दूसरे पक्ष का कहना है कि अंतिम संस्कार संपूर्ण अंगों के साथ ही किया जाना चाहिए, इसीलिए तो किसी की मृत्यु होने पर प्रयास यह रहता है कि शव का पोस्टमार्टम न किया जाए। दूसरा तर्क यह है कि देवता भी अंग भंग जानवर की बलि स्वीकार नहीं करते। बलि को देवताओं को अर्पित किया जाने वाला पवित्र कर्म माना जाता है। इसलिए उस जानवर को चुना जाता है जो स्वस्थ, संपूर्ण और निर्दोष हो। आपको ख्याल में होगा कि किसी बकरे की बलि नहीं चढाई जा सके, इसके लिए उसका कान काट दिया जाता है, ताकि वह अंग भंग की श्रेणी में आ जाए। उसे अमर बकरा कहा जाता है। इसी प्रकार अग्नि देवता को समर्पित किया जा रहा शव अंग भंग नहीं होना चाहिए। मजबूरी की बात अलग है। यदि कोई दुर्घटना का शिकार हो जाता है, तो कोई उपाय नहीं। दुर्घटना में मौत को अकाल मृत्यु कहा जाता है, उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती, वह भटकती रहती है। प्रकृति की भी यही व्यवस्था है कि जैसा हम उसे देंगे, पलट कर वही हमें लौटा देती है। कुल मिला कर दोनों पक्षों के अपने दमदार तर्क हैं। प्रगतिशील लोग अंगदान को महान कार्य बताते हैं और परंपरावादी धार्मिक लोग अंगदान के पक्ष में नहीं हैं।
-तेजवाणी गिरधर 7742067000
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