हाल ही अन्य पिछड़ा वर्ग के सर्वे फार्म को लेकर जो बवाल खड़ा हुआ था, राजस्थान राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने उसकी हवा पूरी तरह से निकाल दी है। आयोग ने साफ कर दिया है कि उसकी ओर से सवर्ण जातियों के संदर्भ में कोई सर्वे किया ही नहीं जा रहा, तो ऐसे काल्पनिक सर्वे पर हंगामे का औचित्य ही क्या है। आयोग ने इस सिलसिले में बाकायदा एक प्रेस रिलीज जारी किया है, मगर अफसोसनाक पहलू ये है कि सर्वे में पूछे गए सवालों को घटिया बता कर सवर्णों को भडक़ाने वाले और बाद में सवर्णों के भडक़ जाने पर उसकी खबरें सुर्खियों में छापने वाले मीडिया ने उसे प्रकाशित ही नहीं किया। यदि किसी अखबार ने प्रकाशित भी किया होगा तो किसी कोने-खोचरे में दिया होगा, ताकि वह नजर में ही नहीं आए।
आयोग ने जो प्रेस रिलीज जारी किया है, उसमें साफ तौर पर कहा गया है कि सवर्णों के बारे में इस प्रकार का सर्वे उसके क्षेत्राधिकार में ही नहीं आता है, अपितु उसके लिए अलग से आर्थिक पिछड़ा वर्ग आयोग है। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति पी. के. तिवारी का कहना है कि जो सर्वे फार्म जिला कलेक्टरों को भेजा गया है, उसका सवर्ण जातियों से तो कोई संबंध ही नहीं है।
ऐसा लगता है कि जो सर्वे फार्म एक अखबार में छपा, वह प्रताप फाउंडेशन के प्रवक्ता महावीर सिंह की ओर से ही उपलब्ध करवाया गया होगा, जिसके बारे में संबंधित रिपोर्टर ने पूरी छानबीन की ही नहीं और बाईलाइन फ्रंट पर छपने के चक्कर में जल्दबाजी में सवर्णों को भडक़ाने का काम कर दिया। खबर छपने के बाद जाहिर तौर पर सवर्ण भडक़े भी और उन्होंने बाकायदा आयोग के दफ्तर पर हंगामा भी किया। आखिरकार आयोग के अध्यक्ष को स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी। अहम सवाल ये भी है कि जो सर्वे फार्म जिला कलेक्टरों को भेजा गया है, वह महावीर सिंह के हाथ आया कहां से? यदि आ भी गया तो उन्होंने यह कह कर गुमराह कैसे किया कि वह ब्राह्मण, वैश्य व राजपूत वर्ग से संबंधित है? लगता है कि उन्हें भी नेतागिरी करने की जल्दी थी कि कहीं किसी और नेता के हाथ वह सर्वे फार्म आ जाएगा तो हंगामे का श्रीगणेश करने का श्रेय ले जाएगा।
उल्लेखनीय है कि कथित रूप से ब्राह्मण, राजपूत व वैश्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़ों का पता लगाने के लिए भेजे गए सर्वे फार्म में पूछे गए सवालों को ही पिछड़ा करार देते हुए आपत्ति दर्ज कराई गई थी कि वे अपमानजनक हैं। प्रताप फाउंडेशन के प्रवक्ता महावीर सिंह ने तो बाकायदा यह तक आरोप लगाया कि ऐसे सवाल पूछ कर सरकार गरीब राजपूतों को आरक्षण का लाभ देने से वंचित करना चाहती है। इसी प्रकार एक समाजशास्त्री प्रो. राजीव गुप्ता ने अपनी विद्वता का परिचय देते हुए कहा था कि सरकार भले ही किसी को उसका अधिकार दे या न दे, मगर उसके सम्मान व स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ न करे। दूसरी ओर राज्य पिछड़ा आयोग के सदस्य सचिव ए. के. हेमकार का कहना था कि सर्वे फार्म के सवाल आपत्तिजनक नहीं हैं और ओबीसी में शामिल किए जाने के मापदंड हैं, जो कि पहले से ही निर्धारित हैं। मगर दुर्भाग्य से उन्होंने तब ही यह स्पष्ट नहीं किया कि जिस सर्वे फार्म को लेकर आपत्ति की जा रही है, उसका सवर्णों से कोई ताल्लुक ही नहीं है और इसी कारण विवाद को बढऩे को जगह मिल गई।
