तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, मई 10, 2012

वसुंधरा राजे के चक्कर में किरण का घर लपटों में

पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की खातिर पूर्व गृह मंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता गुलाब चंद कटारिया की यात्रा के विरोध की आग लगाने वाली पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव व राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी के खुद के घर राजसमन्द और आसपास में ही आग लग गई है।
हालांकि किरण का कटारिया से छत्तीस का आंकड़ा काफी पुराना है और उनके यात्रा निकालने का मेवाड़ अंचल पर किरण के वर्चस्व पर भी स्वाभाविक रूप से असर पडऩे वाला था, मगर यह सीधे तौर पर वसुंधरा को चुनौती थी, न कि किरण को। यह संघर्ष आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर संघ और वसुंधरा के बीच का था। कटारिया ने यात्रा का ऐलान कर एक तरह से वसुंधरा को चुनौती दी थी क्योंकि वे अपने आप को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने के लिए यात्रा निकालने की तैयारी कर रही थीं। इस झगड़े के बीच सीधे तौर पर किरण का तो कोई लेना देना ही नहीं था। ये पता नहीं कि किरण ने वसुंधरा के कहने पर अथवा खुद ही वसुंधरा का वफादार साबित होने के चक्कर में राजसमंद में आयोजित यात्रा तैयारी बैठक में जा कर हंगामा कर दिया। इतना ही नहीं बाद में दिल्ली जा कर शिकायत और कर दी। इसका परिणाम ये हुआ कि राजसमंद से उठी लपटें पहले दिल्ली पहुंची और बाद में जयपुर सहित पूरे राज्य में फैल गईं। हुआ वही जो होना था। झगड़ा संघ और वसुंधरा के बीच हो गया। इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी भी लपेटे में आ गए क्योंकि उन्होंने ही कटारिया की यात्रा का समर्थन कर अनुमति दी थी।
ज्ञातव्य है कि जब वसुंधरा गुस्से में कोर कमेटी की बैठक से बाहर आ कर बिफरीं तो कटारिया ने यात्रा वापस लेने की घोषणा कर दी। मामला यहीं समाप्त हो सकता था, मगर वसुंधरा को लगा कि यही सही मौका है कि एक बार फिर हाईकमान को अपनी ताकत का अहसास कराया जाए, ताकि रोजाना की किलकिलबाजी खत्म हो, सो इस्तीफों का नाटक शुरू करवा दिया। इस प्रकरण में कटारिया ने पार्टी हित में यात्रा वापस लेने का ऐलान कर अपने आप को सच्चा कार्यकर्ता स्थापित कर लिया और उदयपुर जा कर बैठ गए। कदाचित वहीं बैठे-बैठे उन्होंने सोचा कि वसुंधरा का तो जो होगा, हो जाएगा, मगर कम से कम किरण को तो मजा चखा ही दिया जाए, जिसने कि मुखाग्नि दी थी। समझा जाता है कि उन्हीं के इशारे पर राजसमंद की घटना के दस दिन बाद यकायक वहां के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने नए सिरे से किरण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। किरण माहेश्वरी के लिए यह बेहद शर्मनाक है कि एक राष्ट्रीय महासचिव, जिसकी हैसियत ताजा प्रकरण में दिल्ली में वसुंधरा के दूत के रूप में रही, उन्हें उन्हीं के विधानसभा क्षेत्र की जिला भाजपा इकाई ललकार रही है। कहां राष्ट्रीय महासचिव और कहां जिले के पदाधिकारी। जिलाध्यक्ष नन्दलाल सिंघवी, पूर्व जिला प्रमुख हरिओम सिंह राठौड़, नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह, कुम्भलगढ़ के पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह राठौड़, राजसमन्द के पूर्व विधायक बंशीलाल खटीक ने गडकरी को पत्र फैक्स कर राजसमंद बैठक में हंगामा कराने के आरोप में किरण को तुरंत प्रभाव से पद से हटा कर अनुशासनात्मक कार्यवाही की मांग कर दी है। पत्र पर 41 पदाधिकारियों और नेताओं के हस्ताक्षर हैं। इसमें 5 मई को कार्यकर्ताओं को जयपुर ले जाकर प्रदेश के बड़े नेताओं के खिलाफ नारेबाजी एवं गलत बयानबाजी का भी आरोप लगाया गया है। इसमें लिखा है कि किरण ने जयपुर के सारे घटनाक्रम के बाद अपने विधायक एवं महासचिव पद से त्यागपत्र की पेशकश की व बाद में इस सारे घटनाक्रम से केन्द्रीय नेतृत्व के सामने मुकर गईं। पत्र में माहेश्वरी पर राष्ट्रीय महासचिव होने के बावजूद ऐसी अनुशासनहीनता करना, गुटबाजी पैदा करना, समानांतर संगठन चलाना, अपने आप को पार्टी से ऊपर समझना तथा निष्काषित कार्यकर्ताओं को साथ लेकर पार्टी विरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के आरोप भी लगाए गए हैं।
किरण के खिलाफ अपने ही घर में माहौल कितना खराब हो गया है, इसका अंदाजा इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों के कद से ही हो जाता है। पत्र पर जिला महामंत्री महेश पालीवाल, श्रीकृष्ण पालीवाल, भीमसिंह चौहान, जिला उपाध्यक्ष नवल सिंह सुराना, मोहन सिंह चौहान, राजेंद्र लोहार, शंकर लाल सुथार, पूर्व जिलाध्यक्ष प्रताप सिंह मेहता, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य वीरेन्द्र पुरोहित, जिला मंत्री बबर सिंह, जिला कोषाध्यक्ष देवीलाल प्रजापत , भीम मंडल अध्यक्ष मोती सिंह, महामंत्री लक्ष्मण सिंह, आमेट नगर मंडल अध्यक्ष यशवंत चोर्डिय़ा, भाजपा मीडिया जिला संयोजक मधुप्रकाश लड्ढा, राजसमन्द नगर मंडल अध्यक्ष प्रवीण नंदवाना, महामंत्री सत्यदेव सिंह, ग्रामीण मंडल अध्यक्ष गोपाल कृष्ण पालीवाल, महामंत्री जवाहर जाट, नाथद्वारा नगर मंडल अध्यक्ष शिव पुरोहित, नगर महामंत्री परेश सोनी, ग्रामीण मंडल अध्यक्ष रमेश दवे, महामंत्री संजय मांडोत, आमेट ग्रामीण मंडल अध्यक्ष हजारी गुर्जर, महामंत्री हरीसिंह राव, बाबूलाल कुमावत, चन्द्रशेखर पालीवाल, रेलमगरा मंडल अध्यक्ष गोविन्द सोनी, महामंत्री प्रकाश खेरोदिया, रतन सिंह, कुम्भलगढ़ मंडल अध्यक्ष भेरू सिंह खरवड़, महामंत्री चन्द्रकान्त आमेटा, भाजयुमो जिला अध्यक्ष सुनील जोशी, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष संगीता कुंवर चौहान के हस्ताक्षर बताए गए हैं।
बहरहाल, वसुंधरा राजे का तो जो होगा, हो जाएगा, मगर किरण ने उनके चक्कर में अपने घर में जरूर आग लगा ली है। अब देखना ये है कि वे इससे कैसे निपटती हैं। इसकी प्रतिक्रिया में उन्होंने राजस्थान पत्रिका को जो बयान दिया है, उसमें कहा है कि मेरे विरोध में पत्र लिखा है, लिखने दो। इस बारे में किसी को जवाब नहीं देना चाहती। जवाब जनता के बीच दूंगी। समझ में ये नहीं आता कि जब पत्र राष्ट्रीय अध्यक्ष को लिखा गया है तो उसका जवाब जनता के बीच जा कर क्यों देंगी?

