जोधपुर व पाली में हाल ही जहरीली शराब से कई लोगों की मौत नि:संदेह दुखद है और शासन-प्रशासन की ढि़लाई और पुलिस व आबकारी विभाग की मिलीभगत का परिणाम है, मगर इस मुद्दे पर पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे किस मुंह से सरकार पर जम कर बरस रही हैं, यह सवाल हर एक की जुबान पर है। इसकी एक मात्र वजह ये है कि राजे के राज में ही शराब की नदियां बहाई गई थीं। शराब को सहज सुलभ करवा कर लोगों को शराब का आदी उन्होंने ही बनाया था।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि अशोक गहलोत पर खजाना खाली होने पर रोने का उलाहना देने वाली श्रीमती राजे ने ही सरकार का खजाना बढ़ाने के लिए गली-गली में शराब की दुकानें खुलवा दी थीं। तुर्रा ये कि खजाना खाली होने का रोना रोने की बजाय खजाना भरने का तरीका आना चाहिए। तब ये जुमला आम था कि बच्चे के रोने पर डेयरी बूथ पर दूध भले ही पीने को न मिले, मगर गम गलत करने के लिए आदमी को शराब हर गली के नुक्कड़ पर सहज सुलभ है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि उन्हीं के राज में यह आदेश जारी हुआ था कि शराब की दुकानों के आसपास पुलिस वाले न फटकें, क्योंकि इससे शराब का धंधा खराब होता है। तर्क ये दिया गया कि लोग पुलिस के डर से शराब की दुकान पर चढऩे से कतराते हैं। इससे राजस्व में कमी आती है। इस सर्कूलर का परिणाम ये हुआ कि लोग शराब की दुकानों के पास ही बैठ कर बेधडक़ मदहोश होते थे और पुलिस उनका मुंह ताकती रहती थी।
तब खुद को सबसे ज्यादा सच्चरित्र और राष्ट्रवादी बताने वाले भाजपाइयों की बोलती बंद थी। जब भी शराब की दुकानों के सिलसिले में बात चलती थी तो भाजपाई इधर-उधर बगलें झांकते थे। किसी संभ्रांत महिला के बारे में इस तरह की टिप्पणी भले ही अशोभनीय लगे, मगर खुद वसुंधरा राजे तक के बारे में एट पीम नो सीएम कह कर परिहास किया जाता था। यह जुमला भले ही कांग्रेस की ओर से उछाला गया, मगर इसे सुन कर भाजपाई भी मंद-मंद मुस्कराते थे।
तब कांग्रेस बहुत चिल्लाई, मगर राजे ने उसकी एक नहीं सुनी। आज राजे यह कह कर गहलोत सरकार की आलोचना कर रही है कि गली-गली में बीयर बार खुल गए हैं, तो क्या यह सच नहीं है कि उनके राज में गली-गली में शराब के ठेके दे दिए गए थे? आज श्रीमती राजे यह कह कर मौजूदा सरकार की खिंचाई कर रही हैं कि शराब की दुकानें तो आठ बजे बंद करवा दीं, मगर बीयर बार आधी रात तक खोलने की छूट दी हुई है। यानि कि वे यह कहना चाहती हैं कि बीयर बार भी आठ बजे ही बंद कर दी जानी चाहिए। ऐसा कह कर वे शराब की दुकानें जल्द बंद करने के निर्णय का समर्थन कर रही हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि अशोक गहलोत ने आते ही सबसे पहले शराब की दुकानें रात आठ बजे बंद करने का जो कठोर कदम उठाया और शराब पी कर वाहन चलाने वालों पर जो सख्ती बरती, उसकी सराहना हर एक की जुबान पर है। विशेष रूप से महिलाओं को तो बेहद खुशी है कि रात आठ बजे शराब की दुकानें बंद होने से उन्हें काफी राहत मिली है।
