तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, अप्रैल 25, 2011

अब महान कैसे हो गए सत्य साईं बाबा?

पुट्टापर्थी में सत्य साईं बाबा के अस्पताल में भर्ती होने से लेकर निधन के बाद तक सारे न्यूज चैनल जिस तरह बाबा की महिमा का बखान कर रहे हैं, उस देख यह हैरानी होती है कि कभी अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए ये ही चैनल उन्हें डोंगी बाबा बता कर सनसनी पैदा कर रहे थे और आज जनता के मूड की वजह से उन्हें वे ही यकायक करोड़ों लोगों के भगवान और हजारों करोड़ रुपए के साम्राज्य वाले धर्मगुरू कैसे दिखाई दे रहे हैं। कभी ये ही चैनल तर्कवादियों की जमात जमा करके बाबा को फर्जी बताने से बाज नहीं आ रहे थे, आज वे ही पुट्टापर्थी की पल-पल की खबर दिखाते हुए दुनियाभर में उनकी ओर से किए गए समाजोत्थान के कार्यों का बखान कर रहे हैं। ये कैसा दोहरा चरित्र है?
असल में महत्वपूर्ण ये नहीं है कि साईं बाबा चमत्कारी थे या नहीं, कि वे जादू दिखा कर लोगों को आकर्षित करते थे और वह जादू कोई भी दिखा सकता है, महत्वपूर्ण ये है कि उस शख्स ने यदि हजारों करोड़ रुपए का साम्राज्य खड़ा भी किया तो उसका मकसद आखिर जनता की भलाई ही तो था।
सवाल ये भी है कि क्या केवल जादू के दम पर करोड़ों लोगों को अपना भक्त बनाया जा सकता है? जादू से अलबत्ता आकर्षित जरूर किया जा सकता है, मगर कोई भी व्यक्ति भक्त तभी होता है, जब उसके जीवन में अपेक्षित परिवर्तन आए। केवल जादू देख कर ज्यादा देर तक जादूगर से जुड़ा नहीं रहा जा सकता। राजनेता जरूर वोटों की राजनीति के कारण हर धर्म गुरू के आगे मत्था टेकते नजर आ सकते हैं, चाहे उनके मन में उसके प्रति श्रद्धा हो या नहीं, मगर सचिन तेंदुलकर जैसी अनेकानेक हस्तियां यदि बाबा के प्रति आकृष्ठ हुई थीं, तो जरूर उन्हें कुछ तो नजर आया होगा।
माना कि जो कुछ लोग उनके कथित आशीर्वाद की वजह से खुशहाल हुए अथवा जो कुछ लोग उनकी ओर किए गए समाजोपयोगी कार्यों का लाभ उठा रहे थे, इस कारण उनके भक्त बन गए, मगर इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि चाहे जादू के माध्यम से ही सही, मगर उन्होंने लोगों को अध्यात्म का रास्ता दिखाया, गरीबों का कल्याण किया। अगर ये मान भी लिया जाए कि वे जो चमत्कार दिखाते थे, उन्हें कोई भी जादूगर दिखा सकता है, मगर क्या यह कम चमत्कार है कि करोड़ों लोग उनके प्रति आस्थावान हो गए।
संभव है आज पुट्टापर्थी का चौबीस घंटे कवरेज देने के पीछे तर्क ये दिया जाए कि वे तो महज घटना को दिखा रहे हैं कि वहां कितनी भीड़ जमा हो रही है या फिर वीवीआईपी का कवरेज दिखा रहे है या फिर करोड़ों लोंगों की आस्था का ख्याल रख रहे हैं, तो इस सवाल जवाब क्या है कि वे पहले उन्हीं करोड़ों लोगों की आस्था पर प्रहार क्यों कर रहे थे।
कुल जमा बात इतनी सी है कि न्यूज चैनल संयमित नहीं हैं। उन्हें जो मन में आता है, दिखाते हैं। जिस व्यक्ति से आर्थिक लाभ होता है, उसका कवरेज ज्यादा दिखाते हैं। बाबा रामदेव उसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। वे जो योग सिखा रहे हैं, वह हमारे ऋषि-मुनि हजारों वर्षों से करते रहे हैं, वह हजारों योग गुरू सिखा रहे हैं, कोई बाबा ने ये योग इजाद नहीं किया है, मगर चूंकि उन्होंने अपने कार्यक्रमों का कवरेज दिखाने के पैसे दिए, इस कारण उन्हें ऐसा योग गुरू बना दिया, मानो न पहले ऐसे योग गुरू हुए, न हैं और न ही भविष्य में होंगे।
तेजवानी गिरधर, अजमेर

6 टिप्‍पणियां:

  1. मैं आपकी इस बात से पूर्ण रूप से सहमत हूँ,

    कल मेरे एक मित्र से इस विषय पर चर्चा हुई, वो दक्षिण भारत के रहने वाले हैं, उन्होंने बताया कि उन्होंने कई ऐसे कार्य उस क्षेत्र में किये जो सरकार के बस की बात नहीं थी, वे कार्य जादूगरी अथवा चमत्कार का प्रयोग करके नहीं किये गए हैं, बल्कि जन-समर्थन की वजह से संभव हुए

    मैंने उनको बताया कि मुझे उनकी सिर्फ एक बात अच्छी नहीं लगती थी वह थी "स्वयं को भगवान कहना"

    फिर हमने इस बात पर काफी बहस की और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि लोग "चमत्कार को नमस्कार" करते हैं, बिना चमत्कार दिखाए इतना बड़ा जन-समर्थन पाना नामुमकिन था, मुख्य बात यह है कि क्या उन्होंने इस जन-समर्थन का दुरूपयोग किया? शायद नहीं| यहाँ शायद इसलिए लगा रहा हूँ क्यूंकि मेरे सामने अभी तक ऐसी कोई बात नहीं आयी है|

    पर इस जन-समर्थन का लाभ उन्होंने सही कार्यों के लिए किया ऐसे कई उदहारण मेरे सामने हैं|

    तेजवानी जी मैंने देखा है कि आप एक से ज्यादा ब्लॉग पर एक ही लेख को लिख रहे हैं, यदि अन्यथा ना लें तो मेरा यह लेख पढ़ें मैंने इस लेख पर इस बारे में चर्चा की है, और उससे होने वाले नुकसान के बारे में बताया है

    क्या आप एक से ज्यादा ब्लॉग पर एक ही लेख लिखते हैं ?