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

रविवार, मई 06, 2012

संघ को आखिर तकलीफ क्या है वसुंधरा मेडम से?

प्रदेश भाजपा में मचा ताजा घमासान कोई नया नहीं है। इससे पहले भी पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को नेता प्रतिपक्ष पद से हटाने व फिर मजबूरी में बनाने के दौरान भी विवाद यही था कि भाजपा का मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उन्हें नापसंद करता है और वह उन्हें दुबारा मुख्यमंत्री बनने नहीं देना चाहता। आज भी स्थिति जस की तस है। ताजा विवाद तो बासी कढ़ी में उबाल मात्र है।
प्रदेश के संघनिष्ठ नेताओं को श्रीमती वसुंधरा राजे से कितनी एलर्जी है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और पूर्व उप प्रधानमंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी के यह साफ कर देने पर कि आगामी विधानसभा चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, गुलाब चंद कटारिया व ललित किशोर चतुर्वेदी ने यह कह विवाद पैदा किया कि ऐसा पार्टी में तय नहीं किया गया है। उसी कड़ी में जब संघ के नेताओं को पता लगा कि वसुंधरा जल्द ही प्रदेश में अपने आपको स्थापित करने के लिए रथ यात्रा निकालने की तैयारी कर रही हैं, कटारिया ने खुद मेवाड़ अंचल में यात्रा निकालने की घोषणा कर दी। इस पर जैसे ही वसुंधरा के इशारे पर कटारिया से व्यक्तिगत रंजिश रखने वाली पार्टी महासचिव व राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी ने विरोध किया तो बवाल हो गया। उसी का परिणाम है ताजा जलजला, जिसमें वसुंधरा ने एक बार फिर इस्तीफों का हथकंडा अपना कर केन्द्रीय नेतृत्व को मुश्किल में डाल दिया है। हालांकि विवाद बढऩे पर कटारिया अपनी यात्रा स्थगित करने की घोषणा कर चुके हैं, अर्थात अपनी ओर से विवाद समाप्त कर चुके हैं, मगर इस बार वसुंधरा ने भी तय कर लिया है कि बार-बार की रामायण को समाप्त ही कर दिया जाए। इस कारण उनके समर्थक मांग कर रहे हैं कि पार्टी स्तर पर घोषणा की जाए कि आगामी चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में लड़ा जाएगा और भाजपा सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री भी वसुंधरा ही होंगी।
सवाल ये उठता है कि आखिर संघ के एक बड़े वर्ग को वसुंधरा से तकलीफ क्या है? जैसा कि संघ का मिजाज है, वह खुले में कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता, मगर भीतर ही भीतर पर इस बात पर निरंतर मंथन चलता रहा है कि वसुंधरा को किस प्रकार कमजोर किया जाए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि राजस्थान में भाजपा के पास वसुंधरा राजे के मुकाबले का कोई दूसरा आकर्षक व्यक्तित्व नहीं है। अधिसंख्य विधायक व कार्यकर्ता भी उनसे प्रभावित हैं। उनमें जैसी चुम्बकीय शक्ति और ऊर्जा है, वैसी किसी और में नहीं दिखाई देती। उनके जितना साधन संपन्न भी कोई नहीं है। उनकी संपन्नता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब भाजपा हाईकमान उनके विधानसभा में विपक्ष के नेता पद पर नहीं रहने पर अड़ गया था, तब उन्होंने एकबारगी तो नई पार्टी के गठन पर विचार ही शुरू कर दिया था। राजनीति के जानकार समझ सकते हैं कि नई पार्टी का गठन कितना धन साध्य और श्रम साध्य है। वस्तुत: साधन संपन्नता और शाही ठाठ की दृष्टि से वसुंधरा के लिए मुख्यमंत्री का पद कुछ खास नहीं है। उन्हें रुचि है तो सिर्फ पद की गरिमा में, उसके साथ जुड़े सत्ता सुख में। वे उस विजया राजे सिंधिया की बेटी हैं, जो तब पार्टी की सबसे बड़ी फाइनेंसर हुआ करती थीं, जब पार्टी अपने शैशवकाल में थी। मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी वसुंधरा ने पार्टी को बेहिसाब आर्थिक मदद की। जाहिर तौर पर ऐसे में जब उन पर ही अंगुली उठाई गई थीं तो बिफर गईं, जैसे कि हाल ही बिफरीं हैं। वे अपने और अपने परिवार के योगदान को बाकायदा गिना चुकी हैं। बहरहाल, कुल मिला कर उनके मुकाबले का कोई नेता भाजपा में नहीं है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि भाजपा में एक मात्र वे ही जिताऊ हैं, जो पार्टी को फिर से सत्ता में लाने का माद्दा रखती हैं। पिछली बार भी हारीं तो उसकी वजुआत में संघ की नाराजगी भी शामिल है।
यह सही है कि भाजपा केडर बेस पार्टी है और उसका अपना नेटवर्क है। कोई भी व्यक्ति पार्टी से बड़ा नहीं माना जाता। कोई भी नेता पार्टी से अलग हट कर कुछ भी नहीं है, मगर वसुंधरा के साथ ऐसा नहीं है। उनका अपना व्यक्तित्व और कद है। और यही वजह है कि सिर्फ उनके चेहरे को आगे रख कर ही पार्टी चुनावी वैतरणी पार सकती है। ऐसा नहीं है कि संघ इस बात को नहीं समझता। वह भलीभांति जानता है। मगर उसे उनके तौर तरीकों पर ऐतराज है। वसुंधरा की जो कार्य शैली है, वह संघ के तौर-तरीकों से मेल नहीं खाती।
संघ का मानना है कि राजस्थान में आज जो पार्टी की संस्कृति है, वह वसुंधरा की ही देन है। वसुंधरा की कार्यशैली के कारण भाजपा की पार्टी विथ द डिफ्रंस की छवि समाप्त हो गई। इससे पहले पार्टी साफ-सुथरी हुआ करती थी। अब पार्टी में पहले जैसे अनुशासित और समर्पित कार्यकर्ताओं का अभाव है। निचले स्तर पर भले ही कार्यकर्ता आज भी समर्पित हैं, मगर मध्यम स्तर की नेतागिरी में कांग्रेसियों जैसे अवगुण आ गए हैं। आम जनता को भी कांग्रेस व भाजपा में कोई खास अंतर नहीं दिखाई देता। इसके अतिरिक्त संघ की एक पीड़ा ये भी है कि पिछले मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान वसुंधरा ने पार्टी की वर्षों से सेवा करने वाले नेताओं को हाशिये पर खड़ा कर दिया, उन्हें खंडहर तक की संज्ञा देने लगीं, जिससे कर्मठ कार्यकर्ता का मनोबल टूट गया। प्रदेश भाजपा अध्यक्षों को जिस प्रकार उन्होंने दबा कर रखा, उसे भी संघ नहीं भूल सकता। वे तो हर दम पावर में बनी रहीं, मगर एक के बाद एक तीन प्रदेश अध्यक्ष ललित किशोर चतुर्वेदी, डा. महेश शर्मा व ओमप्रकाश माथुर शहीद हो गए। वसुंधरा पर नकेल कसने के लिए अरुण चतुर्वेदी को अध्यक्ष बनाया गया, मगर वे भी वसुंधरा के आभा मंडल के आगे फीके ही साबित हुए हैं। हालांकि संघ भी अब समझने लगा है कि केवल चरित्र के दम पर ही पार्टी को जिंदा नहीं रखा जा सकता। उसके लिए पैसे की जरूरत भी होती है। राजनीति अब बहुत खर्चीला काम है। और पैसे के लिए जाहिर तौर पर वह सब कुछ करना होता है, जिससे अलग रह कर पार्टी अपने आप को पार्टी विथ द डिफ्रेंस कहाती रही है। वसुंधरा की कूटनीति का संघ भी कायल है, मगर सोच ये है कि उनकी कूटनीति की वजह से पार्टी को जितना फायदा होता है, उससे कहीं अधिक पार्टी की छवि को धक्का लगता है। चलो उसे भी स्वीकार कर लिया जाए, मगर उसे ज्यादा तकलीफ इस बात से है कि वसुंधरा उसके सामने उतनी नतमस्तक नहीं होतीं, जितना अब तक भाजपा नेता होते रहे हैं।
यह सर्वविदित है कि संघ के नेता लोकप्रियता और सत्ता सुख के चक्कर में नहीं पड़ते, सादा जीवन उच्च विचार में जीते हैं, मगर चाबी तो अपने हाथ में ही रखना चाहते हैं। और उसकी एक मात्र वजह ये है कि संघ भाजपा का मातृ संगठन है। भाजपा की अंदरूनी ताकत तो संघ ही है। वह अपनी अहमियत किसी भी सूरत में खत्म नहीं होने देना चाहता। वह चाहता है कि पार्टी संगठन पर संघ की ही पकड़ रहनी चाहिए।
वैसे संघ की वास्तविक मंशा तो वसुंधरा को निपटाने की ही है, या उनसे पार्टी को मुक्त कराने की है, यह बात दीगर है कि अब ऐसा करना संभव नहीं। ऐसे में संघ की कोशिश यही रहेगी कि आगामी विधानसभा के मद्देनजर ऐसा रास्ता निकाला जाए, जिससे वसुंधरा को भले ही कुछ फ्रीहैंड दिया जाए, मगर संघ की भी अहमियत बनी रहे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

