वस्तुतः हिंदू धर्म में बृहस्पति देव को देवताओं के गुरु के रूप में जाना जाता है। वे ज्ञान, धर्म, सत्य और ज्योतिष में निपुण माने जाते हैं। बृहस्पति ग्रह को ज्योतिष में सबसे शुभ माना गया है और गुरु के रूप में पूजा जाता है। गुरुवार यानि (बृहस्पतिवार) को इनकी विशेष पूजा होती है, पीले वस्त्र, चना दाल, पीले फूल आदि चढ़ाए जाते हैं।
दूसरी ओर लोकदेवता स्वरूप वीरल पीर या वीर पीर को संन्यासी, योगी या संत के रूप में पूजा जाता है। इनका संबंध कई बार इस्लाम और हिंदू लोक परंपरा दोनों से जुड़ता है। राजस्थान, गुजरात और सिंध क्षेत्र में इनकी लोकपूजा होती है। इन्हें रोग निवारण, रक्षा और चमत्कारों के लिए जाना जाता है। कई बार मुस्लिम संतों को भी पीर कहा जाता है, जो चमत्कारी और मार्गदर्शक होते हैं। कई बार ग्रामीण क्षेत्रों में हिंदू और मुस्लिम मान्यताओं का मेल हो जाता है। इसलिए किसी संत या पीर को बृहस्पति देव का अवतार या प्रतिनिधि मान लिया जाता है। अगर वीरल पीर की पूजा गुरुवार को होती है, तो लोग उन्हें बृहस्पति से जोड़ सकते हैं। शास्त्रीय दृष्टिकोण से बृहस्पति देव और वीरल पीर अलग हैं, लेकिन लोक मान्यताओं और भक्ति परंपरा में उन्हें एक जैसा आस्था का प्रतीक माना जा सकता है।
राजस्थान और सिंध क्षेत्र में बृहस्पति देव और वीरल पीर को जोड़ने की परंपरा लोकविश्वास, सांस्कृतिक समन्वय और धार्मिक सह-अस्तित्व की भावना से उत्पन्न हुई है।
https://youtu.be/bacfjSLkzHE
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