ज्ञातव्य है कि अश्वत्थामा के बारे में मान्यता है कि वे काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे और आठ चिरंजीवियों में से एक हैं। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। द्वापर युग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब उन्होंने कौरवों का साथ दिया था। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर एवं प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। वे आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहे हैं। यह भी मान्यता है कि मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर असीरगढ़ के किले में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। बताते हैं कि अश्वत्थामा प्रतिदिन इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं। अश्वत्थामा को अन्य कई स्थानों पर भी देखे जाने के किस्से हैं।
बताते हैं कि 1192 में पृथ्वीराज चौहान मुहम्मद गौरी से युद्ध में हार गए तो वे जंगल की ओर निकल पड़े। वे एक शिव मंदिर में प्रतिदिन आराधना करने जाते थे। वह शिव मंदिर क्या असीरगढ़ किले का ही मंदिर था, इस बारे में कोई उल्लेख नहीं है। एक बार उन्होंने पाया कि अलसुबह उनसे पहले कोई पूजा-अर्चना कर गया। इस पर उन्होंने इस रहस्य का पता लगाने के लिए भगवान शिव की आराधना की तो उन्हें एक बुजुर्ग ने दर्शन दिए। उसके सिर पर गहरा घाव था। पृथ्वीराज चौहान अच्छे वैद्य भी थे। उन्होंने उस व्यक्ति का घाव ठीक करने का प्रस्ताव रखा। वे मान गए। इलाज शुरू हुआ। जब एक हफ्ते के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ तो पृथ्वीराज चौहान चौंके। उन्होंने अपने अनुमान के आधार पर उस व्यक्ति से पूछा कि क्या वे अश्वत्थामा हैं, इस पर उस व्यक्ति ने हां में जवाब दिया। पृथ्वीराज चौहान अभिभूत हो गए और उनसे वरदान मांगा। अश्वत्थामा ने उन्हें शब्दभेदी बाण का वरदान दिया। साथ ही तीन शब्द भेदी तीर दिए, जो अचूक थे। ज्ञातव्य है कि महाभारत कथा में स्पष्ट अंकित है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के सिर पर लगी मणि को युक्तिपूर्वक हटवाया था और उसकी वजह से उनके सिर पर गहरा घाव हो गया था।
जहां तक पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण का उपयोग करने का सवाल है, तो उसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैरू-
सन् 1192 में मोहम्मद गौरी ने तराइन के दूसरे युद्ध में उनको हरा दिया, तो वे जंगल में चले गए, बाद में मगर गुप्तचरों की सूचना के आधार पर गौरी ने उन्हें कैद कर लिया। कहीं यह उल्लेख है कि उन्हें अजयमेरू दुर्ग में रखा गया तो कहीं ये हवाला है कि गौरी उन्हें सीधे गौर (गजनी) ले गया। स्थानीय दुर्ग अथवा गौर में गौरी ने गर्म सलाखों से उनके दोनों नेत्रों जला दिया। पृथ्वीराज चौहान के बचपन के मित्र व राज कवि चंद वरदायी फकीर की वेशभूषा में पीछा करते हुए गौर पहुंच गए। चंद वरदायी ने सुल्तान मोहम्मद गौरी से संपर्क स्थापित किया व निवेदन किया कि आंखों के फूट जाने के बावजूद पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण से अचूक निशाना लगाना जानते हैं, जिस अजूबे को सुल्तान को देखना चाहिए। गौरी ऐसी कला देखने को राजी हो गया। एक ऊंचे मंच पर बैठ कर मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को तीरंदाजी से लक्ष्य पर संधान करने का आदेश दिया। जैसे ही गौरी के सैनिक ने घंटा बजाया, कवि चंद वरदायी ने यह दोहा पढ़ारू-
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान।
पृथ्वीराज चौहान ने मंच पर गौरी के बैठने की स्थिति का आकलन करके बाण चला दिया, जो सीधा गौरी को लगा और उसके उसी वक्त प्राण निकल गए। इसके बाद गौरी के सैनिकों के हाथों अपमानजनक मृत्यु से बचने के लिए कवि चंद वरदायी ने अपनी कटार पृथ्वीराज चौहान के पेट में भौंक दी और उसके तुरंत बाद वही कटार अपने पेट में भौंक कर इहलीला समाप्त कर ली।
प्रसंगवश यह जानना उचित रहेगा कि शब्दभेदी बाण चलाना तो बहुत से यौद्धाओं ने सीखा था, परंतु उसमें पारंगत चार या पांच ही थे। ज्ञातव्य है कि भगवान राम के पिताश्री महाराजा दशरथ के जिस बाण से मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की मृत्यु हुई, वह शब्द भेदीबाण था। श्रवण कुमार माता-पिता को एक तालाब के पास छोड़ पानी भरने गए तो पानी की कलकल की आवाज से आखेट को निकले महाराजा दशरथ को यह भ्रम हुआ कि कोई हिरण पानी पी रहा है और उन्होंने शब्दभेदी बाण चला दिया था। इस पर श्रवण कुमार के माता-पिता ने दशरथ को श्राप दिया कि वे भी अपने अंतिम समय में पुत्र का वियोग सहन करेंगे, और दोनों ने प्राण त्याग दिए।
इसी प्रकार महाराज पांडु भी शब्दभेदी बाण की विद्या जानते थे। एक दिन राजा पांडु अपनी दोनों पत्नियों कुन्ती एवं माद्री के साथ तपस्या के लिए ऋषि कण्व के आश्रम में रहने गए। एक दिन माद्री के हठ करने पर पाण्डु आखेट करने गए। कहीं ये उल्लेख है कि सिंह की गर्जना सुन कर उन्होंने शब्दभेदी बाण चलाया तो कहीं ये जिक्र है कि उन्हें एक मृग की छाया दिखाई दी, जिस पर उन्होंने शब्दभेदी बाण चला दिया। बाण लगते ही ऋषि कण्व प्रकट हो गए, जो अपनी पत्नी के साथ सहवास कर रहे थे। उन्होंने पांडु को श्राप दिया कि जब भी वे अपनी पत्नी के साथ सहवास करेंगे तो उनकी मृत्यु हो जाएगी। एक दिन माद्री एक झरने के किनारे नहा रही थी, उनको इस रूप में देख कर पांडु विचलित हो गए और माद्री के साथ सहवास करने लगे। ऐसा करते ही कण्व ऋषि के श्राप की वजह से उनकी वहीं मृत्यु हो गई। उनके वियोग में माद्री ने भी वहीं प्राण त्याग दिए।
इसी प्रकार महाभारत के महत्वपूर्ण पात्र कर्ण, जिन्होंने दुर्याेधन की मित्रता के चलते कौरवों का साथ दिया था, उनको भी शब्दभेदी बाण की विद्या हासिल थी। एक कथा के अनुसार उन्होंने एक बार केवल आवाज के आधार पर गाय के बछड़े को मार दिया था। इसी प्रकार द्रौणाचार्य को अपना गुरू मान कर तीरंदाजी सीखने वाले एकलव्य के बारे में भी एक कथा है कि उन्होंने शब्दभेदी बाण से एक कुत्ते को मार डाला था। जानकारी ये भी है कि शब्दभेदी बाण की विद्या भीम ने अर्जुन को दी थी।
विशेष बात ये है कि अन्य यौद्धाओं ने तो शब्द की ध्वनि के आधार पर शब्द भेदी बाण चलाया, जबकि पृथ्वीराज चौहान ने शब्दों को सुन कर उनके अर्थ के आधार पर अनुमान लगा कर शब्द भेदी बाण चलाया, जो कदाचित कहीं अधिक कठिन था।
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