बेकाबू सोशल मीडिया चाहता है भड़ास निकालने की स्वच्छंदता


जानकारी है कि केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया पर सख्ती करने की तैयारी कर ली है। केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने संकेत दिए हैं कि इस पर विचार-विमर्श चल रहा है और इसके तकनीकी पहलुओं पर गंभीरता से फोकस किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि देश में ज्यादातर सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल दूसरे की साख पर हमला करने के लिए हो रहा है। उनका कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कुछ लोग गलत फायदा उठा रहे हैं। सोशल मीडिया का इस्तेमाल प्रोपेगेंडा करने के लिए अधिक हो रहा है।
उनकी बात में कुछ तो सच्चाई है। बेशक अभिव्यक्ति की आजादी पर किसी भी सूरत में अंकुश नहीं होना चाहिए, मगर सोशल मीडिया को इतना तो ख्याल रखना ही होगा कि स्वतंत्रता की सीमाएं लांघते हुए उसका उपयोग स्वच्छंदता व भड़ास के लिए न होने लगे।
ज्ञातव्य है कि हाल ही में पूर्व कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की कथित सैक्स सीडी सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक कर दी गई। सीडी पर विवाद इतना अधिक गहरा गया कि अभिषेक मनु सिंघवी को अपने सभी राजनीतिक पदों से इस्तीफा तक देना पड़ा। हालांकि सिंघवी के इस प्रकार बेनकाब होने को बड़ी उपलब्धि बता कर कई लोग सोशल मीडिया को स्वतंत्र रखने की पैरवी कर रहे हैं, मगर यदि यह स्वच्छंदता की पराकाष्ठा तक पहुंचने लगे तो यह देश के लिए घातक हो सकता है। जिस सीडी के प्रसारण पर कोर्ट ने रोक लगा दी, उसे पिं्रट मीडिया व इलैक्ट्रोनिक मीडिया प्रकाशित-प्रसारित नहीं कर पाया। दूसरी ओर सोशल मीडिया ने उसे जारी कर के यह संदेश दिया कि सोशल मीडिया की वजह से ही सीडी प्रकाश में आई। यह सच भी है, मगर क्या ऐसा करके कोर्ट के आदेश को धत्ता नहीं बता दिया गया है? सवाल ये है कि जब कोर्ट ने सीडी पर पाबंदी लगा दी थी तो उसे कैसे दिखाया जाता रहा? क्या सोशल मीडिया देश की न्यायपालिका से ऊपर है? एक ब्लोगर ने तो बाकायदा पिं्रट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया को कायर बताते हुए कोर्ट को ओवरटेक करने पर सोशल मीडिया को उसकी बहादुरी के लिए शाबाशी दी। सोशल मीडिया ने नैतिकता, मर्यादा और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए उस सीडी को न सिर्फ दिखाया है बल्कि उस पर टीका टिप्पणियां भी कीं। यदि सोशल मीडिया इस प्रकार कोर्ट को अंगूठा दिखा कर मदमस्त हो कर इठलाता है तो यह कभी हमारे देश की अखंडता व संप्रभुता के लिए घातक भी हो सकता है।
सवाल ये उठता है अभिव्यक्ति की आजादी की पैरवी करते हुए एक सीडी को उजागर करने की सफलता की आड़ में लोगों को बेहूदा टिप्पणियां करने अथवा भड़ास निकालने छूट कैसे दी जा सकती है?
लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की दुहाई देते हुए जहां कई लोग इसे संविधान की मूल भावना के विपरीत और तानाशाही की संज्ञा दे रहे हैं, वहीं कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने चाहे जिस का चरित्र हनन करने और अश्लीलता की हदें पार किए जाने पर नियंत्रण पर जोर दे रहे हैं।
यह सर्वविदित ही है कि इन दिनों हमारे देश में इंटरनेट व सोशल नेटवर्किंग साइट्स का चलन बढ़ रहा है। आम तौर पर प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर जो सामग्री प्रतिबंधित है अथवा शिष्टाचार के नाते नहीं दिखाई जाती, वह इन साइट्स पर धड़ल्ले से उजागर हो रही है। किसी भी प्रकार का नियंत्रण न होने के कारण जायज-नाजायज आईडी के जरिए जिसके मन जो कुछ आता है, वह इन साइट्स पर जारी कर अपनी कुंठा शांत कर रहा है। अश्लील चित्र और वीडियो तो चलन में हैं ही, धार्मिक उन्माद फैलाने वाली सामग्री भी पसरती जा रही है। सोशल मीडिया पर आने वाले कमेंट देखिए, आप हैरान रह जायेंगे कि उनसे किसी का खून भी खौल सकता है। असामाजिक तत्त्व किसी भी शहर में धार्मिक उन्माद फैला कर दंगा करवा सकते हैं। पिछले दिनों राजस्थान के भीलवाड़ा में तो ऐसी ही टिप्पणी के कारण दंगे जैसी उत्पन्न हो गई थी। यानि कि साफ है कि हम अभिव्यक्ति की आजादी की पैरवी करते वक्त उसके दुरुपयोग की ओर आंखें मूंद लेना चाहते हैं। ऐसा करके हम असामाजिक तत्त्वों को गुंडागर्दी करने का लाइसेंस देना चाहते हैं।
राजनीति और नेताओं के प्रति उपजती नफरत के चलते सोनिया गांधी, राजीव गांधी, मनमोहन सिंह, कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह सहित अनेक नेताओं के बारे में शिष्टाचार की सारी सीमाएं पार करने वाली टिप्पणियां और चित्र भी धड़ल्ले से डाले जा रहे हैं। प्रतिस्पद्र्धात्मक छींटाकशी का शौक इस कदर बढ़ गया है कि कुछ लोग अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के बारे में भी टिप्पणियां करने से नहीं चूक रहे। ऐसे में पिछले दिनों केन्द्रीय दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने जैसे ही यह कहा कि उनका मंत्रालय इंटरनेट में लोगों की छवि खराब करने वाली सामग्री पर रोक लगाने की व्यवस्था विकसित कर रहा है और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स से आपत्तिजनक सामग्री को हटाने के लिए एक नियामक व्यवस्था बना रहा है तो बवाल हो गया। सिब्बल के इस कदम की देशभर में आलोचना शुरू हो गई। बुद्धिजीवी इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश के रूप में परिभाषित करने लगे, वहीं मौके का फायदा उठा कर विपक्ष ने इसे आपातकाल का आगाज बताना शुरू कर दिया।
जहां तक अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल है, मोटे तौर पर यह सही है कि ऐसे नियंत्रण से लोकतंत्र प्रभावित होगा। इसकी आड़ में सरकार अपने खिलाफ चला जा रहे अभियान को कुचलने की कोशिश कर सकती है, जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक होगा। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के मायने यह हैं कि फेसबुक, ट्विटर, गूगल, याहू और यू-ट्यूब जैसी वेबसाइट्स पर लोगों की धार्मिक भावनाओं, विचारों और व्यक्तिगत भावना से खेलने तथा अश्लील तस्वीरें पोस्ट करने की छूट दे दी जाए? व्यक्ति विशेष के प्रति अमर्यादित टिप्पणियां और अश्लील फोटो जारी करने दिए जाएं? किसी के खिलाफ भड़ास निकालने की खुली आजादी दे दी जाए? सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इन दिनों जो कुछ हो रहा है, क्या उसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर स्वीकार कर लिया जाये?
चूंकि ऐसी स्वच्छंदता पर काबू पाने का काम सरकार के ही जिम्मे है, इस कारण जैसे ही नियंत्रण की बात आई, उसने राजनीतिक लबादा ओढ लिया। राजनीतिक दृष्टिकोण से हट कर भी बात करें तो यह सवाल तो उठता ही है कि क्या हमारा सामाजिक परिवेश और संस्कृति ऐसी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आ रही अपसंस्कृति को स्वीकार करने को राजी है? माना कि इंटरनेट के जरिए सोशल नेटवर्किंग के फैलते जाल में दुनिया सिमटती जा रही है और इसके अनेक फायदे भी हैं, मगर यह भी कम सच नहीं है कि इसका नशा बच्चे, बूढ़े और खासकर युवाओं के ऊपर इस कदर चढ़ चुका है कि वह मर्यादाओं की सीमाएं लांघने लगा है। अश्लीलता व अपराध का बढ़ता मायाजाल अपसंस्कृति को खुलेआम बढ़ावा दे रहा है। जवान तो क्या, बूढ़े भी पोर्न मसाले के दीवाने होने लगे हैं। इतना ही नहीं फर्जी आर्थिक आकर्षण के जरिए धोखाधड़ी का गोरखधंधा भी खूब फल-फूल रहा है। साइबर क्राइम होने की खबरें हम आए दिन देख-सुन रहे हैं। जिन देशों के लोग इंटरनेट का उपयोग अरसे से कर रहे हैं, वे तो अलबत्ता सावधान हैं, मगर हम भारतीय मानसिक रूप से इतने सशक्त नहीं हैं। ऐसे में हमें सतर्क रहना होगा। सोशल नेटवर्किंग की  सकारात्मकता के बीच ज्यादा प्रतिशत में बढ़ रही नकारात्मकता से कैसे निपटा जाए, इस पर गौर करना होगा। हमें इस बात को समझना होगा कि जिम्मेदारी और प्रतिबंधों के बिना मिला कोई भी अधिकार निरंकुशता की ओर ले कर जाता है और निरंकुशता अराजकता की ओर।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

