इस शीर्षक को पढ़ का आप चौंकेंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि गुजरात के
नरोडा पाटिया नरसंहार के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार में मंत्री रहीं माया
कोडनानी और बजरंग दल नेता बाबू बजरंगी को दोषी करार दिए जाने से मोदी को
फायदा कैसे हो सकता है, उन्हें तो नुकसान होना चाहिए।
यह सही है कि गुजरात विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में कोर्ट के फैसले के बहाने कांग्रेस को मोदी पर हमला करने का मौका मिल गया है कि वे घोर सांप्रदायिक हैं। सबसे पहला हमला कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने ही किया। वे पहले से हमले करते रहे हैं। अन्य कांग्रेसी नेताओं की भी बाछें खिली हुई हैं कि कोर्ट के फैसले से उनका आरोप पुष्ट होता है कि उनकी शह पर ही गुजरात में नरसंहार हुआ। मगर यह उनकी खुशफहमी ही साबित होगी। इसकी एक खास वजह है। वो यह कि सांप्रदायिक होने के आरोप से अगर यह सोचा जाता है कि इससे मुसलमान उनके और खिलाफ हो जाएंगे, तो वह तो पहले से ही खिलाफ हैं। उनका वोट तो मोदी को वैसे ही नहीं मिलने वाला है। मुसलमान वोट तो जितना है, उतना ही रहेगा, उलटे कांग्रेसियों के ज्यादा चिल्लाने से सांप्रदायिक व घोर हिंदूवादी होने के आरोप से हिंदू और अधिक लामबंद हो जाएगा। मोदी का जनाधार और मजबूत हो जाएगा। असल में गुजरात में हिंदुओं का एक बड़ा तबका मोदी को इस अर्थ में भगवान मानता है कि उन्होंने मुसलमानों की आए दिन की दादागिरी हरदम के लिए खत्म कर दी। उन्होंने मुसलमानों को इतना कुचल दिया कि अब उनके खिलाफ बोलने की उनमें हिम्मत ही नहीं रही। उलटे डर कर उनके पक्ष में भी बोलने लगे हैं, भले ही मन ही मन नफरत करते हों।
कुल मिला कर कोर्ट के ताजा फैसले से गुजरात में भाजपा को लाभ ही होता नजर आता है। इतिहास भी इसकी पुष्टि करता है। यह सर्वविदित है कि सन् 2002 में मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग और महिला आयोग की रिपोर्ट आई थी और दंगों के लिए मोदी सरकार को दोषी ठहाराया गया था। ब्रिटिश रिपोर्ट भी यही आई कि मोदी सरकार ने दंगाइयों की मदद की। उसी साल गुजरात में चुनाव हुए और ये रिपोर्टें कांगे्रस की ओर से मुद्दे के रूप में इस्तेमाल की गईं। नतीजा ये रहा कि भाजपा 182 में 117 सीटों पर विजयी हो गई। इसी प्रकार 2007 में सुप्रीम कोर्ट की ओर नियुक्त सक्सैना कमेटी में मोदी सरकार के बारे में तीखी टिप्पणियां की गईं। तहलका के स्टिंग ऑपरेशन ने भी खुलासा किया कि दंगों में गुजरात सरकार की गहरी भूमिका थी। उसी साल चुनाव हुए। कांग्रेस ने फिर पुराना मुद्दा उठाया और नतीजा ये रहा कि भाजपा को 182 में से 126 सीटें मिलीं। स्पष्ट है कि जब जब मोदी पर सांपद्रायिक होने का आरोप लगाते हुए कांग्रेसी उबले, गुजरात का हिंदू और अधिक लामबंद हो गया। इन दो चुनाव परिणामों की रोशनी में अनुमान यही बनता है कि अगर कांग्रेस ने माया कोडनानी का मामला जोर-शोर से उठाया तो न केवल पूरा सिंधी समुदाय, अपितु हिंदुओं का एक बड़ा तबका लामबंद हो जाएगा। हां, ये बात दीगर है कि एंटी कंबेंसी अथवा भाजपा की अंदरूनी लड़ाई कम नहीं हुई तो मोदी को कुछ परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
