मेवाड़ अंचल में भाजपा के दो दिग्गजों पूर्व गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया और पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव व राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी के बीच जंग तेज हो गई है। एक ओर जहां कटारिया ने दैनिक भास्कर को दिए साक्षात्कार में किरण पर खुल कर हमला बोला तो दूसरे ही दिन किरण ने भी अपनी एक संस्था की गोष्ठी में कटारिया का नाम लिए बिना वह सब कह दिया, जो कि उन्हें कहना था। हालांकि किरण यह कह सकती हैं कि उन्होंने कटारिया के बारे में कुछ नहीं कहा या कटारिया का नाम नहीं लिया, मगर उन्होंने जो कुछ कहा है, उससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह सब कुछ कटारिया के ही बारे में है। ऐसा इस कारण कि इन दिनों वहीं प्रसंग चर्चित है।
आइये देखते हैं, किरण ने क्या कहा है मृगेन्द्र भारती द्वारा राजनीतिक दलों में अन्तर्कलह का प्रभाव विषयक गोष्ठी में-
अनुशासन एवं मर्यादा की लक्ष्मण रेखा के सम्मान से ही संगठन सशक्त बनता है। जब किसी संगठन के अग्रणी व्यक्ति निजी महत्वाकांक्षा को सर्वोपरि मानें एवं संगठन के उद्देश्यों को गौण, उस संगठन का विनाश अवश्यंभावी है। ऐसे व्यक्तियों को मुक्त करके ही संगठन को बचाया जा सकता है। राजनीतिक दलों में अन्तर्कलह से वे अपने मूल लक्ष्यों से भटक जाते हैं। अन्तर्कलह का मुख्य कारण निजी महत्वकांक्षा को संगठन हितों से ऊपर रखना है। महत्वाकांक्षा के विवेकहीन होने पर क्रोध एवं अंहकार उत्पन्न होता है। इससे बुद्धि का विनाश हो जाता है। व्यक्ति हताशा एवं कुंठा से ग्रस्त हो जाता है। हताश एवं कुंठित व्यक्ति प्रमादी के समान व्यवहार करते हैं। वे सहयोगियों को तुच्छ एवं स्वयं को ही संगठन की मूल धूरि मानने की भयंकर भूल करते हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि कटारिया ने पार्टी से अनुमति लिए बिना ही रथ यात्रा निकालने की फैसला किया, जो कि निजी महत्वाकांक्षा की श्रेणी में आता है। जहां तक सहयोगियों को तुच्छ मानने की बात है, वह भी कटारिया के इस बयान से मेल खाती है कि जिन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, वे ही आंख दिखा रहे हैं। स्वयं को संगठन की मूल धूरि मानने की बात का संबंध सीधे तौर पर प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी के उस बयान से मेल खाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यात्रा को लेकर कुछ अंतर्विरोध हो सकते हैं, लेकिन गुलाब चंद कटारिया संगठन की धुरी हैं। कुल मिला कर इसमें तनिक भी संदेह नहीं रह जाता कि किरण का बिना नाम लिए की गई तकरीन कटारिया के संदर्भ में ही है।
ज्ञातव्य है कि कटारिया ने दैनिक भास्कर में किरण के बारे में कहा था कि जिन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, वे ही आंख दिखा रहे हैं। इसका खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि 1989 में मैंने लोकसभा का चुनाव लड़ा तो मैं कांकरोली गया था। वे तब कांकरोली की मीटिंग में महिलाओं के बीच बैठी एक श्रोता मात्र थीं। 1993 का पालिका चुनाव हुआ तो मैंने उन्हें वार्ड से चुनाव लडऩे को कहा। वे जीतीं। उन्हें चेयरमैन मैंने बनाया। मैं जब प्रदेश अध्यक्ष बना 1998-99 में तो उन्हें मैंने महिला मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। जैसे ही वे लोकसभा में गईं। केंद्रीय नेतृत्व के नजदीक आ गईं। मैं तो अपनी जगह काम कर रहा था। वे ऑल इंडिया सेक्रेटरी बन गईं। महिला मोर्चा की अध्यक्ष बन गईं। अब वे महामंत्री हैं। उन्हें लगने लगा कि वे बड़ी हो गईं। वे जिन्होंने उन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, छोटे हो गए हैं।
यह पूछे जाने पर कि 27 अप्रैल को जो राजसमंद में हुआ वह क्या था, वे बोले कि वह सब प्रायोजित था। जैसे ही किरण बोलने लगीं जिंदाबाद-जिंदाबाद के नारे लगने लगे। जिन लोगों से कहा गया कि जो आमंत्रित नहीं हैं, वे चले जाएं तो बावेला शुरू हो गया। हा-हू करके कहने लगे। यात्रा वापस लो। किरण भी उनके बीच जाकर जद्दोजहद करने लगीं। मीडिया भी उन्हीं की गाडियों में बैठ कर आया था। सुबह सवा नौ बजे तो इसकी विज्ञप्ति जारी हो गई थी कि वे यात्रा का विरोध करने के लिए जाने वाले हैं। वे 20-22 लोग थे, लेकिन वे मीडिया को लेकर आए थे, इसलिए मीडिया में उन्हीं के लोगों की बात ज्यादा छपी थी। वो सब प्रायोजित कार्यक्रम था।
इस पर किरण ने मीडिया ने जो बयान दिया, उसे देखिए-
ये रबिश थिंग है। हवा में बिना प्रूफ किसी के बारे में कुछ भी कैसे कहा जा सकता है। इन चीजों के कोई मायने हैं क्या! अगर किसी को कोई पसंद नहीं है, तो ऐसे एलीगेशन लगाना ठीक नहीं हैं। इस परिवार में बहुत सी स्टेजेज हैं। हर स्टेज पर आप शिकायत कर सकते हैं।