शनिवार, मई 05, 2012

किरण और कटारिया की जंग काफी पुरानी है

लोकसभा चुनाव में किरण को निपटाने के लिए आया था एक परचा
हाल ही सुर्खियों में आई भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव व राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी व पूर्व गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया की जंग काफी पुरानी है। जब किरण माहेश्वरी अजमेर से लोकसभा का चुनाव लडऩे आई थीं, तब एक पर्चा किरण को निपटाने को अजमेर में बंटा था। जिले के गिने-चुने भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को ही बारे में पता था। हालांकि यह परचा दबा दिया गया, लेकिन यह दैनिक न्याय सबके लिए के हाथ आ गया था। चर्चा ये थी कि इस परचे के पीछे पूर्व गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया का हाथ था। तब भी यही बताया गया था कि उदयपुर में भाजपा कटारिया व किरण की लॉबियों में बंटी हुई है। दोनों नेताओं में छत्तीस का आंकड़ा है। ऐसे में किरण के चुनाव लडऩे को अजमेर आने पर कटारिया अथवा उनकी लॉबी के कोई नेता स्थानीय भाजपा नेताओं को यह बताना चाहते थे कि किरण की असलियत क्या है।
आइये, देखते हैं कि उस परचे में लिखा क्या था-छह माह पहले ही किरण माहेश्वरी ने राजसमंद विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के सामने पांच साल तक नेक सेवा करने की वचनबद्धता के साथ सौगंध खाकर व करोड़ों रुपए खर्च कर चुनाव जीता था, लेकिन छह माह बाद ही उन्हें धोखा दे दिया।
इसमें अजमेर के भाजपा नेताओं को ललकारते हुए लिखा गया है कि क्या अजमेर में लोकसभा सदस्य बनने की क्षमता किसी भी भाजपा कार्यकर्ता में नहीं है, लेकिन केन्द्र की नजर तो आप पर है, यानि किरण पर है, सब कार्यकर्ताओं का हक मार दिया। अजमेर का मतदाता शिक्षित है। वह पैसे से नहीं बिकेगा। पैसा हजम-वोट नहीं। चलो बेईमानी से एकत्र बीस-पच्चीस करोड़ जनता तक तो पहुंचेंगे।
परचे में लिखा है कि विधायक बनने के बाद राजसमंद से किरण ने जिला परिषद के प्रमुख के उपचुनाव में जीवनभर जनसंघ व भाजपा के लिए खपने वाले नंदलाल सिंघली को अनदेखा करके आपने विश्वस्त वोटों को कांग्रेस के उम्मीदवार को दिला कर कांगे्रसी जिला प्रमुख बना दिया और भाजपा के साथ गद्दारी की। इसमें लिखा है कि जब किरण माहेश्वरी तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष गुलाबचंद कटारिया की मेहरबानी से भाजपा के महिला मोर्चे की अध्यक्ष बनीं तो जयपुर के स्विन एंड स्माइल रेस्टोरेंट की मालकिन मिन्नी सिद्धू उनकी खास महामंत्री थी। किरण का अधिकांश समय रेस्टोरेंट पर ही बीतता था। यहां महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने की पाठशाला चलाई गई थी। इस पाठशाला के प्रमोटर एस.एन. गुप्ता थे। परचे में लिखा है कि तरणताल में जल क्रीड़ा की जाती थी। मिन्नी सिद्धू पर दलाली के आरोप में मुकदमा चल रहा है। उसने उस पाठशाला में आने वाले स्त्री-पुरुषों के नाम उजागर किए हैं, यहां लिखेंगे तो भाजपा में भूचाल आ जाएगा। उदयपुर में कार्यकर्ता जानते हैं कि किरण नई-नई सखियां बना कर रखती हैं। इसमें लिखा था कि पिछले चार साल में किरण ने फर्जी दस्तखतों से भाई साहब कटारिया जी की छवि बिगाडऩे के लिए मनगढ़ंत आक्षेप वाले पत्र प्रदेश व देश के नेताओं को भेजने का रिकार्ड बनाया है। उसी शैली में यह पत्र आपको भिजवाया जा रहा है, ताकि आपकी बॉडी लैंग्वेज के पीछे छिपे निहायत खतरनाक षड्यंत्रकारी फेस की वास्तविकता सब जान सकें।
