पूर्व उप प्रधानमंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की जनचेतना यात्रा के राजस्थान दौरे के दौरान कांग्रेस और भाजपा के बीच चले आरोप-प्रत्यारोप के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यह चुनौती मिल गई है कि वे वसुंधरा राजे सरकार के दौरान हुए जिस भ्रष्टाचार को लेकर वे बार-बार भाजपा पर हमले करते हैं, उन्हें साबित भी करके दिखाएं।
विवाद की नए सिरे से शुरुआत इस वजह से हुई क्योंकि कांग्रेस ने आडवाणी के राजस्थान में प्रवेश के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनकी पूर्ववर्ती सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए भाजपा को घेरने की कोशिश की। कांग्रेस की ओर भ्रष्टाचार से जुड़े दस सवाल दागे, जो पूर्व में भी कई बार दागे जा चुके हैं। अर्थात कांग्रेस ने वे ही बम फिर छोडऩे की कोशिश की, जो कि पहले ही फुस्स साबित हो चुके हैं। वे सवाल खुद की ये सवाल पैदा कर रहे थे कि उनमें से एक में भी कार्यवाही क्यों नहीं हो पाई है, जबकि अब तो सरकार कांग्रेस की है। प्रतिक्रिया में न केवल भाजपा ने पलटवार किया और मौजूदा कांग्रेस सरकार के तीन साल के कामकाज पर सवाल उठा दिए, अपितु पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी दहाड़ीं। उन्होंने गहलोत के गृह नगर में ही उन्हें चुनौती दी कि केवल आरोप क्या लगाते हो, उन्हें साबित भी करके दिखाओ। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि गहलोत ने उन्हें घेरने के लिए माथुर आयोग तक बनाया, कोर्ट में भी गए, मगर आज तक आरोप साबित नहीं कर पाए हैं। पूरी सरकार आपके पास है, सरकारी दस्तावेज आपके पास हैं, भ्रष्टाचार हुआ था तो साबित क्यों नहीं कर पा रहे। जाहिर तौर पर उनकी बात में दम है। हालांकि यह सही है कि गहलोत ने भाजपा के ही नेताओं के बयानों को आधार पर भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, मगर उनमें से एक को भी साबित नहीं कर पाए हैं। ऐसे में आडवाणी के यात्रा के दौरान उठाए गए सारे सवाल बेमानी हो गए हैं। उलटे भाजपा की ओर से सरकार को जिस प्रकार घेरा गया है, उसका गहलोत से जवाब देते नहीं बन रहा है। सरकार की यह हालत देख कर खुद कांग्रेसी नेताओं को बड़ा अफसोस है कि गहलोत सरकार इस मोर्चे पर पूरी तरह से नकारा साबित हो गई है। उन्हें बड़ी पीड़ा है कि वे वसुंधरा को घेरने की बजाय खुद ही घिरते जा रहे हैं। वसुंधरा के दहाडऩे से उनके सीने पर सांप लौटने लगे हैं। वे सियापा कर रहे हैं कि सरकार ने वसुंधरा के खिलाफ की जांच ठीक से क्यों नहीं करवाई। कांग्रेसी नेताओं का ये भी कहना है कि भले ही तकनीकी पहलुओं के कारण माथुर आयोग की कवायद बेकार हो गई, मगर इसका मतलब ये नहीं है कि भ्रष्टाचार तो नहीं हुआ था। कोर्ट ने वसुंधरा को क्लीन चिट नहीं दी है। कदाचित उनकी बात में कुछ सच्चाई भी हो, मगर न केवल वसुंधरा की ओर से, अपितु अब तो कांग्रेस ने भी एक तरह से गहलोत को चुनौती दे दी है कि वसुंधरा पर आरोप लगाने मात्र से कुछ नहीं होगा, उसे साबित भी करके दिखाइये। हालांकि यह भी सही है कि वसुंधरा जिस तरह से अपने आप को निर्दोष बताते हुए दहाड़ रही हैं, जनता उन्हें उतना पाक साफ नहीं मानती। भाजपा राज में हुए भ्रष्टाचार को लेकर आम जनता में चर्चा तो खूब है, भले ही गहलोत उसे साबित करने में असफल रहे हों। जनता की नजर में भले ही वसुंधरा की छवि बहुत साफ-सुथरी नहीं हो, मगर कम से कम गहलोत तो उनके दामन पर दाग नहीं लगा पाए हैं।