रहा सवाल अवैध और जहरीली शराब का तो वह राजे के राज में भी धड़ल्ले से बिकती थी और आज भी बिक रही है। तब न राजे उस पर अंकुश लगा पाई थीं और न ही आज गहलोत सरकार कुछ कर पा रही है। शराब की तस्करी पहले भी होती थी और आज भी हो रही है। कुछ विशेष मोहल्लों में शराब पहले भी बनती थी और थडिय़ों पर बिकती थी और आज भी वैसा ही है। इसके ये मायने नहीं है कि चूंकि राजे के राज में शराब की नदियां बहती थीं तो आज भी उसके समंदर होने चाहिए, मगर कम से कम राजे को तो आलोचना का अधिकार नहीं दिया जा सकता, जिन्होंने खुद लोगों को शराब पीने का आदी बनाया।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि अशोक गहलोत पर खजाना खाली होने पर रोने का उलाहना देने वाली श्रीमती राजे ने ही सरकार का खजाना बढ़ाने के लिए गली-गली में शराब की दुकानें खुलवा दी थीं। तुर्रा ये कि खजाना खाली होने का रोना रोने की बजाय खजाना भरने का तरीका आना चाहिए। तब ये जुमला आम था कि बच्चे के रोने पर डेयरी बूथ पर दूध भले ही पीने को न मिले, मगर गम गलत करने के लिए आदमी को शराब हर गली के नुक्कड़ पर सहज सुलभ है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि उन्हीं के राज में यह आदेश जारी हुआ था कि शराब की दुकानों के आसपास पुलिस वाले न फटकें, क्योंकि इससे शराब का धंधा खराब होता है। तर्क ये दिया गया कि लोग पुलिस के डर से शराब की दुकान पर चढऩे से कतराते हैं। इससे राजस्व में कमी आती है। इस सर्कूलर का परिणाम ये हुआ कि लोग शराब की दुकानों के पास ही बैठ कर बेधडक़ मदहोश होते थे और पुलिस उनका मुंह ताकती रहती थी।
तब खुद को सबसे ज्यादा सच्चरित्र और राष्ट्रवादी बताने वाले भाजपाइयों की बोलती बंद थी। जब भी शराब की दुकानों के सिलसिले में बात चलती थी तो भाजपाई इधर-उधर बगलें झांकते थे। किसी संभ्रांत महिला के बारे में इस तरह की टिप्पणी भले ही अशोभनीय लगे, मगर खुद वसुंधरा राजे तक के बारे में एट पीम नो सीएम कह कर परिहास किया जाता था। यह जुमला भले ही कांग्रेस की ओर से उछाला गया, मगर इसे सुन कर भाजपाई भी मंद-मंद मुस्कराते थे।
तब कांग्रेस बहुत चिल्लाई, मगर राजे ने उसकी एक नहीं सुनी। आज राजे यह कह कर गहलोत सरकार की आलोचना कर रही है कि गली-गली में बीयर बार खुल गए हैं, तो क्या यह सच नहीं है कि उनके राज में गली-गली में शराब के ठेके दे दिए गए थे? आज श्रीमती राजे यह कह कर मौजूदा सरकार की खिंचाई कर रही हैं कि शराब की दुकानें तो आठ बजे बंद करवा दीं, मगर बीयर बार आधी रात तक खोलने की छूट दी हुई है। यानि कि वे यह कहना चाहती हैं कि बीयर बार भी आठ बजे ही बंद कर दी जानी चाहिए। ऐसा कह कर वे शराब की दुकानें जल्द बंद करने के निर्णय का समर्थन कर रही हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि अशोक गहलोत ने आते ही सबसे पहले शराब की दुकानें रात आठ बजे बंद करने का जो कठोर कदम उठाया और शराब पी कर वाहन चलाने वालों पर जो सख्ती बरती, उसकी सराहना हर एक की जुबान पर है। विशेष रूप से महिलाओं को तो बेहद खुशी है कि रात आठ बजे शराब की दुकानें बंद होने से उन्हें काफी राहत मिली है।
रहा सवाल अवैध और जहरीली शराब का तो वह राजे के राज में भी धड़ल्ले से बिकती थी और आज भी बिक रही है। तब न राजे उस पर अंकुश लगा पाई थीं और न ही आज गहलोत सरकार कुछ कर पा रही है। शराब की तस्करी पहले भी होती थी और आज भी हो रही है। कुछ विशेष मोहल्लों में शराब पहले भी बनती थी और थडिय़ों पर बिकती थी और आज भी वैसा ही है। इसके ये मायने नहीं है कि चूंकि राजे के राज में शराब की नदियां बहती थीं तो आज भी उसके समंदर होने चाहिए, मगर कम से कम राजे को तो आलोचना का अधिकार नहीं दिया जा सकता, जिन्होंने खुद लोगों को शराब पीने का आदी बनाया।
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