इसमें लिखा है कि किरण को राजनीति में जमीन मुहैया कराने की भूल तो भाई साहब ने ही किया था। उन्होंने जनसंघ काल से ही सक्रिय रही सारी महिलाओं की वरिष्ठता दरकिनार कर आपकी खूबसूरती की योग्यता को पैमाना बना कर नगर परिषद का सभापति बनवाया था। सभापति बनने से पहले आपकी माली हालत खस्ता थी और सभापति बनते ही माली हालत ठीक करने के एजेंडे पर चलना चालू कर दिया। सभापति बनने से पहले आपके पति एक उद्योगपति के यहां नौकरी करते थे और आर्थिक अभावों में गबन कर बैठे, उसका पुलिस केस भी बना। यह तो अच्छा हुआ कि आप सभापति बन गईं और अपने प्रभाव से उस केस का रफा-दफा करवा दिया, नहीं जेल जाने की नौबत आ जाती। उसके बाद भी आपके पति ने सीए के रूप में व्यावसायिक बेईमानी की, उसका भी केस बना ओर हिरासत में जाना पड़ा।
आपके सभापति काल में भ्रष्टाचारों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। आपने निर्माण कार्यों हेतु परंपरागत रूप से सभापति को मिलने वाले डेढ़ प्रतिशत को बढ़ा कर दो से तीन प्रतिशत कर दिया। परिषद में खड़े दर्जनों जंगी पेड़ों कटवा कर वन कानून का उल्लंघन किया। देबारी द्वार के निर्माण हेतु आबंटित कुलियां राशि आठ लाख छासठ हजार रुपयों को नींव भरने में खर्च करवा कर बहुत भारी कमीशन खाया। इस मामले की जांच हुई, लेकिन आपने दबवा दिया। हिरण मगरी स्थिति विद्या निकेतन परिसर में गड्ढों को भरवाने के लिए मलबा डलवाया। उसमें ट्रक के 175 ट्रिप्स अध्यापक गिने, आपने रिश्वत खा कर 230 ट्रिप्स का चुकारा करवा दिया। आपने अपनी मां के नाम पर बंपर खरीद कर परिषद में ही ठेके पर लगा दिए। जांच में गड़बडिय़ां सामने आर्इं। स्वायत्त शासन विभाग के एक सेवानिवृत्त भ्रष्ट अधिकारी गुलाबसिंह को विभाग की स्वीकृति के बिना ही विशेष अधिकारी बना दिया। उस पर कई आरोप लगे तो उसको भगा दिया। आपके भ्रष्टाचार के विरुद्ध पार्षद अजय कुशवाहा आमरण अनशन पर बैठे। इस फाइलें जयपुर मंगवा ली गर्इं। आप सौभाग्यशाली रहीं कि इसके बाद कांग्रेस शासन में स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल बने, जो स्वभाव से महिलाओं के प्रति बड़े उदार हैं। आपकी बॉडी लैंग्वेज से सभी फाइलों को निपटारा हो गया।
आपने विदेश यात्रा के लाखों रुपए नगर परिषद से उठाए, जबकि सारी यात्रा का खर्च अमरीका में आमंत्रित करने वाले मेजबानों ने उठाया था। जांच में मेजबानों का सहयोग न मिलने पर जांच बंद कर दी गई। दी महिला समृद्धि अरबन को-ऑपरेटिव बैंक की आप अध्यक्ष थीं। उसमें गड़बडिय़ों की जांच अपने ही पति को ऑडिट की जिम्मेदारी दे दी। आपके पांच साल के सभापति कार्यकाल में दौरान किए कारनामों से उदयपुर के अखबार भरे रहे। इस पर आपको पद से हटाने पर विचार भी हुआ। शहर भाजपा अध्यक्ष मदनलाल मूंदड़ा की ओर बुलाई गई बैठक में बाईस पार्षदों ने आपकी कड़ी आलोचना की। केवल पांच पार्षद ही आपके पक्ष में रहे। इस पर बड़े नेताओं ने आपको फटकार लगाई। आप फूट-फूट कर रो पड़ीं। आपके खिलाफ पच्चीस पार्षदों ने प्रदेश अध्यक्ष रघुवीर सिंह कौशल को ज्ञापन दिया था। विधायक शिवकिशोर सनाढ्य ने आपका बचाव किया। उद्योगपतियों ने भी आपके खिलाफ उप मुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा को ज्ञापन दिया था।
आपका असली रूप तो पिछले चुनाव में ही सामने आ गया था। विधानसभा टिकट वितरण के दौर में आपने स्व. प्रमोद महाजन के जरिए सभी तौर तरीकों से कोशिश की कि भाई साहब बड़ी सादड़ी से चुनाव लड़ें। आप उदयपुर से चुनाव लडऩा चाहती थीं। आपने वसुंधरा राजे की परिवर्तन यात्रा के दौरान समय व स्थान के अनुरूप वस्त्र भी तैयार करवाए, ताकि बाद में आपको मंत्री पद मिल जाए, लेकिन भई साहब की संघ में मजबूत पकड़ के कारण आपकी पार नहीं पड़ी।
इस परचे से ही स्पष्ट है कि यह किरण के विरोधी और कटारिया के चहेते ने लिखा है। कानाफूसी है कि भिजवाया कटारिया जी ने ही था। कटारिया जी के ही किसी चेले ने यह करतूत की थी, क्योंकि इसमें साफ तौर पर कटारिया जी की पैरवी की गई है और किरण को निपटाया गया है।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

