शौचालय को मंदिर से भी ज्यादा पवित्र बताने पर भले ही केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश विवादों में आ गए हों, मगर मारवाड़ में तो शौचालय की उतनी ही अहमियत है, जितनी रमेश ने बखान ही है। इस बात पर आप चौंक गए होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है। मगर ये सच है।
आपको बता दें कि मारवाड़ में एक कहावत है कि सौ ने खुवाया अर एक ने हंगाया को पुन बराबर है। अर्थात सौ भूखे लोगों को खिलाने से जो पुण्य हासिल होता है, उतना ही पुण्य एक आदमी को दीर्घ शंका की सुविधा उपलब्ध करवाने पर मिलता है। ऐसा इसलिए कि आदमी एक वक्त, दो वक्त बिना खाये तो रह सकता है, मगर दीर्घ शंका आने पर आधा घंटा भी नहीं रुक सकता। दीर्घ शंका के बाद मिलने वाली संतुष्टि खाने खाने के बाद की संतुष्टि से भी ज्यादा होती है। भूखे को तो फिर भी कहीं पर भी बैठा कर खिलाया जा सकता है, मगर जिसे दीर्घ शंका करनी हो, उसे तो उपयुक्त स्थान ही उपलब्ध करवाना ही होगा।
इस संदर्भ में अगर रमेश को बयान को लिया जाए तो वह ठीक ही प्रतीत होता है। मंदिर भी तो तभी स्वच्छ रहेंगे न कि जब उपयुक्त व पर्याप्त शौचालय होंगे, जो कि गंदगी को अपने में समेट लेंगे। कदाचित रमेश इसी तरह की बात कहना चाहते हों, मगर मुंह से ऐसा बयान निकल गया, जिसकी मजम्मत होनी ही थी। उनसे गलती ये हो गई कि उन्होंने सीधे सीधे मंदिर की तुलना शौचालय से कर दी, इस पर आपत्ति होना स्वाभाविक ही है। मंदिर के तथाकथित रक्षकों को ये बयान नागवार गुजरना ही था। भला आप मंदिर का अपमान कैसे कर सकते हैं, उसे कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है, यूं भले ही सैकड़ों मंदिर सूने पड़े हों, उनमें पुजारी न हों, तब थोड़े ही मंदिर का अपमान होता है।
-तेजवानी गिरधर
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