तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, अप्रैल 13, 2025

रोना आए तो उसे रोकें नहीं

दोस्तो, नमस्कार। अमूमन कई ऐसे मौके आते हैं, जब हमारे भीतर संवदेना जाग जाती है। हम किसी के प्रति संवेदना से भर जाते हैं। कोई घटना देख कर, किसी की दर्दभरी दास्तान सुन कर, फिल्म में कोई दृष्य देख कर हमारा मन द्रवित होने लगता है, करूणा का झरना बहने लगता है, लेकिन हम हठात अपने आपको रोक लेते हैं। मन को कठोर कर लेते हैं। अपने आपको भावुक होने से बचाने की कोषिष करते हैं। रोने की इच्छा होती है, मगर हम जबरन कठोर होने की कोषिष करते हैं। अगर आंसू झलक भी आएं तो उन्हें पोंछ लेते हैं, ताकि कोई देख न ले। कदाचित उसे हम कमजोरी की निषानी मानते हैं। विषेश रूप से पुरूश। समाज में ऐसी व्यवस्था बन गई है कि पुरूश के रोने को ठीक नहीं माना जाता। रोने को महिलाओं के लिए छोड दिया गया है। 

मगर हम बडी भूल कर बैठते हैं। मन को पिघलने से रोकना, आंसुओं को आंखों में जब्ज करना हमारी सहज अवस्था से अपने आपको दूर करने के समान है। नतीजतन भीतर ग्रंथी उत्पन्न होती है। जब कि होना यह चाहिए कि जब भी भावुक होने की इच्छा हो, होने दें, मन को कडा न करें, आंसू बहने को हों, तो उनको रोकें नहीं। मेरा अनुभव यह है कि ऐसा करने पर भीतर की संवेदना हमें सरल, सहज कर देती है। जब भी किसी प्रसंग विषेश के कारण हम रोने लगते हैं तो मन निर्मल हो जाता है। कलुशता बह जाती है। भीतर पवित्रता का आभास होता है। जो कि बहुत आनंददायक है।


https://youtu.be/SoDx1wYUKGM

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