तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शुक्रवार, नवंबर 25, 2016

मोदी के नाम पर कहीं ये अराजकता के संकेत तो नहीं

नोटबंदी की वजह से देश में फैली आर्थिक अराजकता के विरोध में आगामी 28 नवंबर को विपक्ष की ओर से आहूत भारत बंद के दौरान जगह-जगह मोदी समर्थकों व विरोधियों के बीच भिड़ंत होने का अंदेशा नजर आ रहा है। कम से कम सोशल मीडिया पर जिस प्रकार की पोस्ट धड़ल्ले से डाली जा रही हैं, उससे तो यही लगता है कि कहीं ये आभासी दुनिया हकीकत के धरातल पर न उतर आए। दिलचस्प बात ये है कि बंद के समर्थन से संबंधित जितनी पोस्ट हैं, उससे कहीं अधिक बंद के विरोध में हैं। आम तौर पर बंद के समर्थन में न होने की सामान्य पोस्ट हैं, मगर कई जगह बाकायदा चेतावनी युक्त पोस्ट डाली गई हैं, जिसमें कानून हाथ में लेने की अपील की गई है। इस प्रकार की पोस्ट को लेकर सोशल मीडिया पर भी लेखन युद्ध छिड़ा हुआ है, जिसमें एक दूसरे को चैलेंज तक दिया जा रहा है।
बानगी के बतौर एक पोस्ट देखिए:-
राष्ट्र हित में जारी सूचना :-
सभी सच्चे भारतीयों से निवेदन है कि वो सभी भारतीय जो देश का भला चाहते हैं, वे 28 नवम्बर को अपने घर व अपनी दुकान के मुख्य दरवाजे पर एक अच्छा सा ल_ तैयार रखें। भारत बन्द के दौरान जो भी आपकी दुकान बन्द करवाने के लिए आये, उसकी अच्छे से धुलाई करें। देश हित में ऐसे मौके बार-बार नहीं आते।
सवाल ये उठता है कि कानून हाथ में लेना कैसा राष्ट्र हित है। हो सकता है, ऐसे अतिवादी लोग गिनती में ज्यादा न हों, मगर इन पर अंकुश लगना ही चाहिए।
राजनीतिक मतभिन्नता किस प्रकार निजी वितृष्णा का रूप ले सकती है, इसका उदाहरण ये पोस्ट है-
जो दुकान 28 नवम्बर को भारत बंद में बंद होगी, उस दुकान से मैं आजीवन कुछ नहीं खरीदूंगा। ये मेरी अखंड प्रतिज्ञा है।
एक पोस्ट ऐसी भी है, जिसमें नोटबंदी की वजह से हो रही परेशानी की स्वीकारोक्ति तो है, मगर साथ ही बंद का सफल न होने देने का आग्रह किया गया है। देखिए:-
तमाम मतभेदों और नोट चेंज के अभियान की जो भी कमियां या खामियां हैं, उनको भुला कर हम लोगों को विपक्षी दलों के 28 तारीख के भारत बंद को सफल नहीं होने देना चाहिए। यदि आज ये संगठन 28 तारीख के बंद को सफल कर लेते हैं, तो आप और हम सभी को इससे भी ज्यादा बुरे दिनों को देखने के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि जो पार्टिया बंद आहूत कर रही हैं, वे और उनके समर्थक वर्ग से सभी परिचित हैं। इसलिए 28 को 10 बजे खुलने वाला बाजार 9 बजे ही खुलना चाहिए, और जिन स्थानों पर सोमवार की छुट्टी रहती है, वहां स्थानीय प्रशासन से विशेष अनुमति ले कर बाजार खोलने का प्रयास करना चाहिये। देश प्रथम है हमारे लिए।
कदाचित देश के इतिहास में ऐसा व्यापक अभियान पहली बार अंजाम दिया जा रहा है, वरना अब तक तो यही देखा गया है कि जब भी कोई विरोधी दल किसी मुद्दे पर बंद आहूत करता है तो सत्तापक्ष शांत रहता है। स्थानीय स्तर पर छिटपुट टकराव जरूर होता है, मगर आम तौर पर शांति ही रहती है। अगर अशांति होती भी है तो प्रदर्शनकारियों व पुलिस के बीच टकराव की वजह से।
ऐसा प्रतीत होता है कि नोटबंदी का यह मुद्दा पार्टीगत से हट कर व्यक्ति केंद्रित होने से हुआ है, जहां विरोध व्यक्ति का है तो समर्थन के केन्द्र में भी व्यक्ति ही है। एक दूसरी वजह ये है कि एक ओर जहां नोटबंदी के तरीके का विरोध हो रहा है तो दूसरी ओर तकलीफ पा कर भी इस कदम का समर्थन करने वाले खम ठोक कर खड़े हैं। एक ऐप के जरिए सर्वे करवा कर तो बाकायदा यह साबित करने की कोशिश की गई है कि देश की अधिसंख्य जनता नोटबंदी के समर्थन में है, हालांकि जितने छोटे पैमाने पर यह हुआ है, इसको लेकर विपक्ष का कहना है कि चंद लाख लोगों की राय को सवा करोड़ लोगों का सर्वे कैसे माना जा सकता है। वैसे यह भी एक अजीब बात है कि कदम पहले उठा लिया गया और जनमतसंग्रह बाद में उसे सही बताने के लिए किया जा रहा है।
बहरहाल, यह स्पष्ट है कि मोदीवादी और भाजपाई कदम को सही ठहराने के लिए विरोध में हो रहे बंद को विफल करना चाहते हैं। राजनीतिक दाव पेच तक तो इसमें कोई आपत्ति नहीं, मगर यदि इसको लेकर हो रही ल_बाजी की अपील आभासी दुनिया से निकल कर कार्य रूप में परिणित हो गई तो यह ठीक नहीं होगा। नोटबंदी सही है या गलत, ये विवाद का विषय हो सकता है, मगर यह निर्विवाद होना चाहिए कि इसको लेकर यदि लड़ाई-झगड़ा होता है तो वह देशहित में कत्तई नहीं। भगवान करे, सोशल मीडिया पर लाठियां भांजने वाले देश हित में वहीं बने रहें।
-तेजवानी गिरधर
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