शुक्रवार, मई 04, 2012

क्या ये किरण का कटारिया पर पलटवार नहीं है?

मेवाड़ अंचल में भाजपा के दो दिग्गजों पूर्व गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया और पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव व राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी के बीच जंग तेज हो गई है। एक ओर जहां कटारिया ने दैनिक भास्कर को दिए साक्षात्कार में किरण पर खुल कर हमला बोला तो दूसरे ही दिन किरण ने भी अपनी एक संस्था की गोष्ठी में कटारिया का नाम लिए बिना वह सब कह दिया, जो कि उन्हें कहना था। हालांकि किरण यह कह सकती हैं कि उन्होंने कटारिया के बारे में कुछ नहीं कहा या कटारिया का नाम नहीं लिया, मगर उन्होंने जो कुछ कहा है, उससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह सब कुछ कटारिया के ही बारे में है। ऐसा इस कारण कि इन दिनों वहीं प्रसंग चर्चित है।
आइये देखते हैं, किरण ने क्या कहा है मृगेन्द्र भारती द्वारा राजनीतिक दलों में अन्तर्कलह का प्रभाव विषयक गोष्ठी में-
अनुशासन एवं मर्यादा की लक्ष्मण रेखा के सम्मान से ही संगठन सशक्त बनता है। जब किसी संगठन के अग्रणी व्यक्ति निजी महत्वाकांक्षा को सर्वोपरि मानें एवं संगठन के उद्देश्यों को गौण, उस संगठन का विनाश अवश्यंभावी है। ऐसे व्यक्तियों को मुक्त करके ही संगठन को बचाया जा सकता है। राजनीतिक दलों में अन्तर्कलह से वे अपने मूल लक्ष्यों से भटक जाते हैं। अन्तर्कलह का मुख्य कारण निजी महत्वकांक्षा को संगठन हितों से ऊपर रखना है। महत्वाकांक्षा के विवेकहीन होने पर क्रोध एवं अंहकार उत्पन्न होता है। इससे बुद्धि का विनाश हो जाता है। व्यक्ति हताशा एवं कुंठा से ग्रस्त हो जाता है। हताश एवं कुंठित व्यक्ति प्रमादी के समान व्यवहार करते हैं। वे सहयोगियों को तुच्छ एवं स्वयं को ही संगठन की मूल धूरि मानने की भयंकर भूल करते हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि कटारिया ने पार्टी से अनुमति लिए बिना ही रथ यात्रा निकालने की फैसला किया, जो कि निजी महत्वाकांक्षा की श्रेणी में आता है। जहां तक सहयोगियों को तुच्छ मानने की बात है, वह भी कटारिया के इस बयान से मेल खाती है कि जिन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, वे ही आंख दिखा रहे हैं। स्वयं को संगठन की मूल धूरि मानने की बात का संबंध सीधे तौर पर प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी के उस बयान से मेल खाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यात्रा को लेकर कुछ अंतर्विरोध हो सकते हैं, लेकिन गुलाब चंद कटारिया संगठन की धुरी हैं। कुल मिला कर इसमें तनिक भी संदेह नहीं रह जाता कि किरण का बिना नाम लिए की गई तकरीन कटारिया के संदर्भ में ही है।
ज्ञातव्य है कि कटारिया ने दैनिक भास्कर में किरण के बारे में कहा था कि जिन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, वे ही आंख दिखा रहे हैं। इसका खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि 1989 में मैंने लोकसभा का चुनाव लड़ा तो मैं कांकरोली गया था। वे तब कांकरोली की मीटिंग में महिलाओं के बीच बैठी एक श्रोता मात्र थीं। 1993 का पालिका चुनाव हुआ तो मैंने उन्हें वार्ड से चुनाव लडऩे को कहा। वे जीतीं। उन्हें चेयरमैन मैंने बनाया। मैं जब प्रदेश अध्यक्ष बना 1998-99 में तो उन्हें मैंने महिला मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। जैसे ही वे लोकसभा में गईं। केंद्रीय नेतृत्व के नजदीक आ गईं। मैं तो अपनी जगह काम कर रहा था। वे ऑल इंडिया सेक्रेटरी बन गईं। महिला मोर्चा की अध्यक्ष बन गईं। अब वे महामंत्री हैं। उन्हें लगने लगा कि वे बड़ी हो गईं। वे जिन्होंने उन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, छोटे हो गए हैं।
यह पूछे जाने पर कि 27 अप्रैल को जो राजसमंद में हुआ वह क्या था, वे बोले कि वह सब प्रायोजित था। जैसे ही किरण बोलने लगीं जिंदाबाद-जिंदाबाद के नारे लगने लगे। जिन लोगों से कहा गया कि जो आमंत्रित नहीं हैं, वे चले जाएं तो बावेला शुरू हो गया। हा-हू करके कहने लगे। यात्रा वापस लो। किरण भी उनके बीच जाकर जद्दोजहद करने लगीं। मीडिया भी उन्हीं की गाडियों में बैठ कर आया था। सुबह सवा नौ बजे तो इसकी विज्ञप्ति जारी हो गई थी कि वे यात्रा का विरोध करने के लिए जाने वाले हैं। वे 20-22 लोग थे, लेकिन वे मीडिया को लेकर आए थे, इसलिए मीडिया में उन्हीं के लोगों की बात ज्यादा छपी थी। वो सब प्रायोजित कार्यक्रम था।
इस पर किरण ने मीडिया ने जो बयान दिया, उसे देखिए-
ये रबिश थिंग है। हवा में बिना प्रूफ किसी के बारे में कुछ भी कैसे कहा जा सकता है। इन चीजों के कोई मायने हैं क्या! अगर किसी को कोई पसंद नहीं है, तो ऐसे एलीगेशन लगाना ठीक नहीं हैं। इस परिवार में बहुत सी स्टेजेज हैं। हर स्टेज पर आप शिकायत कर सकते हैं।
इस बयान से स्पष्ट है कि किरण ने सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने से परहेज किया, मगर दूसरे दिन ही अपनी संस्था की संगोष्ठी में जो बोला वह सब पूरी तरह से कटारिया पर ही कहा गया प्रतीत होता है। चाहे इसे किरण स्वीकार करें या नहीं।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

