पिछले दिनों जिस तरह पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे लॉबी व संघ लॉबी के बीच घमासान हुआ और फिर लंबी चुप्पी छा गई तो चाहे वसुंधरा लॉबी ने चाहे मीडिया ने, यह बात फैला कर रखी कि आगामी विधानसभा चुनाव तो वसुंधरा के नेतृत्व में ही होगा, मगर भीतर सुलग रही आग पर किसी की नजर नहीं गई। हाल ही जब विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर भाजपा ने कमर कसना शुरू कर दिया है, एक बार फिर यह मसला उठ खड़ा हुआ है। संघ लॉबी के पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी व गुलाब चंद कटारिया ने फिर से यह सुर अलापना शुरू कर दिया है कि अभी यह तय नहीं है कि किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। नेतृत्व का मसला पार्टी का संसदीय बोर्ड तय करेगा। इसके विपरीत भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव किरण माहेश्वरी का साफ कहना है कि चुनाव तो वसुंंधरा के नेतृत्व में ही होंगे। इस पर कटारिया की प्रतिक्रिया ये है कि कोई नेता अपनी व्यक्तिगत राय दे तो बात अलग है।
ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों पक्ष वस्तुस्थिति जानते हैं, मगर जानबूझ कर नूरा कुश्ती लड़ रहे हैं। चतुर्वेदी व कटारिया भी जानते हैं कि आखिरकार वसुंधरा के नाम पर सहमति देनी ही होगी, मगर अपनी लॉबी के कार्यकर्ताओं का मनोबल न गिरे, इस कारण जानबूझ कर ठहरे पानी में कंकड़ फैंक रहे हैं ताकि विवाद की लहरें उठती रहें। समझा जाता है कि संघ लॉबी आखिर तक वसुंधरा पर दबाव बनाए रखना चाहती है, ताकि टिकटों के बंटवारे में ज्यादा से ज्यादा टिकटें झटकी जा सकें। उधर किरण का बयान इस बात का द्योतक है कि वह बार-बार संघ लॉबी को आइना दिखाना चाहती हैं, ताकि वे ज्यादा न उछलें। जहां तक वसुंधरा का सवाल है, वे भी जानती हैं कि चुनाव तो संघ को साथ ले कर लडऩा होगा, वरना पिछली बार जैसा हाल हो जाएगा। बस उनकी कोशिश ये है कि अपना दबदबा बनाए रख कर अपनी लॉबी के अधिक से अधिक नेताओं को टिकट दिलवाएं जाएं, ताकि चुनाव के बाद संख्या बल के आधार पर वे आसानी से सरकार चला सकें।
अगर हाल ही किरण व कटारिया के परस्पर विरोधी बयानों पर नजर डालें तो लगता है कि इसमें कहीं न कहीं उदयपुर संभाग की राजनीति का भी असर है। दोनों नेताओं की आपसी खींचतान जगजाहिर है। इनमें मनमुटाव का नतीजा पिछले दिनों उस समय देखने को मिला था, जब कटारिया ने मेवाड़ में पार्टी को मजबूत करने के लिए यात्रा निकालने की घोषणा की थी। माहेश्वरी ने पार्टी प्रदेश कार्यालय में कार्यकर्ताओं के माध्यम से यात्रा का विरोध जताया था। इसी यात्रा को लेकर वसुंधरा राजे ने इस्तीफा देने तक की घोषणा कर दी थी। हालांकि दोनों नेता इस मसले पर आपसी विवाद से इंकार कर रहे हैं, मगर धरातल का सच ये है कि दोनों खेमों के कार्यकर्ताओं के बीच तलवारें खिंची हुई हैं। यदि इस ओर हाईकमान ने ध्यान नहीं दिया तो यह भाजपा के लिए घातक साबित हो सकता है।
-तेजवानी गिरधर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें