरत आदमी की तुलना में अधिक खूबसूरत होती है। मगर पाकिस्तान के मुफ्ती तारीक मसूद कहते हैं कि आदमी में नूर ज्यादा होता है। बेषक खुदा ने औरत को हुस्न दिया है, मगर आदमी को जो जमाल दिया है, उसका दर्जा उंचा है।

कुछ लोग कह सकते हैं कि इस मान्यता के पीछे मौलिक रूप से पुरूशवादी मानसिकता है। चूंकि प्रकृति में पुरूश अधिक मुखर है, इस कारण उसकी धारणा सही प्रतीत होती है। आप देखिए ने औरत की खूबसूरती की बाकायदा नुमाइष होती है। नाइट क्लब्स में औरत का प्रदर्षन हाता है। मजबूरी में या स्वैच्छा से, वह इसके लिए राजी भी है। फैषन षो होते हैं। हालांकि अब पुरूश भी भागीदारी कर रहा है। हो सकता है औरत की मानसिकता इससे भिन्न हो। वह पुरूश को अधिक खूबसूरत करार दे सकती है। दूसरी ओर पाकिस्तान के मुफ्ती तारीक मसूद अपने बयान में इससे इतर राय रखते हैं। वे कहते हैं कि औरत आदमी को और आदमी औरत को खूबसूरत कहेगा ही, लेकिन अगर गैर इंसान अर्थात अन्य मखलूकात से पूछेंगे और अगर वह बता सकता हो तो यही कहेगा कि इंसान में आदमी ज्यादा खूबसूरत होता है। उसकी वजह ये है कि आदमी में जमाल होता है। आदमी में नूर ज्यादा होता है। बेषक खुदा ने औरत को हुस्न दिया है, मगर आदमी को जो जमाल दिया है, उसका दर्जा उंचा है।

दिलचस्प बात है कि ने इंसान के अतिरिक्त अन्य सभी जीव जंतुओं में मादा की बजाय नर को अधिक खूबसूरत बनाया है। आप देखिए कि मोरनी की तुलना में मोर, मुर्गी की तुलना में मुर्गा, घोडी की तुलना में घोडा, बकरी की तुलना में बकरा, षेरनी की तुलना में षेर अधिक खूबसूरत होता है। 

ऐसे में सवाल उठता है कि जब सारी मखलूक में मादा की तुलना में नर ज्यादा खूबसूरत होता है तो इंसान में यह नियम लागू क्यों नहीं होना चाहिए? 

https://www.youtube.com/watch?v=bWqOZEiE_R8&t=26s

महिलाएं अंतिम संस्कार में शामिल क्यों नहीं होती?

हालांकि परिजन के निधन पर विशेष परिस्थितियों में महिलाएं शवयात्रा और अंतिम संस्कार के दौरान श्मशान स्थल पर मौजूद रहती हैं, मगर आमतौर पर केवल पुरुष ही अंत्येष्टि में शामिल होते हैं। महिलाओं के लिए श्मशान स्थल वर्जित होने के पीछे जरूर कोई कारण होंगे। आइये, उन्हें समझने की कोशिश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पुरूशों की तुलना में महिलाएं कोमल हृदय होती हैं। यद्यपि निकट संबंधी के निधन पर पुरूश भी रोते हैं, लेकिन व्यवहार में पाया गया है कि महिलाएं अधिक विलाप करती हैं। अंतिम संस्कार का प्रयोजन ही यह होता है कि मृत आत्मा का षरीर के अतिरिक्त इस जगत से संबंध विच्छेद हो जाए, कपाल क्रिया उसका ही हिस्सा है, लेकिन महिलाओं के रोने की अवस्था में संबध विच्छेद की प्रक्रिया में बाधा आ सकती है। ऐसा माना जाता है कि ष्मषान स्थल पर अषांत मृत आत्माएं विचरण करती रहती हैं, जो कोमल मन वाली महिलाओं में प्रवेष कर सकती हैं। अंतिम संस्कार के दौरान घर सूना न रहे, इसलिए भी महिलाओं को घर पर रहने की सलाह दी जाती है। बदले हालात में अब भाइयों के अभाव में बहिनें अपने माता पिता के निधन पर अर्थी को कंधा देने लगी है, जिसे नारी सषक्तिकरण के रूप में देखा जाता हे, मगर आज भी आम तौर पर महिलाएं अंतिम संस्कार में नहीं जातीं। यह परंपरा पुरूश प्रधान समाज की द्योतक है। महिलाओं ने भी इस व्यवस्था को स्वीकार कर रखा है। हालांकि महिलाओं के ष्मषान स्थल पर जाने पर कोई रोक नहीं है।


https://www.youtube.com/watch?v=mtuY661u6MA