तीसरी आंख

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सोमवार, अक्तूबर 29, 2012

शर्म नहीं आई पूर्व थल सेना अध्यक्ष सिंह को बयान देते?


पूर्व थल सेना अध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने मुम्बई में टीम अन्ना शामिल होते हुए अन्ना हजारे के साथ संयुक्त बयान दिया कि यूपीए सरकार असंवैधानिक है और संसद को तुरंत भंग किया जाए। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कहा कि जितना ब्रिटिश सरकार ने नहीं लूटा, उससे कहीं अधिक पिछले पैंसठ साल में सरकार ने देश को लूटा है। कदाचित बहुत ज्यादा नहीं पढ़े-लिखे अन्ना हजारे को सेना की नौकरी करते हुए सरकार की हकीकत समझ में न आई हो, मगर पूरी जिंदगी थल सेना अध्यक्ष जैसे गरिमापूर्ण पद की सुविधाओं और सम्मान को भोग चुका व्यक्ति अगर सेवा निवृत्त हो कर इस प्रकार का बयान देता है तो वह सरकार से कहीं ज्यादा खुद उसके लिए शर्मनाक है। यदि वाकई देश का इतना दर्द था, देशभक्ति इतना ही उछाल मार रही थी तो नौकरी छोड़ कर देते ये बयान देते। कैसी विडंबना है कि इसी सरकार के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदों में एक पर रह कर पूरी जिंदगी सुख भोगने वाले व्यक्ति की जुबान अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग करते हुए लडख़ड़ाई तक नहीं। वाकई यह बेशर्मी की इंतहा है।
होना तो यह चाहिए था कि जब भी सिंह की समझदानी में यह बात आई कि यह सरकार लुटेरी है और देशभक्ति इतनी ही कूट-कूट कर भरी थी तो नौकरी छोड़ देते और सरकार के खिलाफ बिगुल बजा देते, तो उनकी महानता समझ में आती। कहने की जरूरत नहीं है कि ये वही सिंह हैं, जो कुर्सी की पूरा सुख भोगने की खातिर उम्र विवाद को सेवानिवृत्ति तक खींचते रहे। उन्हें इस संदेह का लाभ कत्तई नहीं दिया जा सकता कि उन्हें नौकरी पर रहते सरकार की असलियत का पता नहीं था और नौकरी पूरी होते ही पता लगा है कि सरकार लुटेरी है। स्पष्ट है कि वे सरकार के बारे में अपनी धारणा को दिल में कायम रखते हुए नौकरी के अनुशासन में बंध कर चुप थे और साथ ही उसका पूरा ऐश्वर्य भी भोग रहे थे। अब जब कि नौकरी नहीं रही तो खुल कर मैदान में आ गए हैं। पता है कि अब उनका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता, चाहे जो बयान जारी करें।
एक बात और। ये वही वी के सिंह हैं, जिनके उम्र विवाद के चलते सेना व सरकार के बीच टकराव की नौबत आ गई थी। बीते साल 4 अप्रैल को इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी कि 16 जनवरी को सेना की दो टुकडिय़ां हिसार और आगरा से दिल्ली की ओर कूच कर चुकी थीं, जिसका सीधा सा अर्थ था कि सिंह तख्ता पटल जैसी हरकत करने का मानस बना चुके थे। यह वही दिन था, जिस दिन सेना प्रमुख की याचिका सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में आ रही थी। मीडिया में यहां तक छपा कि क्या जनरल सिंह ने 16 जनवरी की रात को भारत का परवेज मुशर्रफ बनने की ठान ली थी? वे लोकतंत्र का अपहरण कर सैन्य शासन लाने का ताना-बाना बुन चुके थे? हालांकि भारत सरकार और भारतीय सेना, दोनों ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा गया कि वह सेना की टुकडिय़ों का रूटीन अभ्यास था, मगर शक की सुई तो सिंह पर घूम चुकी थी। इस खबर को लेकर यह बात भी आई कि सिंह को बदनाम करने के लिए यह प्रायोजित की गई थी। इस बारे में सैन्य मामलों को जानकार सेवानिवृत्त मेजर जनरल अशोक मेहता का कहना था कि भारत में इस तरह तख्ता पलट करना अथवा तख्ता पलट की धमकी देना संभव नहीं है, लेकिन इस खबर में शक तो गुंजाइश है है। शक इसलिए माना गया चूंकि आम तौर पर सेना की टुकडिय़ों के अभ्यास की खबर सरकार को पहले से ही दी जाती है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ था।
एक बात और गौर करने लायक है। वो यह कि आज अगर सिंह को अन्ना हजारे गले लगा रहे हैं तो वह इसी कारण न कि सिंह के नाम के साथ पूर्व थल सेना अध्यक्ष का तमगा लगा है। उनका बयान असर डालेगा कि एक पूर्व थल सेना अध्यक्ष यदि सरकार के बारे में कुछ कह रहे हैं तो, जरूर सही ही कह रहे होंगे। यानि कि उसी पद का लाभ उठा रहे हैं। उससे भी गंभीर बात, जिस पर किसी की नजर नहीं गई है, वो यह कि एक पूर्व सेना अध्यक्ष का यह रवैया सैनिकों में बगावत का भाव भी तो पैदा कर सकता है। इस सिलसिले में अन्ना का सेवानिवृत्त सेनाधिकारियों को लामबंद करना कई प्रकार की आशंकाओं को जन्म देता है।
ऐसा नहीं कि सिंह अकेले ऐसे अफसर हैं, जो सेवानिवृत्ति के बाद खुल कर सरकार के खिलाफ खड़े हैं। पहले भी कई अफसर इस प्रकार की हरकतें कर चुके हैं। खैरनार जैसे कम ही अफसर रहे हैं जो ईमानदारी को जिंदा रखने के लिए नौकरी पर रहते हुए सरकारों से टकराव ले चुके हैं। इस सिलसिले में अरविंद केजरीवाल जरूर समर्थन के हकदार हैं, जिन्होंने समाजसेवा व देश सेवा की खातिर अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी, यह बात दीगर है कि उसमें भी उन्होंने नियम-कायदों को ताक पर रख दिया। बाद में कलई खुली तो बड़ा अहसान जताते हुए बकाया चुकाने को राजी हुए।
लब्बोलुआब, देश हित की खातिर लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन करना भले ही हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हो, मगर पूरी जिंदगी सरकारी नौकरी का आनंद उठा कर सेवानिवृत्त होने पर सरकार के खिलाफ बकवास करना कत्तई जायज नहीं ठहराया जा सकता।
-तेजवानी गिरधर