इस बयान से स्पष्ट है कि किरण ने सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने से परहेज किया, मगर दूसरे दिन ही अपनी संस्था की संगोष्ठी में जो बोला वह सब पूरी तरह से कटारिया पर ही कहा गया प्रतीत होता है। चाहे इसे किरण स्वीकार करें या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
आइये देखते हैं, किरण ने क्या कहा है मृगेन्द्र भारती द्वारा राजनीतिक दलों में अन्तर्कलह का प्रभाव विषयक गोष्ठी में-
अनुशासन एवं मर्यादा की लक्ष्मण रेखा के सम्मान से ही संगठन सशक्त बनता है। जब किसी संगठन के अग्रणी व्यक्ति निजी महत्वाकांक्षा को सर्वोपरि मानें एवं संगठन के उद्देश्यों को गौण, उस संगठन का विनाश अवश्यंभावी है। ऐसे व्यक्तियों को मुक्त करके ही संगठन को बचाया जा सकता है। राजनीतिक दलों में अन्तर्कलह से वे अपने मूल लक्ष्यों से भटक जाते हैं। अन्तर्कलह का मुख्य कारण निजी महत्वकांक्षा को संगठन हितों से ऊपर रखना है। महत्वाकांक्षा के विवेकहीन होने पर क्रोध एवं अंहकार उत्पन्न होता है। इससे बुद्धि का विनाश हो जाता है। व्यक्ति हताशा एवं कुंठा से ग्रस्त हो जाता है। हताश एवं कुंठित व्यक्ति प्रमादी के समान व्यवहार करते हैं। वे सहयोगियों को तुच्छ एवं स्वयं को ही संगठन की मूल धूरि मानने की भयंकर भूल करते हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि कटारिया ने पार्टी से अनुमति लिए बिना ही रथ यात्रा निकालने की फैसला किया, जो कि निजी महत्वाकांक्षा की श्रेणी में आता है। जहां तक सहयोगियों को तुच्छ मानने की बात है, वह भी कटारिया के इस बयान से मेल खाती है कि जिन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, वे ही आंख दिखा रहे हैं। स्वयं को संगठन की मूल धूरि मानने की बात का संबंध सीधे तौर पर प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी के उस बयान से मेल खाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यात्रा को लेकर कुछ अंतर्विरोध हो सकते हैं, लेकिन गुलाब चंद कटारिया संगठन की धुरी हैं। कुल मिला कर इसमें तनिक भी संदेह नहीं रह जाता कि किरण का बिना नाम लिए की गई तकरीन कटारिया के संदर्भ में ही है।
ज्ञातव्य है कि कटारिया ने दैनिक भास्कर में किरण के बारे में कहा था कि जिन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, वे ही आंख दिखा रहे हैं। इसका खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि 1989 में मैंने लोकसभा का चुनाव लड़ा तो मैं कांकरोली गया था। वे तब कांकरोली की मीटिंग में महिलाओं के बीच बैठी एक श्रोता मात्र थीं। 1993 का पालिका चुनाव हुआ तो मैंने उन्हें वार्ड से चुनाव लडऩे को कहा। वे जीतीं। उन्हें चेयरमैन मैंने बनाया। मैं जब प्रदेश अध्यक्ष बना 1998-99 में तो उन्हें मैंने महिला मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। जैसे ही वे लोकसभा में गईं। केंद्रीय नेतृत्व के नजदीक आ गईं। मैं तो अपनी जगह काम कर रहा था। वे ऑल इंडिया सेक्रेटरी बन गईं। महिला मोर्चा की अध्यक्ष बन गईं। अब वे महामंत्री हैं। उन्हें लगने लगा कि वे बड़ी हो गईं। वे जिन्होंने उन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, छोटे हो गए हैं।
यह पूछे जाने पर कि 27 अप्रैल को जो राजसमंद में हुआ वह क्या था, वे बोले कि वह सब प्रायोजित था। जैसे ही किरण बोलने लगीं जिंदाबाद-जिंदाबाद के नारे लगने लगे। जिन लोगों से कहा गया कि जो आमंत्रित नहीं हैं, वे चले जाएं तो बावेला शुरू हो गया। हा-हू करके कहने लगे। यात्रा वापस लो। किरण भी उनके बीच जाकर जद्दोजहद करने लगीं। मीडिया भी उन्हीं की गाडियों में बैठ कर आया था। सुबह सवा नौ बजे तो इसकी विज्ञप्ति जारी हो गई थी कि वे यात्रा का विरोध करने के लिए जाने वाले हैं। वे 20-22 लोग थे, लेकिन वे मीडिया को लेकर आए थे, इसलिए मीडिया में उन्हीं के लोगों की बात ज्यादा छपी थी। वो सब प्रायोजित कार्यक्रम था।
इस पर किरण ने मीडिया ने जो बयान दिया, उसे देखिए-
ये रबिश थिंग है। हवा में बिना प्रूफ किसी के बारे में कुछ भी कैसे कहा जा सकता है। इन चीजों के कोई मायने हैं क्या! अगर किसी को कोई पसंद नहीं है, तो ऐसे एलीगेशन लगाना ठीक नहीं हैं। इस परिवार में बहुत सी स्टेजेज हैं। हर स्टेज पर आप शिकायत कर सकते हैं।
इस बयान से स्पष्ट है कि किरण ने सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने से परहेज किया, मगर दूसरे दिन ही अपनी संस्था की संगोष्ठी में जो बोला वह सब पूरी तरह से कटारिया पर ही कहा गया प्रतीत होता है। चाहे इसे किरण स्वीकार करें या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें