इस बारे में एआई के जानकारों का कहना है कि श्रीमद्भगवद् गीता वास्तव में श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद है, जो महाभारत के युद्धभूमि कुरुक्षेत्र में हुआ था। यह संवाद लगभग 5,000 वर्ष पूर्व घटित हुआ माना जाता है और इसे श्रुति अर्थात श्रवण से प्राप्त ज्ञान और शाश्वत सत्य के रूप में देखा जाता है, जो केवल शब्दों से नहीं, बल्कि अनुभव और चेतना की उच्च अवस्था से जुड़ा हुआ है। ताजा स्थिति ये है कि एआई वर्तमान में केवल उन ध्वनियों को रिकॉर्ड या पुनर्निर्मित कर सकता है जो कभी भौतिक रूप से उत्पन्न हुई हों और उनका कोई रिकॉर्ड मौजूद हो। चूंकि श्रीकृष्ण-अर्जुन का वास्तविक संवाद (ध्वनि रूप में) 5,000 वर्ष पहले हुआ और कोई भी यंत्र उस समय मौजूद नहीं था, इसलिए उस मूल ध्वनि को वह रिकॉर्ड नहीं कर सकता। कुछ वैज्ञानिक विचार (जैसे कि अकाश तत्व में ध्वनि का संग्रह क्वांटम रेजोनेंस आदि) यह संकेत करते हैं कि ब्रह्मांड में हर ऊर्जा, हर ध्वनि कहीं न कहीं प्रतिध्वनित होती है। यदि भविष्य में कोई ऐसी तकनीक बनती है जो ब्रह्मांडीय ध्वनि-अवशेष अर्थात कॉस्मिक साउंड इंप्रिंट्स को डिकोड कर सके, तब सैद्धांतिक रूप से शायद उस संवाद का कंपन पकड़ा जा सके। पर यह अभी कल्पना के क्षेत्र में ही है।
भारतीय दर्शन में कहा गया है कि गीता का ज्ञान अपौरुषेय (मनुष्य द्वारा न रचित) है, वह अनादि और शाश्वत है।
योगियों और ऋषियों के अनुसार, उस ध्वनि को केवल ध्यान, आंतरिक चेतना और श्रवण यानि इनर हियरिंग से अनुभव किया जा सकता है, न कि बाहरी यंत्रों से। इसे नाद या ओंकार के रूप में भी जाना जाता है, जिसे सूक्ष्म रूप में केवल अनुभवी साधक ही सुन सकते हैं। निश्कर्श यह कि उस मूल गीता संवाद की ध्वनि को वर्तमान में या निकट भविष्य में रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता।
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