सोमवार, अप्रैल 30, 2012

किरण मोहेश्वरी जीतीं, मगर कटारिया भी नहीं हारे

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय महामंत्री व राजसमंद की विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी के आंसुओं के आगे आखिर भाजपा का नेतृत्व पिघल गया। पार्टी वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया की प्रस्तावित लोक जागरण अभियान यात्रा को स्थगित कर दिया गया है। साफ तौर पर इस मामले में किरण माहेश्वरी की जीत हो गई है, मगर इसे कटारिया की हार भी करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि अब फर्क सिर्फ इतना है कि ऐसी यात्राओं को पार्टी मंच पर तय किया जाएगा। जो कुछ भी हो, मगर इस विवाद के कारण पार्टी में बढ़े मनमुटाव को ठीक से दुरुस्त नहीं किया गया तो यह आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी पड़ सकता है। ज्ञातव्य है कि कुछ इसी प्रकार मनमुटाव पिछली बार भी वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री बनने में बाधक हो गया था।
असल में सारा झगड़ा संघ लोबी और वसुंधरा खेमे का है। हालांकि पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी व पूर्व प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी साफ घोषणा कर चुके हैं कि अगला विधानसभा चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, मगर संघ लोबी को यह मंजूर नहीं है। यही वजह रही कि पहले संघ लाबी से जुड़े पूर्व मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने यह कह कर कि पार्टी ने अब तक तय नहीं किया है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, विवाद को उजागर किया तो एक और दिग्गज पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी ने भी उस पर मुहर लगाते हुए कह दिया कि आडवाणी ने राजस्थान दौरे के दौरान ऐसा कहा ही नहीं कि अगला चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। उन्होंने भी यही कहा कि चुनाव में विजयी भाजपा विधायक ही तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा।
पूर्व गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया की ओर से पार्टी से अनुमति लिए बिना ही 2 मई से जन जागरण यात्रा निकालने का ऐलान इसी विवाद की एक कड़ी है। यात्रा की घोषणा के बाद से ही पार्टी में संघनिष्ठ और गैर संघ भाजपा नेताओं के बीच तनाव की स्थिति बन गई। खासकर मेवाड़ में पार्टी दो खेमों में बंटी नजर आई। जाहिर सी बात है कि निजी स्तर पर निर्णय लेकर पार्टी के प्रचार का यह कदम अनुशासन के विपरीत पड़ता है, मगर चूंकि कटारिया को संघ लाबी का समर्थन हासिल है, इस कारण पार्टी हाईकमान के सामने बड़ी दिक्कत हो गई। दिक्कत तब और बढ़ गई जब कटारिया की यात्रा के सिलसिले में राजसंमद जिला भाजपा की बैठक में जम कर हंगामा हुआ। कटारिया की धुर विरोधी राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी और भीम विधायक हरिसिंह ने कड़ा विरोध किया और यात्रा को काले झंडे दिखाने तक की धमकी दी गई। हालात धक्का मुक्की तक आ गए तो किरण फूट-फूट कर रो पड़ी। किसी बात के विरोध तक तो ठीक है, मगर एक राष्ट्रीय महासचिव का इस प्रकार रोना कोई कम बात नहीं है। सीधी सी बात है कि जिस इलाके की वे विधायक हैं, वहीं की स्थानीय इकाई यदि उनके विरोधी कटारिया का साथ देती है, तो इससे शर्मनाक बात कोई हो ही नहीं सकती। मौके पर खींचतान कितनी थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश भाजपा महासचिव सतीश पूनिया तक मूकदर्शक से किंकर्तव्यविमूढ़ बने रहे गए। संघ लाबी के ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी का रुख भी कटारिया की ओर झुकाव लिए रहा और उन्होंने कहा कि कुछ अंतर्विरोध हो सकते हैं, लेकिन गुलाब चंद कटारिया संगठन की धुरी हैं। ऐसे में किरण जान गईं कि अब तो दिल्ली दरबार का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। उन्होंने जा कर पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को शिकायत कर दी। कदाचित वहां भी उन्होंने रो कर अपना पक्ष रखा हो। यहां कहने की जरूरत नहीं है कि मेवाड़ अंचल में भले ही वे कटारिया की चुनौती से परेशान हैं, मगर दिल्ली में तो उनकी खासी चलती है। पार्टी अनुशासन के लिहाज से भी किरण की शिकायत वाजिब थी, इस कारण गडकरी को मजबूरी में कटारिया को दिल्ली तलब करना पड़ा। संघ कटारिया का पूरा साथ दे रहा था। गडकरी तो बड़ी मुश्किल में पड़ गए। हालांकि उन्होंने अन्य नेताओं की सलाह पर पार्टी हित में कटारिया की यात्रा को स्थगित करने का निर्णय किया, मगर संघ के दबाव की वजह से यात्रा को पूरी तरह से निरस्त करने का निर्णय वे भी नहीं कर पाए। यात्रा की रूपरेखा पार्टी मंच पर तय करने के लिए उसे जयपुर के कोर ग्रुप पर छोडऩा पड़ा।
माना कि किरण माहेश्वरी कटारिया की यात्रा को स्थगित करवाने में कामयाब हो गईं हैं, मगर दूसरी ओर यह बात भी कम नहीं है कि कटारिया भी अपनी यात्रा की चर्चा राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने करवाने में सफल रहे हैं। यात्रा का स्वरूप भले ही अब बदल दिया जाए और उसमें सभी धड़ों को भी साथ लेने पर सहमति बने, मगर इससे यह पूरी तरह से साफ हो गया है आगामी विधानसभा चुनाव में संघ वसुंधरा को फ्री हैंड नहीं लेने देगा और ऐसे में वसुंधरा को संघ को साथ लेकर चलना होगा। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कहां तो वसुंधरा अपने दम पर पूरे प्रदेश की यात्रा की योजना बना रही थीं और खुद को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने वाली थीं और कहां अब पार्टी मंच पर तय हो कर यात्राएं निकाली जाएंगी। ऐसा लगता है कि सब कुछ संघ की सोची समझी रणनीति के तहत हुआ है।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

