पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की खातिर पूर्व गृह मंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता गुलाब चंद कटारिया की यात्रा के विरोध की आग लगाने वाली पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव व राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी के खुद के घर राजसमन्द और आसपास में ही आग लग गई है।
हालांकि किरण का कटारिया से छत्तीस का आंकड़ा काफी पुराना है और उनके यात्रा निकालने का मेवाड़ अंचल पर किरण के वर्चस्व पर भी स्वाभाविक रूप से असर पडऩे वाला था, मगर यह सीधे तौर पर वसुंधरा को चुनौती थी, न कि किरण को। यह संघर्ष आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर संघ और वसुंधरा के बीच का था। कटारिया ने यात्रा का ऐलान कर एक तरह से वसुंधरा को चुनौती दी थी क्योंकि वे अपने आप को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने के लिए यात्रा निकालने की तैयारी कर रही थीं। इस झगड़े के बीच सीधे तौर पर किरण का तो कोई लेना देना ही नहीं था। ये पता नहीं कि किरण ने वसुंधरा के कहने पर अथवा खुद ही वसुंधरा का वफादार साबित होने के चक्कर में राजसमंद में आयोजित यात्रा तैयारी बैठक में जा कर हंगामा कर दिया। इतना ही नहीं बाद में दिल्ली जा कर शिकायत और कर दी। इसका परिणाम ये हुआ कि राजसमंद से उठी लपटें पहले दिल्ली पहुंची और बाद में जयपुर सहित पूरे राज्य में फैल गईं। हुआ वही जो होना था। झगड़ा संघ और वसुंधरा के बीच हो गया। इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी भी लपेटे में आ गए क्योंकि उन्होंने ही कटारिया की यात्रा का समर्थन कर अनुमति दी थी।
ज्ञातव्य है कि जब वसुंधरा गुस्से में कोर कमेटी की बैठक से बाहर आ कर बिफरीं तो कटारिया ने यात्रा वापस लेने की घोषणा कर दी। मामला यहीं समाप्त हो सकता था, मगर वसुंधरा को लगा कि यही सही मौका है कि एक बार फिर हाईकमान को अपनी ताकत का अहसास कराया जाए, ताकि रोजाना की किलकिलबाजी खत्म हो, सो इस्तीफों का नाटक शुरू करवा दिया। इस प्रकरण में कटारिया ने पार्टी हित में यात्रा वापस लेने का ऐलान कर अपने आप को सच्चा कार्यकर्ता स्थापित कर लिया और उदयपुर जा कर बैठ गए। कदाचित वहीं बैठे-बैठे उन्होंने सोचा कि वसुंधरा का तो जो होगा, हो जाएगा, मगर कम से कम किरण को तो मजा चखा ही दिया जाए, जिसने कि मुखाग्नि दी थी। समझा जाता है कि उन्हीं के इशारे पर राजसमंद की घटना के दस दिन बाद यकायक वहां के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने नए सिरे से किरण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। किरण माहेश्वरी के लिए यह बेहद शर्मनाक है कि एक राष्ट्रीय महासचिव, जिसकी हैसियत ताजा प्रकरण में दिल्ली में वसुंधरा के दूत के रूप में रही, उन्हें उन्हीं के विधानसभा क्षेत्र की जिला भाजपा इकाई ललकार रही है। कहां राष्ट्रीय महासचिव और कहां जिले के पदाधिकारी। जिलाध्यक्ष नन्दलाल सिंघवी, पूर्व जिला प्रमुख हरिओम सिंह राठौड़, नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह, कुम्भलगढ़ के पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह राठौड़, राजसमन्द के पूर्व विधायक बंशीलाल खटीक ने गडकरी को पत्र फैक्स कर राजसमंद बैठक में हंगामा कराने के आरोप में किरण को तुरंत प्रभाव से पद से हटा कर अनुशासनात्मक कार्यवाही की मांग कर दी है। पत्र पर 41 पदाधिकारियों और नेताओं के हस्ताक्षर हैं। इसमें 5 मई को कार्यकर्ताओं को जयपुर ले जाकर प्रदेश के बड़े नेताओं के खिलाफ नारेबाजी एवं गलत बयानबाजी का भी आरोप लगाया गया है। इसमें लिखा है कि किरण ने जयपुर के सारे घटनाक्रम के बाद अपने विधायक एवं महासचिव पद से त्यागपत्र की पेशकश की व बाद में इस सारे घटनाक्रम से केन्द्रीय नेतृत्व के सामने मुकर गईं। पत्र में माहेश्वरी पर राष्ट्रीय महासचिव होने के बावजूद ऐसी अनुशासनहीनता करना, गुटबाजी पैदा करना, समानांतर संगठन चलाना, अपने आप को पार्टी से ऊपर समझना तथा निष्काषित कार्यकर्ताओं को साथ लेकर पार्टी विरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के आरोप भी लगाए गए हैं।