आयोग ने जो प्रेस रिलीज जारी किया है, उसमें साफ तौर पर कहा गया है कि सवर्णों के बारे में इस प्रकार का सर्वे उसके क्षेत्राधिकार में ही नहीं आता है, अपितु उसके लिए अलग से आर्थिक पिछड़ा वर्ग आयोग है। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति पी. के. तिवारी का कहना है कि जो सर्वे फार्म जिला कलेक्टरों को भेजा गया है, उसका सवर्ण जातियों से तो कोई संबंध ही नहीं है।
ऐसा लगता है कि जो सर्वे फार्म एक अखबार में छपा, वह प्रताप फाउंडेशन के प्रवक्ता महावीर सिंह की ओर से ही उपलब्ध करवाया गया होगा, जिसके बारे में संबंधित रिपोर्टर ने पूरी छानबीन की ही नहीं और बाईलाइन फ्रंट पर छपने के चक्कर में जल्दबाजी में सवर्णों को भडक़ाने का काम कर दिया। खबर छपने के बाद जाहिर तौर पर सवर्ण भडक़े भी और उन्होंने बाकायदा आयोग के दफ्तर पर हंगामा भी किया। आखिरकार आयोग के अध्यक्ष को स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी। अहम सवाल ये भी है कि जो सर्वे फार्म जिला कलेक्टरों को भेजा गया है, वह महावीर सिंह के हाथ आया कहां से? यदि आ भी गया तो उन्होंने यह कह कर गुमराह कैसे किया कि वह ब्राह्मण, वैश्य व राजपूत वर्ग से संबंधित है? लगता है कि उन्हें भी नेतागिरी करने की जल्दी थी कि कहीं किसी और नेता के हाथ वह सर्वे फार्म आ जाएगा तो हंगामे का श्रीगणेश करने का श्रेय ले जाएगा।
उल्लेखनीय है कि कथित रूप से ब्राह्मण, राजपूत व वैश्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़ों का पता लगाने के लिए भेजे गए सर्वे फार्म में पूछे गए सवालों को ही पिछड़ा करार देते हुए आपत्ति दर्ज कराई गई थी कि वे अपमानजनक हैं। प्रताप फाउंडेशन के प्रवक्ता महावीर सिंह ने तो बाकायदा यह तक आरोप लगाया कि ऐसे सवाल पूछ कर सरकार गरीब राजपूतों को आरक्षण का लाभ देने से वंचित करना चाहती है। इसी प्रकार एक समाजशास्त्री प्रो. राजीव गुप्ता ने अपनी विद्वता का परिचय देते हुए कहा था कि सरकार भले ही किसी को उसका अधिकार दे या न दे, मगर उसके सम्मान व स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ न करे। दूसरी ओर राज्य पिछड़ा आयोग के सदस्य सचिव ए. के. हेमकार का कहना था कि सर्वे फार्म के सवाल आपत्तिजनक नहीं हैं और ओबीसी में शामिल किए जाने के मापदंड हैं, जो कि पहले से ही निर्धारित हैं। मगर दुर्भाग्य से उन्होंने तब ही यह स्पष्ट नहीं किया कि जिस सर्वे फार्म को लेकर आपत्ति की जा रही है, उसका सवर्णों से कोई ताल्लुक ही नहीं है और इसी कारण विवाद को बढऩे को जगह मिल गई।
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