शुक्रवार, अप्रैल 27, 2012

वसु मैम, सवाल पत्रकार नहीं, आपके नेता ही उठा रहे हैं

सवाल भी वाजिब, जवाब भी मौजूं। हाल ही पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के अजमेर दौरे के दौरान एक जागरूक पत्रकार ने यह सवाल करने की हिमाकत कर डाली कि भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ेगी? इस पर श्रीमती राजे जवाब देने के बजाय पलट कर तुनकता सवाल दाग दिया कि आप मेरे से पूछ रहे हैं, मैं बताऊंगी कि किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा? न पत्रकार का सवाल गलत था और न ही वसु मैडम का सवालिया जवाब।
दरअसल वसु मैम का जवाब इसलिए सही है कि जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी व पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी घोषणा कर चुके हैं कि अगली मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे होंगी तो यह शंका रहनी ही नहीं चाहिए कि चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इसके बाद भी पत्रकार ने सवाल कर दिया तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह बिलकुल मासूम और अबोध हो। मगर ऐसा है नहीं। खुद भाजपा के नेता ही कह चुके हैं कि पार्टी ने तय नहीं किया है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।
इस सिलसिले में पहले संघ लॉबी से जुड़े पूर्व मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने वसुंधरा के खिलाफ मुंह खोला तो फिर एक और दिग्गज पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी भी खुल कर आगे आए। कटारिया ने तो सिर्फ यही कहा कि पार्टी ने अब तक तय नहीं किया है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, लेकिन चतुर्वेदी तो एक कदम और आगे निकल गए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि आडवाणी ने राजस्थान दौरे के दौरान ऐसा कहा ही नहीं कि अगला चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। उन्होंने भी यही कहा कि चुनाव में विजयी भाजपा विधायक ही तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा। ऐसे में यदि पत्रकार ने सवाल दाग दिया तो गलत क्या किया? यहां उल्लेखनीय है कि पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने अजमेर की सभा में बिलकुल खुले शब्दों में कहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। इसके बाद भी अगर चतुर्वेदी विरोधाभासी बयान देते हैं तो जाहिर है कि वे जानबूझ कर विवाद को जिंदा रखना चाहते हैं। इससे यह भी पूरी तरह से साफ है कि गडकरी व आडवाणी तो वसुंधरा के पक्ष में हैं, मगर राज्य स्तर पर अब भी वसुंधरा के प्रति एक राय नहीं है। विशेष रूप से संघ लॉबी के नेता वसुंधरा को नहीं चाहते, हालांकि उनकी संख्या कम ही है।
पार्टी में नेतृत्व को लेकर आम सहमति न होने का एक और प्रमाण ये है कि गुलाब चंद कटारिया पार्टी से अनुमति लिए बिना ही आगामी 2 मई से मेवाड़ अंचल के 28 विधानसभा क्षेत्रों में लोक जागरण यात्रा निकालने की घोषणा कर चुके हैं। जाहिर सी बात है कि वे आगामी चुनाव में अपने आप को नेता के रूप में पेश करना चाहते हैं। या फिर वसुंधरा के प्रति पूर्ण सहमति न होने को साबित करना चाहते हैं। बताया ये जाता है कि कटारिया को पता लग गया है कि वसुंधरा राजे जल्द ही एक रथ यात्रा निकालने की तैयारी कर रही हैं, इसी को देखते हुए उन्होंने उनसे पहले यात्रा निकालने की घोषणा कर दी। इसको लेकर पार्टी में कितना घमासान है, यह राजसमंद में भाजपा जिला कार्यकारिणी की बैठक में खुल कर सामने आ गया। बैठक में इतनी धक्का-मुक्की हुई कि भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव व राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी रो पड़ीं और प्रदेश महासचिव सतीश पूनिया बेबस नजर आए। किरण व भीम विधायक हरिसिंह रावत ने राजसमंद जिलाध्यक्ष पर जम कर निशाना साधा और कटारिया की यात्रा का विरोध कर उसमें शामिल न होने और काले झंडे दिखाने की चेतावनी दी। ज्ञातव्य है कि किरण व कटारिया के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। मेवाड़ अंचल में उनके बीच वर्चस्व की लड़ाई पहले से चल रही है। किरण के विरोध का मतलब भी साफ है कि वे वसुंधरा खेमे की ओर वहां मौजूद थीं।
लब्बोलुआब, यह साफ हो गया है आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत की आशा में पार्टी में खींचतान शुरू हो गई है। चुनाव नजदीक आते-आते यह और बढ़ जाने वाली है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com