किरण के खिलाफ अपने ही घर में माहौल कितना खराब हो गया है, इसका अंदाजा इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों के कद से ही हो जाता है। पत्र पर जिला महामंत्री महेश पालीवाल, श्रीकृष्ण पालीवाल, भीमसिंह चौहान, जिला उपाध्यक्ष नवल सिंह सुराना, मोहन सिंह चौहान, राजेंद्र लोहार, शंकर लाल सुथार, पूर्व जिलाध्यक्ष प्रताप सिंह मेहता, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य वीरेन्द्र पुरोहित, जिला मंत्री बबर सिंह, जिला कोषाध्यक्ष देवीलाल प्रजापत , भीम मंडल अध्यक्ष मोती सिंह, महामंत्री लक्ष्मण सिंह, आमेट नगर मंडल अध्यक्ष यशवंत चोर्डिय़ा, भाजपा मीडिया जिला संयोजक मधुप्रकाश लड्ढा, राजसमन्द नगर मंडल अध्यक्ष प्रवीण नंदवाना, महामंत्री सत्यदेव सिंह, ग्रामीण मंडल अध्यक्ष गोपाल कृष्ण पालीवाल, महामंत्री जवाहर जाट, नाथद्वारा नगर मंडल अध्यक्ष शिव पुरोहित, नगर महामंत्री परेश सोनी, ग्रामीण मंडल अध्यक्ष रमेश दवे, महामंत्री संजय मांडोत, आमेट ग्रामीण मंडल अध्यक्ष हजारी गुर्जर, महामंत्री हरीसिंह राव, बाबूलाल कुमावत, चन्द्रशेखर पालीवाल, रेलमगरा मंडल अध्यक्ष गोविन्द सोनी, महामंत्री प्रकाश खेरोदिया, रतन सिंह, कुम्भलगढ़ मंडल अध्यक्ष भेरू सिंह खरवड़, महामंत्री चन्द्रकान्त आमेटा, भाजयुमो जिला अध्यक्ष सुनील जोशी, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष संगीता कुंवर चौहान के हस्ताक्षर बताए गए हैं।
बहरहाल, वसुंधरा राजे का तो जो होगा, हो जाएगा, मगर किरण ने उनके चक्कर में अपने घर में जरूर आग लगा ली है। अब देखना ये है कि वे इससे कैसे निपटती हैं। इसकी प्रतिक्रिया में उन्होंने राजस्थान पत्रिका को जो बयान दिया है, उसमें कहा है कि मेरे विरोध में पत्र लिखा है, लिखने दो। इस बारे में किसी को जवाब नहीं देना चाहती। जवाब जनता के बीच दूंगी। समझ में ये नहीं आता कि जब पत्र राष्ट्रीय अध्यक्ष को लिखा गया है तो उसका जवाब जनता के बीच जा कर क्यों देंगी?
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
हालांकि किरण का कटारिया से छत्तीस का आंकड़ा काफी पुराना है और उनके यात्रा निकालने का मेवाड़ अंचल पर किरण के वर्चस्व पर भी स्वाभाविक रूप से असर पडऩे वाला था, मगर यह सीधे तौर पर वसुंधरा को चुनौती थी, न कि किरण को। यह संघर्ष आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर संघ और वसुंधरा के बीच का था। कटारिया ने यात्रा का ऐलान कर एक तरह से वसुंधरा को चुनौती दी थी क्योंकि वे अपने आप को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने के लिए यात्रा निकालने की तैयारी कर रही थीं। इस झगड़े के बीच सीधे तौर पर किरण का तो कोई लेना देना ही नहीं था। ये पता नहीं कि किरण ने वसुंधरा के कहने पर अथवा खुद ही वसुंधरा का वफादार साबित होने के चक्कर में राजसमंद में आयोजित यात्रा तैयारी बैठक में जा कर हंगामा कर दिया। इतना ही नहीं बाद में दिल्ली जा कर शिकायत और कर दी। इसका परिणाम ये हुआ कि राजसमंद से उठी लपटें पहले दिल्ली पहुंची और बाद में जयपुर सहित पूरे राज्य में फैल गईं। हुआ वही जो होना था। झगड़ा संघ और वसुंधरा के बीच हो गया। इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी भी लपेटे में आ गए क्योंकि उन्होंने ही कटारिया की यात्रा का समर्थन कर अनुमति दी थी।
ज्ञातव्य है कि जब वसुंधरा गुस्से में कोर कमेटी की बैठक से बाहर आ कर बिफरीं तो कटारिया ने यात्रा वापस लेने की घोषणा कर दी। मामला यहीं समाप्त हो सकता था, मगर वसुंधरा को लगा कि यही सही मौका है कि एक बार फिर हाईकमान को अपनी ताकत का अहसास कराया जाए, ताकि रोजाना की किलकिलबाजी खत्म हो, सो इस्तीफों का नाटक शुरू करवा दिया। इस प्रकरण में कटारिया ने पार्टी हित में यात्रा वापस लेने का ऐलान कर अपने आप को सच्चा कार्यकर्ता स्थापित कर लिया और उदयपुर जा कर बैठ गए। कदाचित वहीं बैठे-बैठे उन्होंने सोचा कि वसुंधरा का तो जो होगा, हो जाएगा, मगर कम से कम किरण को तो मजा चखा ही दिया जाए, जिसने कि मुखाग्नि दी थी। समझा जाता है कि उन्हीं के इशारे पर राजसमंद की घटना के दस दिन बाद यकायक वहां के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने नए सिरे से किरण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। किरण माहेश्वरी के लिए यह बेहद शर्मनाक है कि एक राष्ट्रीय महासचिव, जिसकी हैसियत ताजा प्रकरण में दिल्ली में वसुंधरा के दूत के रूप में रही, उन्हें उन्हीं के विधानसभा क्षेत्र की जिला भाजपा इकाई ललकार रही है। कहां राष्ट्रीय महासचिव और कहां जिले के पदाधिकारी। जिलाध्यक्ष नन्दलाल सिंघवी, पूर्व जिला प्रमुख हरिओम सिंह राठौड़, नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह, कुम्भलगढ़ के पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह राठौड़, राजसमन्द के पूर्व विधायक बंशीलाल खटीक ने गडकरी को पत्र फैक्स कर राजसमंद बैठक में हंगामा कराने के आरोप में किरण को तुरंत प्रभाव से पद से हटा कर अनुशासनात्मक कार्यवाही की मांग कर दी है। पत्र पर 41 पदाधिकारियों और नेताओं के हस्ताक्षर हैं। इसमें 5 मई को कार्यकर्ताओं को जयपुर ले जाकर प्रदेश के बड़े नेताओं के खिलाफ नारेबाजी एवं गलत बयानबाजी का भी आरोप लगाया गया है। इसमें लिखा है कि किरण ने जयपुर के सारे घटनाक्रम के बाद अपने विधायक एवं महासचिव पद से त्यागपत्र की पेशकश की व बाद में इस सारे घटनाक्रम से केन्द्रीय नेतृत्व के सामने मुकर गईं। पत्र में माहेश्वरी पर राष्ट्रीय महासचिव होने के बावजूद ऐसी अनुशासनहीनता करना, गुटबाजी पैदा करना, समानांतर संगठन चलाना, अपने आप को पार्टी से ऊपर समझना तथा निष्काषित कार्यकर्ताओं को साथ लेकर पार्टी विरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के आरोप भी लगाए गए हैं।
किरण के खिलाफ अपने ही घर में माहौल कितना खराब हो गया है, इसका अंदाजा इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों के कद से ही हो जाता है। पत्र पर जिला महामंत्री महेश पालीवाल, श्रीकृष्ण पालीवाल, भीमसिंह चौहान, जिला उपाध्यक्ष नवल सिंह सुराना, मोहन सिंह चौहान, राजेंद्र लोहार, शंकर लाल सुथार, पूर्व जिलाध्यक्ष प्रताप सिंह मेहता, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य वीरेन्द्र पुरोहित, जिला मंत्री बबर सिंह, जिला कोषाध्यक्ष देवीलाल प्रजापत , भीम मंडल अध्यक्ष मोती सिंह, महामंत्री लक्ष्मण सिंह, आमेट नगर मंडल अध्यक्ष यशवंत चोर्डिय़ा, भाजपा मीडिया जिला संयोजक मधुप्रकाश लड्ढा, राजसमन्द नगर मंडल अध्यक्ष प्रवीण नंदवाना, महामंत्री सत्यदेव सिंह, ग्रामीण मंडल अध्यक्ष गोपाल कृष्ण पालीवाल, महामंत्री जवाहर जाट, नाथद्वारा नगर मंडल अध्यक्ष शिव पुरोहित, नगर महामंत्री परेश सोनी, ग्रामीण मंडल अध्यक्ष रमेश दवे, महामंत्री संजय मांडोत, आमेट ग्रामीण मंडल अध्यक्ष हजारी गुर्जर, महामंत्री हरीसिंह राव, बाबूलाल कुमावत, चन्द्रशेखर पालीवाल, रेलमगरा मंडल अध्यक्ष गोविन्द सोनी, महामंत्री प्रकाश खेरोदिया, रतन सिंह, कुम्भलगढ़ मंडल अध्यक्ष भेरू सिंह खरवड़, महामंत्री चन्द्रकान्त आमेटा, भाजयुमो जिला अध्यक्ष सुनील जोशी, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष संगीता कुंवर चौहान के हस्ताक्षर बताए गए हैं।
बहरहाल, वसुंधरा राजे का तो जो होगा, हो जाएगा, मगर किरण ने उनके चक्कर में अपने घर में जरूर आग लगा ली है। अब देखना ये है कि वे इससे कैसे निपटती हैं। इसकी प्रतिक्रिया में उन्होंने राजस्थान पत्रिका को जो बयान दिया है, उसमें कहा है कि मेरे विरोध में पत्र लिखा है, लिखने दो। इस बारे में किसी को जवाब नहीं देना चाहती। जवाब जनता के बीच दूंगी। समझ में ये नहीं आता कि जब पत्र राष्ट्रीय अध्यक्ष को लिखा गया है तो उसका जवाब जनता के बीच जा कर क्यों देंगी?
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
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