इस मसले को यदि राष्ट्रीय पटल पर देखें तो भाजपा के कट्टर हिंदूवादी तबके में मोदी और अधिक मजबूत हो कर उभरेंगे। वह मुहिम पहले से चल भी रही है। मोदी हिंदुओं के सरताज के रूप में उभरते जा रहे हैं। घोर हिंदूवादी ताकतें पहले से मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर रही हैं। मोदी को अगर नुकसान होने की आशंका है तो वह यह कि उनकी एनडीए का सर्वसम्मत प्रधानमंत्री बनने की दिशा में चल रही मुहिम कमजोर पड़ सकती है। वजह साफ है। अकेले भाजपा के नेतृत्व में तो अगली सरकार बनने नहीं जा रही। बनेगी भी तो एनडीए के अन्य दलों की मदद से। उनमें से बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार पहले ही यह मुद्दा उठा चुके हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए कोई भी सांप्रदायिक चेहरा स्वीकार्य नहीं होगा। कांग्रेसी मोदी पर जितना हमला बोलेंगे, नितीश और अधिक मुखर होने की कोशिश करेंगे। मगर यह मुखरता चुनाव के वक्त मिलने वाली सीटों पर निर्भर करेगी। अगर भाजपा पहले से ज्यादा ताकतवर बन कर उभरती है तो नितीश कुमार जैसों के विरोध के सुर कमजोर भी पड़ सकते हैं।
कुल मिला कर माया कोडनानी व बाबू बजरंगी का मसला भाजपा को गुजरात में तो फायदा दिलाता लग रहा है, राष्ट्रीय पटल पर मोदी के लिए जरूर कुछ किंतु लिए हुए है।
-तेजवानी गिरधर
यह सही है कि गुजरात विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में कोर्ट के फैसले के बहाने कांग्रेस को मोदी पर हमला करने का मौका मिल गया है कि वे घोर सांप्रदायिक हैं। सबसे पहला हमला कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने ही किया। वे पहले से हमले करते रहे हैं। अन्य कांग्रेसी नेताओं की भी बाछें खिली हुई हैं कि कोर्ट के फैसले से उनका आरोप पुष्ट होता है कि उनकी शह पर ही गुजरात में नरसंहार हुआ। मगर यह उनकी खुशफहमी ही साबित होगी। इसकी एक खास वजह है। वो यह कि सांप्रदायिक होने के आरोप से अगर यह सोचा जाता है कि इससे मुसलमान उनके और खिलाफ हो जाएंगे, तो वह तो पहले से ही खिलाफ हैं। उनका वोट तो मोदी को वैसे ही नहीं मिलने वाला है। मुसलमान वोट तो जितना है, उतना ही रहेगा, उलटे कांग्रेसियों के ज्यादा चिल्लाने से सांप्रदायिक व घोर हिंदूवादी होने के आरोप से हिंदू और अधिक लामबंद हो जाएगा। मोदी का जनाधार और मजबूत हो जाएगा। असल में गुजरात में हिंदुओं का एक बड़ा तबका मोदी को इस अर्थ में भगवान मानता है कि उन्होंने मुसलमानों की आए दिन की दादागिरी हरदम के लिए खत्म कर दी। उन्होंने मुसलमानों को इतना कुचल दिया कि अब उनके खिलाफ बोलने की उनमें हिम्मत ही नहीं रही। उलटे डर कर उनके पक्ष में भी बोलने लगे हैं, भले ही मन ही मन नफरत करते हों।
