हाल ही अन्य पिछड़ा वर्ग के सर्वे फार्म को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। ब्राह्मण, राजपूत व वैश्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़ों का पता लगाने के लिए भेजे गए सर्वे फार्म में पूछे गए सवालों को ही पिछड़ा करार देते हुए आपत्ति दर्ज कराई गई है कि वे अपमानजनक हैं। प्रताप फाउंडेशन के प्रवक्ता महावीर सिंह ने तो यह तक आरोप लगाया है कि ऐसे सवाल पूछ कर सरकार गरीब राजपूतों को आरक्षण का लाभ देने से वंचित करना चाहती है। इसी प्रकार एक समाजशास्त्री प्रो. राजीव गुप्ता ने अपनी विद्वता का परिचय देते हुए कहा है कि सरकार भले ही किसी को उसका अधिकार दे या न दे, मगर उसके सम्मान व स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ न करे। दूसरी ओर राज्य पिछड़ा आयोग के सदस्य सचिव ए. के. हेमकार का कहना है कि सर्वे फार्म के सवाल आपत्तिजनक नहीं हैं और ओबीसी में शामिल किए जाने के मापदंड हैं, जो कि पहले से ही निर्धारित हैं।
सर्वप्रथम अगर हेमकार के तर्क को आधार मानें तो जब यह स्पष्ट ही है कि अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने का मापदंड ही वह सर्वे फार्म है तो उस पर किसी को आपत्ति करने का अधिकार ही नहीं बनता। जब पूर्व में उसी आधार पर ही कुछ जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग का लाभ दिया गया है, तो इस वर्ग में शामिल करने के लिए ब्राह्मण, राजपूत व वैश्य के लिए अलग तरह का सर्वे फार्म कैसे बनाया जा सकता है? उनके लिए अलग मापदंड कैसे बनाए जा सकते हैं? अगर उन्हें इस वर्ग का लाभ हासिल करना है तो इस सर्वे फार्म से तो गुजरना ही होगा। रहा सवाल गरीब राजपूतों अथवा गरीब ब्राह्मण-बनियों को आरक्षण से वंचित करने का तो इसमें दो बिंदू विचारणीय लगते हैं। एक तो यदि राजपूत जाति का कोई व्यक्ति गरीब है तो उसे अन्य गरीबों की तरह बीपीएल के तहत लाभ मिल सकता है। उसके लिए अलग से आरक्षण की जरूरत ही क्या है। और यदि पूरे समूह को ही आर्थिक रूप से पिछड़ा होने के नाते अन्य पिछड़ा वर्ग का लाभ हासिल करना है तो जाहिर तौर पर उनके पिछड़ेपन की मूल वजह के आधार पर ही तय किया जाएगा कि वे पिछड़ हुए हैं। सर्वे फार्म में जो मापदंड दिए गए हैं, भले ही वे कहने और बताने में अपमानजनक लगें, मगर असल में उन्हीं मापदंडों से ही तो पता लगता है कि अमुक जाति वर्ग पिछड़ा हुआ है। जैसे सर्वे फार्म के कुछ सवाल, जिन पर आपत्ति की जा रही है, उनमें पूछा गया है कि क्या उस जाति वर्ग को अन्य जातियां नीच व शूद्र समझती हैं, क्या इस जाति वर्ग को आपराधिक प्रवृत्ति का माना जाता है, क्या इस जाति वर्ग के लोग जीविकोपार्जन के लिए भिक्षा वृत्ति, पूजा-पाठ, संगीत, व नृत्य पर निर्भर हैं? ये सारे वे सवाल हैं, जो इस बात का उत्तर देने के लिए पर्याप्त हैं कि कोई जाति वर्ग उन कथित अपमानजनक कारणों से आर्थिक रूप से पिछड़ा रहा या फिर उसके पिछडऩे की वजह वे कारण रहे। कैसी विडंबना है कि एक ओर तो आर्थिक रूप से पिछड़े होने के नाते अन्य पिछड़ा वर्ग का लाभ लेना भी चाहते हैं, मगर सर्वे फार्म में दिए गए सवालों की परिभाषा में आना भी नहीं चाहते। असल बात है ही ये कि कोई जाति सम्मानजनक स्थिति में हो ही तभी सकती है, जबकि वह शुरू से आर्थिक रूप से संपन्न रही हो। यदि अपमानजनक स्थिति में रही है तो उसके लिए भले ही समाज के संपन्न और उच्च जातियों के लोग जिम्मेदार रहे हों, मगर इसे तो स्वीकार करना ही होगा न कि वे अपमानजनक कारणों की वजह से आर्थिक रूप से पिछड़ गए थे। क्या यह सही नहीं है कि कोई जाति वर्ग आर्थिक रूप से पिछड़ी रही ही इसलिए होगी कि उसे सम्मानजनक तरीके से कमाने नहीं दिया जाता होगा और उसे गा, बजा व नाच कर आजीविका चलाने अथवा आपराधिक तरीकों से पेट पालने को मजबूर होना पड़ा होगा? जब यह स्पष्ट है कि अनेक जातियां आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण ही अन्य जातियों से हेय मानी जाती रहीं तो इस हेय शब्द पर आपत्ति करने को कोई मतलब ही नहीं रहता।
सर्वे फार्म में पूछे गए इस सवाल पर कि क्या उसे नीच या शूद्र समझा जाता रहा है, पर अगर ब्राह्मण, राजपूत व वैश्य को आपत्ति है तो इसका अर्थ ये है कि वह अपने आपको उच्च जाति का मानते हैं, जो कि प्रत्यक्षत: दिखाई भी दे रहा है। क्या यह सही नहीं है कि आम धारणा में ब्राह्मण-बनियों व राजपूतों को उच्च वर्ग का माना जाता है? उच्च वर्ग का माना ही इसलिए जाता है कि वे सामाजिक व आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक संपन्न रहे हैं। रहा सवाल इस बात का कि ब्राह्मण-बनियों व राजपूतों में से कुछ जाति वर्ग सर्वे फार्म में पूछे गए कारणों की बजाय अन्य कारणों से आर्थिक रूप से पिछड़ गए तो उन्हें प्रारंभ में ही यह दर्ज करवाना चाहिए था। आज जब ये जाति वर्ग अन्य पिछड़ा वर्ग का लाभ हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें उस मापदंड को भी मानना चाहिए, जिसके तहत अन्य जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग का लाभ मिला है। ऐसा नहीं हो सकता कि उन्हें उच्च वर्ग का भी माना जााए और आर्थिक रूप से पिछड़ा भी माना जाए। अगर यह मान भी लिया जाए कि कुछ लोग थे तो उच्च वर्ग के, लेकिन किन्हीं कारणों से विपन्न हो गए तो उसे स्पष्ट करते हुए आरक्षण की मांग की जानी चाहिए थी।
बहरहाल, बहस की शुरुआत हो गई है और इसी प्रकार नुक्ताचीनी और राजनीति की जाती रही तो ब्राह्मण-बनियों व राजपूतों में जो लोग वाकई जरूरतमंद हैं, वे आरक्षण का लाभ लेने से वंचित हो जाएंगे। और अगर आरक्षण का लाभ लेना है तो सामाजिक रूप से पिछड़ेपन को स्वीकार करने को मूूंछ का सवाल नहीं बनाना चाहिए।
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