असल में यह एक अवधारणा है। अनेक कथावाचकों को यह प्रसंग सुनाते हुए मैने देखा है। यह अवधारणा कहां से आई, पता नहीं, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान श्रीकृष्ण के सिर पर बंधे मोर पंख की गरिमा को और महिमामंडित करने के प्रयास में ऐसी सोच निर्मित हुई होगी। सोच यह भी रही कि चूंकि मोर अन्य प्राणियों की तरह मादा से संसर्ग नहीं करता, इस कारण वह ब्रह्मचारी है। उसकी इसी विशेषता के कारण उसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया।
कुछ अरसा पहले राजस्थान हाईकोर्ट के जज श्री महेश शर्मा ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन एक अहम फैसले के दौरान इसी अवधारणा का हवाला दिया तो पूरे देश में खूब हो-हल्ला हुआ। उनकी खिल्ली भी उड़ाई गई कि इतना विद्वान व्यक्ति बिना पुख्ता जानकारी के कैसे ऐसी मिथ्या बात कर सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके दिमाग में प्रचलित अवधारणा ही थी। गलती सिर्फ ये हुई कि उन्होंने इसका वैज्ञानिक पहलु जानने की कोशिश नहीं की।
बहरहाल, उनके वक्तव्य पर बहस शुरू हो गई और लोग ये सवाल करने लगे कि क्या ये मुमकिन है कि आंसू पीकर मोरनी गर्भवती हो जाए? इस पर पक्षी वैज्ञानिक अपना पक्ष लेकर सामने आए। उनका कहना था कि मोर और मोरनी भी वैसे ही बच्चे पैदा करते हैं, जैसे बाकी पशु-पक्षी। दरअसल वे अपने सुंदर पंख फैला कर मोरनी को मोहित करते हैं। मोरनी जब संसर्ग की सहमति दे देती है तो वे बाकायदा वैसे ही काम क्रीड़ा करते हैं, जैसे अन्य पक्षी। और इस तरह से वह गर्भवति होती है।
विज्ञान के अनुसार प्रजनन के लिए नर-मादा का मिलाप जरूरी है। जिस समय इनका मिलाप होता है, नर मादा की पीठ पर सवार होता है। दोनों मल विसर्जन करने वाले अंग, जिसे कि क्लोका कहा जाता है, उसे खोलते हैं और इस प्रकार नर पक्षी अपना वीर्य मादा के शरीर में प्रविष्ठ करवाता है।
गूगल सर्च करने पर जानकारी मिली कि प्रोफेसर डॉ. संदीप नानावटी के अनुसार मोर शर्मिला पक्षी है, इसलिए वह एकांत मिलने पर ही सहवास करता है। कदाचित इसी वजह से लोगों में भ्रांति है कि मोर के आंसू पी कर मोरनी गर्भवती होती है। पक्षी विज्ञानी विक्रम ग्रेवाल का भी मानना है कि अन्य पक्षियों की तरह मोरनी से सहवास कर प्रजनन करता है।
जहां तक मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित करने का सवाल है तो जानकारी ये है कि मोर पहले भारत में ही पाया जाता था। राष्ट्रीय पक्षी के चुनाव की लिस्ट में मोर के साथ सारस व हंस के नाम थे। 1960 में राष्ट्रीय पक्षी चुनने पर विचार हुआ। उनमें यह एक राय बनी कि उसी पक्षी को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया जाए जो देश के हर हिस्से में पाया जाता हो, उसे हर आम-ओ-खास जानता हो और वह भारतीय संस्कृति का हिस्सा हो। इन शर्तों पर मोर ही खरा उतरा। और इस प्रकार 26 जनवरी 1963 को मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया।
आंसू के जरिए प्रजनन होने के इस प्रसंग के साथ ही इस प्रकार एक प्रसंग और ख्याल में आता है। आपने रामायण सुनी-पढ़ी होगी। उसमें जिक्र आता है कि पवन पुत्र हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे। अपनी पूंछ से लंका दहन के कारण उनको तीव्र पीड़ा हो रही थी। पूंछ की अग्नि को शांत करने के लिए समुद्र के निकट गए। इस दौरान उनको पसीना आया। उस पसीने की एक बूंद को एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई। बाद में एक दिन पाताल के असुरराज अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया। जब वे उसका पेट चीर रहे थे, तो उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला। वे उसे अहिरावण के पास ले गए। अहिरावण ने उसे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही वानर हनुमान पुत्र मकरध्वज के नाम से जाना गया। मकरध्वज ने अपने पैदा होने का वृतांत हनुमान जी को सुनाया। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर श्रीराम व लक्ष्मण को मुक्त कराया और उसे पाताल लोक का राजा नियुक्त कर दिया।
यह प्रसंग मोर-मोरनी के प्रसंग से मिलता जुलता है। तर्क ये दिया जा सकता है कि जब पसीने की बूंद से प्रजनन हो सकता है तो आंसू से क्यों नहीं हो सकता? सच्चाई क्या है, कुछ पता नहीं। शास्त्रों में बिना संसर्ग के अन्य तरीकों से प्रजनन के अनेक उदाहरण मौजूद हैं। उन पर विज्ञान ने अब तक कोई काम नहीं किया है।
https://www.youtube.com/watch?v=2i90D1hDqJo
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