कुल मिला कर कोर्ट के ताजा फैसले से गुजरात में भाजपा को लाभ ही होता नजर आता है। इतिहास भी इसकी पुष्टि करता है। यह सर्वविदित है कि सन् 2002 में मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग और महिला आयोग की रिपोर्ट आई थी और दंगों के लिए मोदी सरकार को दोषी ठहाराया गया था। ब्रिटिश रिपोर्ट भी यही आई कि मोदी सरकार ने दंगाइयों की मदद की। उसी साल गुजरात में चुनाव हुए और ये रिपोर्टें कांगे्रस की ओर से मुद्दे के रूप में इस्तेमाल की गईं। नतीजा ये रहा कि भाजपा 182 में 117 सीटों पर विजयी हो गई। इसी प्रकार 2007 में सुप्रीम कोर्ट की ओर नियुक्त सक्सैना कमेटी में मोदी सरकार के बारे में तीखी टिप्पणियां की गईं। तहलका के स्टिंग ऑपरेशन ने भी खुलासा किया कि दंगों में गुजरात सरकार की गहरी भूमिका थी। उसी साल चुनाव हुए। कांग्रेस ने फिर पुराना मुद्दा उठाया और नतीजा ये रहा कि भाजपा को 182 में से 126 सीटें मिलीं। स्पष्ट है कि जब जब मोदी पर सांपद्रायिक होने का आरोप लगाते हुए कांग्रेसी उबले, गुजरात का हिंदू और अधिक लामबंद हो गया। इन दो चुनाव परिणामों की रोशनी में अनुमान यही बनता है कि अगर कांग्रेस ने माया कोडनानी का मामला जोर-शोर से उठाया तो न केवल पूरा सिंधी समुदाय, अपितु हिंदुओं का एक बड़ा तबका लामबंद हो जाएगा। हां, ये बात दीगर है कि एंटी कंबेंसी अथवा भाजपा की अंदरूनी लड़ाई कम नहीं हुई तो मोदी को कुछ परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
इस मसले को यदि राष्ट्रीय पटल पर देखें तो भाजपा के कट्टर हिंदूवादी तबके में मोदी और अधिक मजबूत हो कर उभरेंगे। वह मुहिम पहले से चल भी रही है। मोदी हिंदुओं के सरताज के रूप में उभरते जा रहे हैं। घोर हिंदूवादी ताकतें पहले से मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर रही हैं। मोदी को अगर नुकसान होने की आशंका है तो वह यह कि उनकी एनडीए का सर्वसम्मत प्रधानमंत्री बनने की दिशा में चल रही मुहिम कमजोर पड़ सकती है। वजह साफ है। अकेले भाजपा के नेतृत्व में तो अगली सरकार बनने नहीं जा रही। बनेगी भी तो एनडीए के अन्य दलों की मदद से। उनमें से बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार पहले ही यह मुद्दा उठा चुके हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए कोई भी सांप्रदायिक चेहरा स्वीकार्य नहीं होगा। कांग्रेसी मोदी पर जितना हमला बोलेंगे, नितीश और अधिक मुखर होने की कोशिश करेंगे। मगर यह मुखरता चुनाव के वक्त मिलने वाली सीटों पर निर्भर करेगी। अगर भाजपा पहले से ज्यादा ताकतवर बन कर उभरती है तो नितीश कुमार जैसों के विरोध के सुर कमजोर भी पड़ सकते हैं।
कुल मिला कर माया कोडनानी व बाबू बजरंगी का मसला भाजपा को गुजरात में तो फायदा दिलाता लग रहा है, राष्ट्रीय पटल पर मोदी के लिए जरूर कुछ किंतु लिए हुए है।
-तेजवानी गिरधर
होना भी चाहिए, क्योंकि अपने आपको धर्मनिरपेक्ष(मुस्लिम हितेशी)बताने वाले लोग कितने धर्मनिरपेक्ष है? सब को पता है। फ़िर यह लोग हिन्दूवादी लोगों पर ही ताने क्यों मारते है?
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ गुजरात में कुछ लोगों को सजा मिली,जबकि सिख दंगों में आज तक किसी को भी सजा क्यों नहीं हुई????????????????? जबकि सिख दंगा 1984 में हुआ था, तथा गुजरात दंगा(गोधरा रेल हादसे के कारण)2002 में????????????
अत: बताईये इन्साफ़ कहां मिला,गुजरात में या दिल्ली में??????
vard verification remove करिये, आपने वैसे ही कमेन्ट पर अपनी इच्छा से पब्लिश करने का जुगाड किया हुआ है।
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