कुल मिला कर आडवाणी के यात्रा के दौरान कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार को बदनाम करने की मुहिम तो नकारा हुई ही है, उलटे खुद कांग्रेस सरकार और उसके मंत्री तक घिर गए हैं। भंवरीदेवी नट के मामले में तो मदेरणा का कैरियर चौपट होने के साथ खुद गहलोत तो चुनौती मिल रही है कि उनके भी इस मामले से तार जुड़े हुए हैं और क्या वे भी इस्तीफा देंगे। गहलोत के तार जुड़े हुए हैं या नहीं, पता नहीं, लेकिन इतनी तो आम धारणा बन ही गई है कि इस मामले में वे जातीय राजनीति के कारण पूरी तरह से कमजोर दिख हैं। प्रदेश की प्रभावशाली जाट लॉबी के दबाव में वे काफी दिन तक तो इस मामले को टालते ही रहे। बाद में जब एक के बाद एक परतें खुलीं तो वे समझ गए कि मदेरणा को बचाना मुश्किल होगा। इस पर मदेरणा को इस्तीफा देने को कह दिया, मगर उनकी बात को मदेरणा ने सुना-अनसुना कर दिया। हालत ये हो गई कि कांग्रेस आलाकमान को दखल देना पड़ा और ऊपर की फटकार के बाद उन्हें मदेरणा को बर्खास्त करने की सिफारिश करनी पड़ी। कुछ और मंत्रियों पर लगे आरोपों के चलते गहलोत की पहले की काफी किरकिरी हो चुकी है। हालांकि गहलोत ने भंवरी देवी के मामले में पलट वार करते हुए भाजपा नेताओं के भी भंवरी से संबंधों की ओर इशारा किया है और सवाल खड़ा किया है कि इस मामले में भाजपा ज्यादा हल्ला क्यों नहीं मचा रही, मगर सब समझते हैं कि इसे साबित करना बहुत कठिन है। जाहिर तौर पर भंवरी देवी कोई कांग्रेसी तो थी नहीं कि उसके केवल कांग्रेस नेताओं से ही तालुक्क होते। जैसा उसका पेशा था, भाजपा नेताओं से भी उसके संबंध हो सकते हैं, मगर अहम सवाल ये है कि उसका अपहरण और कथित हत्या किसने करवाई? चूंकि मौजूदा विवाद की जड़ में भंवरी और मदेरणा के अवैध संबंध हैं, इस कारण उनसे जुड़ी सीडी भी सामने आई। ऐसी सीडी कम से कम भाजपा नेताओं के बारे में आने की तो संभावना कम ही नजर आती है। अलबत्ता किसी के बयानों में भंवरी के भाजपा नेताओं से भी संबंध होने की बात जरूर आ सकती है। वह कोई खास बात नहीं होगी, क्योंकि भंवरी के कुछ बड़े अधिकारियों से भी संबंधों की बात सामने आ रही है।
लब्बोलुआब मौजूदा दौर में यह जुमला फिट बैठता है कि बद अच्छा बदनाम बुरा। व्यक्तिगत तौर पर भले ही वसुंधरा राजे के बारे में आम धारणा ज्यादा अच्छी नहीं है और गहलोत के चरित्र पर कोई बड़ा दाग नहीं है, बावजूद इसके वसुंधरा की तुलना में गहलोत सरकार का कामकाज उन्नीस ही माना जा रहा है।
-tejwanig@gmail.com
विवाद की नए सिरे से शुरुआत इस वजह से हुई क्योंकि कांग्रेस ने आडवाणी के राजस्थान में प्रवेश के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनकी पूर्ववर्ती सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए भाजपा को घेरने की कोशिश की। कांग्रेस की ओर भ्रष्टाचार से जुड़े दस सवाल दागे, जो पूर्व में भी कई बार दागे जा चुके हैं। अर्थात कांग्रेस ने वे ही बम फिर छोडऩे की कोशिश की, जो कि पहले ही फुस्स साबित हो चुके हैं। वे सवाल खुद की ये सवाल पैदा कर रहे थे कि उनमें से एक में भी कार्यवाही क्यों नहीं हो पाई है, जबकि अब तो सरकार कांग्रेस की है। प्रतिक्रिया में न केवल भाजपा ने पलटवार किया और मौजूदा कांग्रेस सरकार के तीन साल के कामकाज पर सवाल उठा दिए, अपितु पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी दहाड़ीं। उन्होंने गहलोत के गृह नगर में ही उन्हें चुनौती दी कि केवल आरोप क्या लगाते हो, उन्हें साबित भी करके दिखाओ। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि गहलोत ने उन्हें घेरने के लिए माथुर आयोग तक बनाया, कोर्ट में भी गए, मगर आज तक आरोप साबित नहीं कर पाए हैं। पूरी सरकार आपके पास है, सरकारी दस्तावेज आपके पास हैं, भ्रष्टाचार हुआ था तो साबित क्यों नहीं कर पा रहे। जाहिर तौर पर उनकी बात में दम है। हालांकि यह सही है कि गहलोत ने भाजपा के ही नेताओं के बयानों को आधार पर भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, मगर उनमें से एक को भी साबित नहीं कर पाए हैं। ऐसे में आडवाणी के यात्रा के दौरान उठाए गए सारे सवाल बेमानी हो गए हैं। उलटे भाजपा की ओर से सरकार को जिस प्रकार घेरा गया है, उसका गहलोत से जवाब देते नहीं बन रहा है। सरकार की यह हालत देख कर खुद कांग्रेसी नेताओं को बड़ा अफसोस है कि