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  2. सचिन तेंदुलकर जैसी अनेकानेक हस्तियां यदि बाबा के प्रति आकृष्ठ हुई थीं, तो जरूर उन्हें कुछ तो नजर आया होगा। ----
    ---तेजवानी जी क्या सचिन कोई विद्वान व्यक्ति हैं जो आपने यह पन्क्ति लिखी...अपने क्षेत्र में मज़दूरभी अन्य से कुशल होकर प्रसिद्ध होजाता है तो वह कोई विद्वान या "आइडियल" थोडे ही हो जायगा, यहां सचिन स्वयं एक साधारण आस्थावान व्यक्ति हैं, बस वे बहुत सा पैसा बावा के सन्स्थान को दान में देते होंगे इस्लिये ही मीडिया बार बार कवरेज दिखा रहा है....यही भ्रष्टाचार की जड है...
    ---समाजोपयोगी कार्य करना महानता है पर जीतेजी स्वयं को भगवान कहलवाना...निक्रष्ट कार्य है.....
    ---सही कहा वे महान कैसे ---सनातन धर्म के सन्तों की भांति आसन्न म्रत्यु से पहले समाधि लेने की बज़ाय एडियां रगड-रगड कए एक सप्ताह में मरना व तीन दिनों तक दर्शन के लिये म्रत-शरीर को रखे रहना कौन सी महानता है ?

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  3. सम्माननीय डॉ. गुप्ता साहब,
    असल में यह आस्था और श्रद्धा का मामला है। रहा सवाल सचिन के विद्वान होने का तो किसी में भगवान दिखाई देने के लिए विद्वता और बुद्धि की जरूरत नहीं होती, वह तो अनुभव की बात है। जैसे आपको मूर्ति में भी तो भगवान दिखता है, मगर जिसे नहीं दिखाई देता, वह तो आप पर हंसेगा ही न कि पत्थर को पूज रहा है। रहा प्रश्न सचिन को कवरेज देने का तो हर वीआईपी का कवरेज कुछ ज्यादा ही होता आया है, उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हां, मैं आपकी इस बात से जरूर सहमत हूं कि कोई अगर अपने आपको भगवान कहलवाता है, तो वह वाकई गलत है। मगर अपने आपको भगवान कह देने मात्र से कुछ नहीं होता, लोगों के मानने पर ही तो होता है। आप अपने आपको भगवान कह कर देखिए, देखें आपको लोग भगवान मानते हैं या नहीं। रहा सवाल सतानत धर्म के संतों के समाधि लेने को तो ऐसे सीमित ही उदाहरण हैं। अनेक संत बिना समाधि के ही आपके शब्दों के अनुसार एडियां रगड़-रगड़ कर मरते हैं। स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अंतिम समय में कोढ़ हो जाने पर सरयू में कूद कर आत्महत्या की थी।

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  4. आदरणीय श्रीतेजबानीजी,

    आपने सटीक लिखा है। श्रद्धा के आगे सब नतम्स्तक है।
    आपका `॥अहम ब्रम्हास्मि॥" बहुत अच्छा लगा क्योंकि, इसमें "॥ नाहं कर्ता हरि कर्ता॥" के एकत्व का भाव छिपा हुआ है ।

    आपका बहुत धन्यवाद ।

    मार्कण्ड दवे।

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  5. क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

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  6. आज भ्रष्टाचार की शिकायत करने पर आपके सारे काम रोक दिए जाते हैं और आपको सारे भ्रष्टाचारी एकत्रित होकर आपका शोषण करने लग जाते हैं. ऐसा मेरा अनुभव है, अभी 5 मई 2011 को तीस हजारी की लीगल सैल में मेरे साथ बुरा बर्ताव हुआ और सरकारी वकील ने जान से मारने की धमकी पूरे स्टाफ के सामने दी थीं, क्योंकि इन दिनों बीमार चल रहा हूँ. इसलिए फ़िलहाल इसकी उच्च स्तर पर शिकायत करने में असमर्थ हूँ. लेकिन भ्रष्टाचारियों के हाथों मरने से पहले 10-20 भ्रष्टों को लेकर जरुर मरूँगा. आप सभी को यह मेरा वादा है. सरकारी वकील की शिकायत क्यों करनी पड़ी इसको देखने के लिए उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से देखे.

    अगर मुझे थोडा-सा साथ(ब्लॉगर भाइयों का ही) और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ क्योंकि अपने 17 वर्षीय पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ कि-अब प्रिंट व इलेक्टोनिक्स मीडिया में अब वो दम नहीं रहा. जो उनकी पहले हुआ करता हैं. लोकतंत्र के तीनों स्तंभ के साथ-साथ चौथे स्तंभ का भी नैतिक पतन हो चुका है. पहले पत्रकारिता एक जन आन्दोलन हुआ करती थीं. अब चमक-दमक के साथ भौतिक सुखों की पूर्ति का साधन बन चुकी है. यानि पत्रकारिता उद्देश्यहीन होती जा रही है.

    हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें

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