गहलोत सरकार इस मोर्चे पर पूरी तरह से नकारा साबित हो गई है। उन्हें बड़ी पीड़ा है कि वे वसुंधरा को घेरने की बजाय खुद ही घिरते जा रहे हैं। वसुंधरा के दहाडऩे से उनके सीने पर सांप लौटने लगे हैं। वे सियापा कर रहे हैं कि सरकार ने वसुंधरा के खिलाफ की जांच ठीक से क्यों नहीं करवाई। कांग्रेसी नेताओं का ये भी कहना है कि भले ही तकनीकी पहलुओं के कारण माथुर आयोग की कवायद बेकार हो गई, मगर इसका मतलब ये नहीं है कि भ्रष्टाचार तो नहीं हुआ था। कोर्ट ने वसुंधरा को क्लीन चिट नहीं दी है। कदाचित उनकी बात में कुछ सच्चाई भी हो, मगर न केवल वसुंधरा की ओर से, अपितु अब तो कांग्रेस ने भी एक तरह से गहलोत को चुनौती दे दी है कि वसुंधरा पर आरोप लगाने मात्र से कुछ नहीं होगा, उसे साबित भी करके दिखाइये। हालांकि यह भी सही है कि वसुंधरा जिस तरह से अपने आप को निर्दोष बताते हुए दहाड़ रही हैं, जनता उन्हें उतना पाक साफ नहीं मानती। भाजपा राज में हुए भ्रष्टाचार को लेकर आम जनता में चर्चा तो खूब है, भले ही गहलोत उसे साबित करने में असफल रहे हों। जनता की नजर में भले ही वसुंधरा की छवि बहुत साफ-सुथरी नहीं हो, मगर कम से कम गहलोत तो उनके दामन पर दाग नहीं लगा पाए हैं।
कुल मिला कर आडवाणी के यात्रा के दौरान कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार को बदनाम करने की मुहिम तो नकारा हुई ही है, उलटे खुद कांग्रेस सरकार और उसके मंत्री तक घिर गए हैं। भंवरीदेवी नट के मामले में तो मदेरणा का कैरियर चौपट होने के साथ खुद गहलोत तो चुनौती मिल रही है कि उनके भी इस मामले से तार जुड़े हुए हैं और क्या वे भी इस्तीफा देंगे। गहलोत के तार जुड़े हुए हैं या नहीं, पता नहीं, लेकिन इतनी तो आम धारणा बन ही गई है कि इस मामले में वे जातीय राजनीति के कारण पूरी तरह से कमजोर दिख हैं। प्रदेश की प्रभावशाली जाट लॉबी के दबाव में वे काफी दिन तक तो इस मामले को टालते ही रहे। बाद में जब एक के बाद एक परतें खुलीं तो वे समझ गए कि मदेरणा को बचाना मुश्किल होगा। इस पर मदेरणा को इस्तीफा देने को कह दिया, मगर उनकी बात को मदेरणा ने सुना-अनसुना कर दिया। हालत ये हो गई कि कांग्रेस आलाकमान को दखल देना पड़ा और ऊपर की फटकार के बाद उन्हें मदेरणा को बर्खास्त करने की सिफारिश करनी पड़ी। कुछ और मंत्रियों पर लगे आरोपों के चलते गहलोत की पहले की काफी किरकिरी हो चुकी है। हालांकि गहलोत ने भंवरी देवी के मामले में पलट वार करते हुए भाजपा नेताओं के भी भंवरी से संबंधों की ओर इशारा किया है और सवाल खड़ा किया है कि इस मामले में भाजपा ज्यादा हल्ला क्यों नहीं मचा रही, मगर सब समझते हैं कि इसे साबित करना बहुत कठिन है। जाहिर तौर पर भंवरी देवी कोई कांग्रेसी तो थी नहीं कि उसके केवल कांग्रेस नेताओं से ही तालुक्क होते। जैसा उसका पेशा था, भाजपा नेताओं से भी उसके संबंध हो सकते हैं, मगर अहम सवाल ये है कि उसका अपहरण और कथित हत्या किसने करवाई? चूंकि मौजूदा विवाद की जड़ में भंवरी और मदेरणा के अवैध संबंध हैं, इस कारण उनसे जुड़ी सीडी भी सामने आई। ऐसी सीडी कम से कम भाजपा नेताओं के बारे में आने की तो संभावना कम ही नजर आती है। अलबत्ता किसी के बयानों में भंवरी के भाजपा नेताओं से भी संबंध होने की बात जरूर आ सकती है। वह कोई खास बात नहीं होगी, क्योंकि भंवरी के कुछ बड़े अधिकारियों से भी संबंधों की बात सामने आ रही है।
लब्बोलुआब मौजूदा दौर में यह जुमला फिट बैठता है कि बद अच्छा बदनाम बुरा। व्यक्तिगत तौर पर भले ही वसुंधरा राजे के बारे में आम धारणा ज्यादा अच्छी नहीं है और गहलोत के चरित्र पर कोई बड़ा दाग नहीं है, बावजूद इसके वसुंधरा की तुलना में गहलोत सरकार का कामकाज उन्नीस ही माना जा रहा है।
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समय ही बताएगा आगे क्या होता है..... पर स्थिति बड़ी दुखद है ....
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